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kue-बिना इंफास्ट्रक्चर के किया लागू
शिमला। एचपीयू में ईआरपी (ERP) सिस्टम पर बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। 80 फीसदी छात्रों के फेल होने के बाद छात्र सड़कों पर हैं। इसी कड़ी में आज एसएफआई (SFI) ने शिमला के पंचायत भवन से लेकर उपायुक्त कार्यालय तक आक्रोश रैली निकाली और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
एसएफआई के जिला सचिव बंटी ठाकुर ने बताया कि रूसा के बाद अब ईआरपी सिस्टम से 80 प्रतिशत छात्र फेल हो गए हैं। रूसा के लागू होने से 90 फीसदी छात्रों को इसका नुकसान भुगतना पड़ा था। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने ईआरपी सिस्टम पर 8 करोड़ से ज्यादा खर्च किया है, लेकिन नतीजे शून्य हैं। इस प्रणाली में ऑनलाइन पीडीएफ ब्लर हो सकती हैं। अध्यापकों के पास इसके लिए पर्याप्त डाटा है या नहीं बिना इंफास्ट्रक्चर के यह सिस्टम लागू हुआ है। एसएफआई दो दिन का अधिवेशन करने जा रही है, उससे पहले रैली व प्रदर्शन कर इस प्रणाली को वापस लेने की मांग कर रही है।
150 साल पहले इंग्लैंड से लाई थी क्राइस्ट चर्च शिमला
शिमला। ऐतिहासिक चर्च शिमला की कॉल बेल करीब 40 साल बाद एक बार फिर से लोगों को सुनाई देगी। बहुत से लोग शायद कॉल बेल को भूल चुके होंगे और इसकी ध्वनि से भी वाफिक नहीं होंगे।
आपको बता दें कि क्राइस्ट चर्च को जहां शिमला की पहचान माना जाता है, वहीं इसमें प्रार्थना के लिए 150 साल पहले इंग्लैंड से लाई “कॉल बेल” का भी अपना ही महत्व है। कॉल बेल को प्रार्थना से पहले बजाया जाता है। लगभग 40 साल से यह बेल खराब पड़ी थी, जिसकी रिपेयर अब पूरी हो चुकी है। 25 दिसंबर को क्रिसमस और 31 दिसंबर न्यू ईयर के मौके पर यह कॉल बेल शिमला के लोगों को फिर से सुनाई देगी।
क्या है कॉल बेल
कॉल बेल कोई साधारण घंटी नहीं है। यह मेटल से बने छह बड़े पाइप के हिस्से से बनी एक घंटी है। क्राइस्ट चर्च शिमला के पादरी सोहन लाल ने बताया कि घंटी के बजते ही इन पाइप पर संगीत के सात सुर की ध्वनि आती है। इन पाइप पर हथौड़े से आवाज होती है, जिसे रस्सी खींचकर बजाया जाता है। यह रस्सी मशीन से नहीं खींची जाती है, बल्कि हाथ से खींची जाती है। हर रविवार सुबह 11 बजे होने वाली प्रार्थना से पांच मिनट पहले यह बेल बजाई जाती है।
उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल के समय अंग्रेजों के आवास=शिमला शहर में अलग अलग स्थानों पर होते थे। बेल के माध्यम से सूचित किया जाता था कि प्रार्थना शुरू होने वाली है। उस समय इसकी इसकी आवाज तारादेवी तक सुनाई देती थी। क्योंकि ब्रिटिश काल में मोबाइल फोन नहीं थे, इसलिए किसी दुखद घटना और आपातकाल की सूचना देने के लिए भी कॉल बेल का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उसकी ध्वनि अलग होती थी। 40 साल एक बार फिर से क्रिसमस और न्यू ईयर के मौके पर रात 12 बजे इस बेल को बजाकर जश्न मनाया जाएगा।
गौरतलब है कि 9 सितंबर 1844 में इस चर्च की नींव कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने रखी थी। 1857 में इसका काम पूरा हो गया। स्थापना के 25 साल बाद इंग्लैंड से इस बेल को शिमला लाया गया था। 1982 में यह बेल खराब हो गई थी, जिसे 40 साल बाद अब दोबारा ठीक करवाया गया।