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शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना पर उठे सवाल, दहशत बरकरार

कुत्तों से परेशान जनता, नगर निगम निजात दिलाने में विफल
शिमला।  हिमाचल की राजधानी शिमला में बंदरों और कुत्तों की समस्या जस की तस बनी हुई है। शहर के हर वार्ड में समस्या है। लोग इससे काफी परेशान हैं। आवारा कुत्तों की समस्या लगातार बढ़ने से दहशत भी बढ़ गई है। रात के समय ये मामले बढ़ जाते हैं। हालांकि, कुत्तों की समस्या से निजात दिलाने के लिए नगर निगम ने डॉग एडॉप्शन योजना शुरू की है, जिसके तहत निगम आवारा कुत्तों को गोद लेने पर पार्किंग और गारबेज फीस की फ्री सेवा देता है। अब तक इस योजना के तहत करीब 150 लोग फायदा उठा चुके हैं। फिर भी समस्या जैसे पहले थी वैसे ही है। ऐसे में डॉग एडॉप्शन योजना पर भी सवाल उठ रहे हैं।
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कई बार प्रशासन के समक्ष जनता गुहार लगा चुकी है, लेकिन कुत्तों के आतंक से कोई निजात नहीं मिल पाई है। राजधानी पर्यटन की दृष्टि से एक अलग महत्व रखती है, लेकिन शहर के ऐतिहासिक क्षेत्रों में बेसहारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राजधानी के जिला अस्पताल दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल की अगर बात करें तो अकेले इस अस्पताल में पिछले 4 महीनों में 439 कुत्तों के काटने के मामले आए हैं।
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अस्पताल के एमएस (MS) डॉ. लोकेन्द्र शर्मा ने बताया कि जानवरों के काटने में कोई कमी नहीं आई है, जो आंकड़ा पुराना है, उससे अधिक मामले आ रहे हैं। इसके अलावा नगर निगम की डॉग एडॉप्शन योजना के बाद भी इसमें कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने बताया अकेले इसी अस्पताल में हर माह सैकड़ों मरीज जानवरों के काटने के पहुंचते हैं, जिन्हें एंटी रेबीज का टीका लगाकर वापस घर भेजा जाता है। इसके अलावा अस्पताल में रोजाना आठ से दस मामले आते हैं, जिनका मुफ्त में उपचार किया जाता है।
बंदरों और कुत्तों का आतंक शहर में इस कद्र बढ़ गया है कि माल और रिज में कुछ भी खाने पीने की चीज़ों को पर्यटकों और स्थानीय लोगों से छीन कर आसानी से भाग जाते हैं। नगर निगम शिमला ने आवारा कुत्तों से निजात पाने के लिए शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना शुरू की है, जिसके तहत निगम आवारा कुत्तों को गोद लेने पर पार्किंग और गारबेज फीस की फ्री सेवा देता है। अब तक इस योजना के तहत करीब 150 लोग फायदा उठा चुके हैं, लेकिन शहर में समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है।
शिमला नगर निगम की  डॉग एडॉप्शन योजना के बाद भी शहर के सभी वार्डों में नवजात कुतों से लेकर बड़े आवारा कुत्तों की संख्या पर कोई लगाम नहीं लग पाई है, जिससे अब निगम की डॉग एडॉप्शन योजना पर भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या निगम ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए यह योजना शुरू की है या फिर वाक्य ही शहर में आवारा कुत्तों की बढती संख्या पर लगाम लगी है, लेकिन शहर में नवजात कुत्तों और आवारा कुत्तों को देखते हुए प्रशासन के दावे खोखले साबित होते दिखाई दे रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि शहर में ऐसी कोई भी जगह नहीं है, जहां पर कुत्ते नहीं हैं। सुबह के समय बच्चों को अकेले स्कूल भेजना खतरे से खाली नहीं है। बच्चों पर कुत्ते हमला कर देते हैं। इन कुत्तों के लिए कोई न कोई नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़े। कुत्ते के काटने का सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं और बच्चों को होता है ये ज्यादातर बच्चों पर ही हमला करते हैं। इसके बावजूद प्रशासन इस समस्या के प्रति गंभीर नहीं है।

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