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त्रिलोकपुर कैसे पहुंचीं महामाया बालासुंदरी, पढ़िए मां के चमत्कार की कथा

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में नाहन से करीब 23 किलोमीटर दूर शिवालिक पहाड़ियों के बीच महामाया बालासुंदरी का भव्य एवं दिव्य मंदिर त्रिलोकपुर नामक स्थल पर स्थित है। करीब 450 साल पुराने इस ऐतिहासिक शक्तिधाम से हिमाचल सहित पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित उत्तर भारत के लाखों लोगों की आस्थाएं जुड़ी हुई हैं।

महामाया बालासुंदरी के मंदिर के इतिहास की बात करें तो जनश्रुति के अनुसार त्रिलोकपुर महामाया बालासुंदरी मंदिर की स्थापना सन् 1573 (तिहतर) यानि सोलवीं सदी में तत्कालीन सिरमौर रियासत के राजा प्रदीप प्रकाश ने की थी। कहा जाता है कि सन् 1573 ईसवी के आसपास सरमौर जिले में नमक की कमी हो गई थी। ज्यादातर नमक देवबंद नामक स्थान से लाना पड़ता था। देवबंद वर्तमान में उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का ऐतिहासिक कस्बा है।

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कहा जाता है कि लाला राम दास सदियों पहले त्रिलोकपुर में नमक का व्यापार करते थे, उनकी नमक की बोरी में माता देवबंद से यहां आई थी। भगत राम दास की दुकान त्रिलोकपुर में पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ करती थी। कहते हैं कि भगत राम दास देवबंद से लाया नमक विक्रय करते गए किन्तु काफी समय के बाद भी नमक समाप्त होने में नहीं आया। भगत जी को नमक के विक्रय से काफी धन प्राप्त हुआ, किन्तु नमक समाप्त नहीं हो रहा था। इससे भगत राम दास जी अचंभित हो गए।

भगत जी उस पीपल के वृक्ष के नीचे सुबह-शाम दिया जलाते थे और पूजा-अर्चना करते थे। इसी बीच माता बालासुंदरी ने प्रसन्न होकर एक रात्रि भगत जी को सपने में दर्शन दिए और कहा कि भक्त मैं तुम्हारी भक्ति भाव से अति प्रसन्न हूं, मैं यहां पीपल वृक्ष के नीचे पिंडी रूप में विराजमान हूं, तुम मेरा यहां पर भवन बनवाओ। मां बालासुसंदरी के दिव्य दर्शन के उपरांत भगत जी को भवन निर्माण की चिंता सताने लगी।

स्वपन में भगत जी ने माता का आह्वान किया और विनती की कि इतने बड़े भवन निर्माण के लिए मेरे पास सुविधाओं व धन का अभाव है। उन्होंने माता से आग्रह किया कि आप सिरमौर के महाराज को भवन निर्माण का आदेश दें। माता ने तत्कालीन सिरमौर नरेश राजा दीप प्रकाश को सोते समय स्वपन में दर्शन देकर भवन निर्माण का आदेश दिया। सिरमौर नरेश प्रदीप प्रकाश ने तुरंत जयपुर से कारीगरों को बुलाकर भवन निर्माण का कार्य पूरा किया।

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हालांकि मां बाला सुंदरी के नमक की बोरी में देवबंद से त्रिलोकपुर आने की किवदंती अधिक प्रचारित है, लेकिन मंदिर परिसर में सूचना बोर्ड में उद्वृत इतिहास, एक दूसरी किवदंती की जानकारी को भी उल्लेखित करता है।

दूसरी किवदंती के अनुसार भगत लाला राम दास के घर के सामने पीपल का पेड़ था। वो वहां पर हर रोज जल चढ़ाया करते थे। एक दिन भयंकर तूफान आया और पीपल का पेड़ उखड़ गया। उस पेड़ के नीचे के स्थान से एक पिंडी प्रकट हुई। रामदास पिंडी को उठाकर घर लाए और पूजा अर्चना करने लगे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें स्वपन में दिव्य दर्शन दिए और मंदिर बनवाने के लिए कहा। भगत लाला राम दास जी ने स्वपन की चर्चा सिरमौर नरेश से की जिन्होंने श्रद्धापूर्वक त्रिलोकपुर मंदिर बनवाया।

मंदिर का दो बार सन् 1823 में राजा फतेह प्रकाश तथा सन् 1851 (इकावन) में राजा रघुवीर प्रकाश के शासन में जीर्णोद्धार किया गया था। इस प्रकार सदियों से माता बालासुंदरी धाम त्रिलोकपुर में चैत्र और अश्विनी मास के नवरात्रों में मेले का आयोजन किया जाता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु हिमाचल के अलावा साथ लगते हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड से टोलियो में मां भगवती के दर्शन करने आते हैं।

वर्तमान में यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर उभर चुका है। मेले के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए लंगरों का आयोजन किया जाता है। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के ठहराव के लिए यात्रि निवास और सराय आदि उपलब्ध हैं। इसके अलावा सुरक्षा, स्वास्थ्य व अन्य जरूरी व्यवस्थायें भी उपलब्ध करवाई जाती हैं। भक्तों का मां बालासुंदरी पर अटूट विश्वास और श्रद्धा है। त्रिलोकपुर स्थित शक्ति धाम में माता त्रिपुरी बालासुंदरी साक्षात रूप में विराजमान है। यहां पर की गई मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं भगतों सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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त्रिलोकपुर स्थित माता बालासुंदरी मंदिर में हर वर्ष दो बार चैत्र और अश्वनी मास के नवरात्र के अवसर पर नवरात्र मेलों का आयोजन किया जाता है। चैत्र नवरात्र के अवसर पर होने वाले मेले को यहां बड़ा मेला और अश्वनी मास के नवरात्र पर होने वाले मेले को छोटा मेला कहा जाता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र का मेला 22 मार्च से 6 अप्रैल, 2023 तक आयोजित किया जा रहा है।

 

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चिंतपूर्णी मंदिर में 22 से शुरू होंगे चैत्र नवरात्र मेले, 4 सेक्टर में बंटेगा शहर

डीसी ऊना राघव शर्मा ने तैयारियों को लेकर की समीक्षा बैठक

ऊना। हिमाचल प्रदेश के जिला उना में माता श्री चिंतपूर्णी मंदिर में चैत्र नवरात्र मेलों का आयोजन 22 से 30 मार्च तक होगा। जिसको लेकर चिंतपूर्णी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष व उपायुक्त ऊना राघव शर्मा ने संबंधित तैयारियों को लेकतर समीक्षा बैठक की। उपायुक्त ने बताया कि एसडीएम अंब मेला अधिकारी होंगे, जबकि डीएसपी अंब को पुलिस मेला अधिकारी नियुक्त किया गया है।

मेले के दौरान कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए मेला क्षेत्र को चार सैक्टर में बांटा जाएगा तथा लगभग 400 पुलिस व होमगार्ड जवान तैनात किए जाएंगे। मेले के दौरान मंदिर व मेला परिसर में सीसीटीवी कैमरों का समुचित उपयोग किया जाएगा ताकि असामाजिक तत्वों के जरिए होने वाली अप्रिय घटनाओं को रोका जा सके।

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उपायुक्त ऊना ने बताया कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा के दृष्टिगत मेला अवधि के दौरान मंदिर में नारियल ले जाने पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। नारियल मंदिर के मुख्य गेट से पहले डीएफएमडी के स्थान पर लाईन में ही यात्रियों से जमा कर लिए जाएंगे। इसके अलावा श्रद्धालुओं के लिए दर्शन पर्ची अनिवार्य होगी तथा यह पर्ची बाबा श्री माईदास सदन, नया बस अड्डा तथा शंभू बैरियर से प्राप्त की जा सकती है।

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उन्होंने बताया कि मेले के दौरान श्रद्धालुओं को आपातकालीन चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने को चिंतपूर्णी अस्पताल में 24 घंटे सेवाएं प्रदान की जाएंगी। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य विभाग तथा आयुर्वेद विभाग द्वारा एक-एक अतिरिक्त मेडिकल पोस्ट भी स्थापित की जाएगी जहां पर श्रद्धालुओं को आवश्यकता के अनुसार उपचार प्रदान किया जाएगा।

उन्होंने मेले के दौरान श्रद्धालुओं को स्वच्छ व साफ-सुथरा पेयजल मुहैया करवाने के लिए जल शक्ति विभाग को पेयजल स्रोतों की स्वच्छता व समुचित पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित बनाने के निर्देश दिए।

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उपायुक्त ऊना ने बताया कि मेले के दौरान लंगर लगाने के लिए लंगर कमेटी से अनुमति लेना अनिवार्य है। इसके लिए 10 हज़ार रूपये फीस निर्धारित की गई है। इसके अलावा लंगर आयोजकों को लंगर कमेटी द्वारा स्वच्छता व सड़क सुरक्षा सहित सभी निर्धारित नियमों का पालन करना होगा अन्यथा उन्हें लंगर के लिए जारी किए गए परमिट रद्द किए जा सकते हैं। लंगर का आयोजन सड़क से निर्धारित दूरी पर किया जाएगा ताकि श्रद्धालुओं को आवाजाही तथा यातायात में किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।

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उपायुक्त ने बताया कि माता श्री चिंतपुर्णी में भिक्षावृति पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। इसे रोकने के लिए पुलिस व होमगार्ड के जवान कड़ी नजर रखेंगे। उन्होंने आगजनी की घटनाओं की रोकथाम के लिए अग्निशमन विभाग को मेले से पूर्व अग्निशमन यंत्रों को उपकरणों को पूरी तरह से कार्यशील करने के निर्देश दिए। बैठक में यातायात प्रबंधन, विद्युत व्यवस्था, पार्किंग व्यवस्था, डियूटी पर तैनात अधिकारियों व कर्मचारियों के रहने संबंधी व्यवस्था के अतिरिक्त साफ सफाई की व्यवस्था रखने बारे भी विस्तार से चर्चा की गई।

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इस अवसर पर मंदिर अधिकारी बलवंत पटियाल, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ मंजू बहल, जिला खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति नियंत्रक राजीव शर्मा, अधिशाषी अभियंता लोक निर्माण विभाग नितिन चैधरी, खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ राजीव गर्ग, पुलिस उपनिरीक्षक रमेश चंद, प्रधान ग्राम पंचायत छपरोह शशी कालिया, प्रधान ग्राम पंचायत नारी अल्का संधु सहित कई अन्य विभागों के अधिकारी व कर्मचारी मौजूद रहे।

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बाबा बालक नाथ मंदिर चैत्र मेले, बिना अनुमति लंगर पर पाबंदी

14 मार्च से 13 अप्रैल तक चलेंगे मेले

बड़सर। प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बाबा बालक नाथ मंदिर में 14 मार्च से 13 अप्रैल तक चल रहे चैत्र मास मेलों के दौरान किसी भी तरह की अप्रिय घटना को रोकने के लिए व्यापक प्रबंध किए गए हैं। इसी कड़ी में एक आदेश जारी करते हुए बड़सर के एसडीएम शशि पाल शर्मा ने बड़सर उपमंडल में मेलों की अवधि के दौरान यानी 14 मार्च से 13 अप्रैल तक किसी भी तरह के हथियार लेकर चलने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। उन्होंने बताया कि मेला डयूटी पर तैनात अधिकारियों-कर्मचारियों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होगा।

एक अन्य आदेश जारी करते हुए एसडीएम ने मंदिर परिसर, लंगर परिसर और न्यास कैंटीन नंबर एक से कैंटीन नंबर 2 तक के क्षेत्र में ढोल-नगाड़ों, बैंड-बाजे और लाउड स्पीकर इत्यादि पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है।

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उन्होंने बताया कि मंदिर अधिकारी की अनुमति के बगैर निजी लंगरों पर भी पाबंदी रहेगी। एसडीएम ने बताया कि इन आदेशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

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बाबा बालक नाथ मंदिर में चैत्र मास मेलों का आगाज, उमड़ा आस्था का सैलाब

डीसी देबश्वेता बनिक ने किया शुभारंभ

हमीरपुर। उत्तर भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध में चैत्र मास मेले मंगलवार से आरंभ हो गए। हमीरपुर की डीसी एवं बाबा बालक नाथ मंदिर न्यास की आयुक्त देबश्वेता बनिक ने मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना, हवन और झंडा रस्म के साथ चैत्र मास मेलों का शुभारंभ किया।

डीसी ने एसपी डॉ. आकृति शर्मा, एसडीएम बड़सर एवं बाबा बालक नाथ मंदिर न्यास के अध्यक्ष शशिपाल शर्मा, पूर्व विधायक मनजीत डोगरा, मंदिर के महंत राजेंद्र गिरि और अन्य गणमान्य लोगों के साथ मंदिर में पूजा-अर्चना और हवन किया तथा उसके बाद झंडा रस्म में भाग लिया। एक माह तक चलने वाले इन मेलों के शुभारंभ अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी।

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झंडा रस्म और अन्य परंपराओं के निर्वहन के बाद डीसी ने मंदिर परिसर में विभिन्न व्यवस्थाओं का जायजा लिया तथा मेलों के संचालन के संबंध में अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी किए।

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देबश्वेता बनिक ने बताया कि चैत्र मास मेलों के दौरान बाबा बालक नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के मद्देनजर सभी आवश्यक प्रबंध किए गए हैं। इस दौरान मंदिर को 24 घंटे खुला रखने का निर्णय लिया गया है। मंदिर परिसर में सुरक्षा, सफाई व्यवस्था, बिजली-पानी, चिकित्सा, लंगर, पार्किंग और अन्य सभी आवश्यक प्रबंध किए गए हैं।

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दियोटसिद्ध के आस-पास की सभी सड़कों पर यातायात सुचारू बनाए रखने के लिए भी पर्याप्त संख्या में पुलिस और होमगार्डस जवानों की तैनाती की गई है। इस अवसर पर डीसी ने श्रद्धालुओं से भी बातचीत की और मंदिर परिसर में उपलब्ध करवाई जा रही विभिन्न सुविधाओं के संबंध में फीडबैक भी लिया।

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हिमाचल के मंदिरों में ऑनलाइन होगी पूजा, हवन-भंडारे की बुकिंग शुरू

सरकार ने शुरू किया पायलट प्रोजेक्ट

कांगड़ा। चैत्र नवरात्रि का त्योहार 22 मार्च से शुरू होगा। ऐसे में अब हर दिन मां अंबे के मंदिर में तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। वहीं, भीड़ को देखते हुए मंदिरों में अब ऑनलाइन बुकिंग शुरू हो चुकी है।

बता दें कि हिमाचल प्रदेश के मंदिरों को ऑनलाइन किया जाएगा। इसके बाद लोग शक्तिपीठों में हवन, भंडारे, जगराते के लिए ऑनलाइन बुकिंग करा सकेंगे।

सुक्खू सरकार मंदिरों को ई-प्रणाली से जोड़ने जा रही है, जिससे लोगों को दर्शन करने में आसानी होगी। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सरकार यह व्यवस्था शुरू करने जा रही है। इस व्यवस्था के शुरू होने के बाद देश दुनिया में बैठे लोग भी हिमाचल के मंदिरों में मां अंबे के दर्शन कर सकते हैं। साथ ही दिल खोलकर दान कर सकेंगे।

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सरकार यह व्यवस्था ऊना के चिंतपूर्णी मंदिर से शुरू कर रही है। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने अधिकारियों को इस व्यवस्था को चिंतपूर्णी मंदिर से शुरू करने के लिए कहा है। इस पर अधिकारियों ने काम शुरू कर दिया है और सॉफ्टवेयर भी तैयार किया जा रहा है। जल्द यहां पर लोगों को ऑनलाइन पूजा करने की सुविधा मिलेगी।

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बता दें कि सुक्खू सरकार का यह पायलट प्रोजेक्ट अगर सफल रहा तो प्रदेश के अन्य बड़े मंदिरों में भी इस व्यवस्था को शुरू किया जाएगा। जिससे दूर-दराज बैठे लोगों को मंदिर के दर्शन करने का मौका मिलेगा। इस व्यवस्था के शुरू होने के बाद मंदिर का पुजारी पर्सनली व्यक्ति से जुड़ेगा। स्लॉट की बुकिंग कराने के बाद हवन करेगा। वहीं, ऑनलाइन पेमेंट करने के बाद स्लॉट बुकिंग होगी।

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गौरतलब है कि कोविड काल में हिमाचल के मंदिरों में ऑनलाइन आरती की व्यवस्था शुरू की गई थी। इस व्यवस्था में और सुधार करते हुए अब हिमाचल के मंदिर में सारी व्यवस्था को ऑनलाइन सुविधा से जोड़ने की तैयारी शुरू हो गई है।

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कब और किस समय पर करें होलिका दहन, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

इस साल रंगों की होली खेलने और होलिका दहन को लेकर संशय बना हुआ है। फाल्गुन महीने की पूर्णिमा 6 और 7 मार्च 2023 को है, लेकिन सोमवार की पूरी रात पूर्णिमा रहेगी और मंगलवार को दिनभर रहेगी। होलिका दहन पूर्णिमा पर सूर्यास्त के बाद किया जाता है।

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होलिका दहन के अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है। पूर्णिमा तिथि दो दिन है जिस वजह से  इस बार होलिका दहन की डेट को लेकर लोगों में संशय की स्थिति पैदा हो गई है। होलिका दहन की सही तिथि क्या है और शुभ मुहूर्त क्या रहेगा इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताते हैं …

फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 6 मार्च, 2023 की शाम 4.17 पर शुरू होगी और पूर्णिमा तिथि का समापन 7 मार्च, 2023 को शाम 6.09 तक है। होलिका दहन का मुहूर्त किसी त्योहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक है। होलिका दहन की पूजा अगर अनुपयुक्त समय पर हो जाए तो यह दुर्भाग्य और पीड़ा देती है।

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दरअसल, होलिका दहन का मुहूर्त तीन चीजों पर निर्भर करता है। पूर्णिमा तिथि, प्रदोष काल और भद्रा न हो। ऐसा बहुत ही कम होता है कि होलिका दहन इन तीनों चीजों के साथ होने पर हो। लेकिन पूर्णिमा तिथि के दिन होलिका दहन का होना बेहद जरूरी है।

पूर्णिमा के रहते हुए पुच्छ काल में यानी भद्रा के आखिरी समय में होलिका दहन  करना शुभ माना जाता है। होलिका दहन  6 और 7 मार्च के बीच रात 12 बजकर 40 मिनट से 2 बजे तक करना शुभ होगा क्योंकि 7 मार्च को पूर्णिमा तिथि शाम 6 बजकर 10 मिनट तक ही है, लेकिन कई जगह पर 7 मार्च को भी होलिका दहन किया जाएगा।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 07 मार्च, मंगलवार को शाम 06 बजकर 12 मिनट से रात 08 बजकर 39 मिनट तक रहेगा।

होलिका दहन का महत्व

हिंदू धर्म के अनुसार होलिका दहन का पौराणिक और धा4मिक महत्व दोनों ही है क्योंकि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाती है। इसके साथ ही इस दिन होलिका दहन की विधिवत पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इतना ही नहीं इसके साथ ही बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए अग्नि देवता को धन्यवाद देते हैं।

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होलिका दहन पूजा विधि

होलिका की पूजा से पहले भगवान नरसिंह और प्रहलाद का ध्यान करें। इसके बाद होलिका में फूल, माला, अक्षत, चंदन, साबुत हल्दी, गुलाल, पांच तरह के अनाज, गेहूं की बालियां आदि चढ़ा दें। इसके साथ ही भोग लगा दें। फिर कच्चा सूत लपेटते हुए होलिका के चारों ओर परिवार के साथ मिलकर परिक्रमा कर लें।

इसके बाद होलिका में जल का अर्घ्य दें और सुख-समृद्धि की कामना करें।  फिर सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका दहन करें। होलिका दहन के समय अग्नि में कंडे, उबटन, गेहूं की बाली, गन्ना, चावल आदि अर्पित करें। इसके साथ ही होलिका दहन के अगले दिन होलिका दहन की राख माथे में लगाने के साथ पूरे शरीर में लगाएं। ऐसा करने से व्यक्ति को हर तरह के रोग-दोष से छुटकारा मिलेगा।

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शुरू हुआ होलाष्टक : 9 दिन नहीं होंगे कोई शुभ कार्य, उग्र होंगे ये 8 ग्रह

होलिका दहन पर होता है होलाष्टक का समापन

27 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो गया है। हिंदू धर्म के अनुसार होलाष्टक में भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रकार की यातनाएं दी गई थीं इस वजह से होलाष्टक को अशुभ माना जाता है। होलाष्टक में ग्रह भी उग्र होते हैं, इस वजह से कोई शुभ कार्य करने या बड़े निर्णय लेने से बचा जाता है।

हिन्दू कैलेंडर की 8 तिथियों में होलाष्टक होता है। इस साल होलाष्टक 8 नहीं बल्कि 9 दिनों का है। होलाष्टक का प्रारंभ फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को होता है और यह फाल्गुन पूर्णिमा यानी होलिका दहन तक रहता है। होलिका दहन 7 मार्च को है। ऐसे में इस साल होलाष्टक 27 फरवरी से 7 मार्च तक है।

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पंचांग के अनुसार, आज 27 फरवरी को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि की शुरूआत 12:58 एएम से हुई है और इसका समापन 28 फरवरी को 02:21 एएम पर होगा। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि आज से प्रारंभ हो रहा है, इसलिए आज प्रात:काल से होलाष्टक लग गया है।

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इस साल 06 मार्च को शाम 04:17 बजे से फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि शुरू होगी और 07 मार्च को शाम 06:09 बजे इसका समापन होगा. ऐसे में होलिका दहन 7 मार्च को है तो होलाष्टक का समापन भी उस दिन होगा.

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होलाष्टक के कारण बंद हुए शुभ कार्य होली के दिन से यानि चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ हो जाएंगे। यदि आप को कोई नया या शुभ कार्य करना चाहते हैं तो उसे 8 मार्च से कर सकते हैं। 27 फरवरी से 7 मार्च के बीच उसे करने से बचें।

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होलाष्टक की 8 तिथियों में 8 प्रमुख ग्रह उग्र रहेंगे। ऐसे में व्यक्ति का मन अशांत हो सकता है, इस वजह से होलाष्टक के समय में बड़े फैसलों को करने से बचने की सलाह दी जाती है। होलाष्टक में क्रमश: चंद्रमा, सूर्य, शनि, शुक्र, गुरु, बुध, मंगल और राहु ग्रह अष्टमी से पूर्णिमा के बीच उग्र रहते हैं। होलाष्टक में आप चाहें तो नवग्रह शांति के उपाय कर सकते हैं।

होलाष्टक के दौरान क्या करें – क्या न करें

होलाष्टक में भगवान की भक्ति और पूजा पाठ में समय व्यतीत करें।

होलाष्टक में आमलकी एकादशी, रंगभरी एकादशी, शनि प्रदोष जैसे व्रत आने वाले हैं। फाल्गुन पूर्णिमा पर स्नान दान करें और माता लक्ष्मी की पूजा करके धन-समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

होलाष्टक के इन 9 दिनों में विवाह, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश या कोई नया कार्य न करें।

होलाष्टक के दौरान किसी नए वाहन की खरीदारी भी करना अशुभ माना जाता है।

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मार्च में होली और चैत्र नवरात्रि समेत हैं ये व्रत और त्योहार, देखें पूरी लिस्ट

हिंदू पंचांग में बहुत ही खास होता है ये महीना

फरवरी का महीना खत्म होने की ओर है। तीन दिन बाद नया महीना मार्च शुरू हो जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्च का महीना बहुत ही खास होता है। मार्च में कई व्रत और त्योहार पड़ने वाले हैं। इस महीने होली से लेकर चैत्र नवरात्रि समेत कई व्रत और त्योहार आएंगे। आज हम इस आर्टिकल में मार्च महीने में पड़ने वाले प्रमुख व्रत-त्योहार की तारीख बताएंगे ताकि आप समय से अपनी तैयारी कर सकें। इसके साथ ही मार्च महीने के महत्वपूर्ण दिनों की भी जानकारी देंगे

बिलासपुर: घुमारवीं शहर में अब ट्रैफिक नियम तोड़े तो कटेगा ऑनलाइन चालान

ये है मार्च माह के त्योहारों और व्रतों की लिस्ट..

आमलकी रंगभरनी एकादशी 3 मार्च

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी या फिर रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस बार 3 मार्च को रंगभरी एकादशी है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और जो लोग व्रत नहीं भी रख रहे हों, उनको आंवले का जरूर सेवन करना चाहिए। इससे कई गुणा पुण्य की प्राप्ति होती है। मथुरा में रंगभरनी एकादशी के दिन बांके बिहारीजी के मंदिर में होली का विशेष आयोजन होता है। वहीं काशी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन शिव-पार्वती का गौना होता है और पूरे शहर में होली खेलते हुए डोला निकाला जाता है।

होलिका दहन 7 मार्च

होलिका दहन इस बार 7 मार्च को की जाएगी और 8 मार्च की सुबह होली का रंग खेला जाएगा। फाल्‍गुन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा पर होली मनाई जाती है। इस दिन होलिका दहन करके बुराई पर अच्‍छाई की जीत के प्रतीक के रूप में यह त्‍योहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्‍यताओं में बताया जाता है कि इस दिन होलिका ने भगवान विष्‍णु के भक्‍त प्रह्लाद को जलाने की कोशिश की तो ईश्‍वर ने उसे दंड दिया और वह खुद ही इसकी अग्नि में जलकर राख हो गई थी।

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शब-ए-बारात 8 मार्च

मुस्लिमों का प्रमुख त्‍योहार शब-ए-बारात भी 8 मार्च हो है। इस दिन विश्व के सभी मुस्लिम अल्लाह की इबादत करते हैं और दुआएं मांगते हैं। साथ ही अपने गुनाहों के लिए खुदा से माफी मांगते हैं। की तौबा करते हैं।

श्रीरंग पंचमी 12 मार्च

चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी रंग खेलने की परंपरा मनाई जाती है। इस तिथि पर अपने इष्ट देवता को रंग अर्पित करके रंगों की होली खेलते हैं। इस दिन को देव पंचमी भी कहते हैं क्योंकि इस दिन देवतागण भी रंगोत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन रंगोत्सव से तमोगुण का नाश होता है और जीवन में आनंद की वृद्धि होती है। रंग पंचमी को लेकर ऐसी मान्‍यता है कि होलाष्टक के दिन कामदेव के भस्म हो जाने पर देवलोक में उदासी छा गई थी। तब सभी देवताओं ने कामदेव जीवित करने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की थी, तब भगवान शिव ने कामदेव को किया था। उस दिन चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी रंग पंच फिर से जीवित हो गए थे। कामदेव के फिर से जीवित होने पर देवलोक में खुशी का माहौल छा गया था, इसी उपलक्ष्य में रंग पंचमी का त्योहार मनाते हैं।

पापमोचिनी एकादशी 18 मार्च

जैसा कि नाम से ही स्‍पष्‍ट हो रहा है। चैत्र मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहते हैं और इस व्रत को करने से आपके सभी पापों का अंत होता है और अंत में देवलोक की प्राप्ति होती है। इस साल यह एकादशी 18 मार्च को पड़ रही है। इस दिन व्रत करने से सारे संकटों से मुक्ति मिलती है।

मासिक शिवरात्रि 20 मार्च

प्रत्‍येक महीने एक शिवरात्रि आती है और यह हर माह की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। भगवान शिव को समर्पित यह तिथि इस बार 20 मार्च को है। मासिक शिवरात्रि का व्रत परिवार की सुख-शांति के साथ संतान को कष्‍टों से दूर रखने के लिए किया जाता है। शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं में मासिक शिवरात्रि का व्रत करना सबसे उत्तम माना गया है। इस व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत जीवन पर्यंत करें या फिर आप चाहें तो 14 साल बाद उद्यापन भी कर सकते हैं।

चैत्र अमावस्या 21 मार्च (भौमवती)

चैत्र मास की अमावस्‍या तिथि धार्मिक दृष्टि से खास मानी जाती है और इस साल 21 मार्च को चैत्र अमावस्‍या है। यह अमावस्‍या 21 मार्च, मंगलवार को पड़ रही है, इसलिए इसे भौमवती अमावस्‍या कहा जा रहा है। इस दिन पितरों के निमित्‍त दान-पुण्य करने का शास्‍त्रों में खास महत्‍व माना गया है।

गुड़ी पड़वा, चैत्र नवरात्र और विक्रमी संवत 2080 आरंभ, 22 मार्च

हिंदू नववर्ष का आरंभ चैत्र मास की प्रतिपदा से माना जाता है। चैत्र मास की प्रतिपदा से ही नवरात्र का आरंभ होता है। इस बार चैत्र नवरात्र का आरंभ 22 मार्च से हो रहा है और इसी दिन से हिंदू नववर्ष का आरंभ माना जा रहा है। इसी दिन महाराष्‍ट में गुड़ी पड़वा का प्रमुख त्योहार मनाया जाता है।

गौरी तृतीया (गणगौर) 24 मार्च

प्रमुख रूप से राजस्‍थान में मनाया जाने वाला यह त्‍योहार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती है। गणगौर इस बार 24 मार्च को मनाई जागी। है। 16 दिन तक चलने वाली गणगौर पूजा यूं तो राजस्थान का मुख्य पर्व है, लेकिन इसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात के कुछ इलाकों में मनाया जाता है। गणगौर को गौरी तृतीया भी कहते हैं।

रमजान रोजे शुरू 24 मार्च

इस बार मुस्लिम समुदाय के पाक महीने रमजान का आरंभ भी 24 मार्च से हो रहा है। करीब एक महीने के रोजे रखने के बाद मुस्लिम लोग 21 या फिर 22 अप्रैल को ईद मनाएंगे। मुस्लिम कैलेंडर के नौवें महीने को पाक महीना माना जाता है और इस पूरे महीने मुसलमान सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले अन्न और पानी ग्रहण नहीं करते।

दुर्गाष्टमी 29 मार्च

चैत्र नवरात्र की अष्‍टमी तिथि को दुर्गाष्टमी कहते हैं। इसे महाअष्‍टमी कहा जाता है। इस साल चैत्र नवरात्र की दुर्गाष्‍टमी 29 मार्च को है। दुर्गाष्‍टमी पर व्रती कन्‍याओं को भोजन करवाते हैं और उन्‍हें यथा संभव दान देते हैं।

रामनवमी 30 मार्च

चैत्र नवरात्र की नवमी को देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार इस दिन भगवान राम का जन्‍म हुआ था। नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र में और कर्क लग्न में अयोध्या में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या की कोख से हुआ था। इस बार यह तिथि 30 मार्च को है। इस दिन पूरे देश में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और भगवान राम की विधि विधान से पूजा की जाती है। इस दिन हजारों लोग अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी में स्नान करते हैं। इसी दिन अयोध्या में चैत्र राम मेले का भव्य आयोजन भी किया जाता है।

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अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव संपन्न, देव माधो राय की जलेब में पहुंचे 200 देवी-देवता

बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने समापन समारोह में की शिरकत

मंडी। हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में चल रहा अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव आज संपन्न हो गया। समापन समारोह की अध्यक्षता राजस्व, बागवानी व जनजातीय विकास मंत्री जगत सिंह नेगी ने की। उन्होंने देव माधोराय मंदिर में पूजा-अर्चना कर पड्डल मैदान तक निकाली गई देव माधो राय की भव्य शोभा यात्रा (जलेब) में भी भाग लिया। उन्होंने इससे पहले बाबा भूतनाथ मंदिर में भी पूजा-अर्चना की।

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महोत्सव के अन्तिम दिन शहर के चैहटा बाजार में चैहटा की जातर का आयोजन भी किया गया। जिसमें 200 से अधिक देवी-देवताओं ने भाग लिया। लोगों ने भारी संख्या में चैहटा की जातर में पहुंच कर देवी देवताओं के दर्शन कर उनका आशीर्वाद हासिल किया। मंडी जनपद के अराध्य देव देव कमरूनाग सेरी मंच पर लोगों को दर्शन देने के लिए विराजमान रहे। अपने अराध्य देव कमरूनाग के दर्शनों के लिए सेरी मंच पर सुबह से ही लोगों की भारी भीड़ लगी रही।मेला समिति की ओर से उपायुक्त अरिंदम चौधरी ने देवी-देवताओं को नजराना भेंट किया।

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इस अवसर पर पड्डल मैदान में जनसमूह को संबोधित करते हुए राजस्व, बागवानी व जनजातीय विकास मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि मंडी शिवरात्रि ने पूरे विश्व में अध्यात्मिक प्रेरणा पुंज के रूप में अलग पहचान कायम की है। उच्च परंपराओं को संजोये शिवरात्रि महोत्सव समृद्वि, भाईचारा एवं प्रेमभाव को भी दर्शाता है। शैव, वैष्णव व लोक आस्था के साथ लोक संस्कृति का यह अनूठा समागम सभी के लिए एक बेजोड़ अनुभव है।

मंडी शहर हिमाचल प्रदेश के प्राचीनतम शहरों में से एक है जो विशेष तौर पर ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से अपनी अलग पहचान रखता है। यहां स्थित प्राचीन एवं वैभवशाली मंदिर मंडी शहर को विशेष आकर्षण प्रदान करते हैं और इनके कारण ही मंडी को छोटी काशी के नाम से जाना जाता है। मंडी शिवरात्रि महोत्सव देव समाज का उत्सव है तथा इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि सरकार की ओर से पहली मंडी शिवरात्रि महोत्सव में देव समाज पर एक करोड़ से ज्यादा की राशि दी गई है। हम सबका यह दायित्व है कि हम अपनी संस्कृति एवं परंपराओं के प्रति सजग रहें और इन्हें संरक्षण प्रदान करें ताकि आने वाली पीढ़ियां भी अपने समृद्व अतीत पर गौरव अनुभव कर सकें।

उन्होंने कहा कि मेले और त्योहार लोगों को नई ऊर्जा प्रदान करते हैं और हमें इनमें सक्रियता से भाग लेना चाहिए और निस्वार्थ भाव से पीड़ित मानवता की मदद करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज से बुराइयों का उन्मूलन प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेवारी है। उन्होंने युवाओं से समृद्ध संस्कृति का सम्मान करने तथा इसे आगे बढ़ाने की अपील की।

इस अवसर पर उन्होंने विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान हासिल करने वालों को भी पुरस्कार प्रदान किए। उपायुक्त एवं मेला समिति के अध्यक्ष अरिंदम चैधरी ने मुख्यातिथि का स्वागत किया। कार्यक्रम में विधायक चंद्रशेखर, अनिल शर्मा, जिला परिषद सदस्य चंपा ठाकुर, नगर निगम के उप महापौर विरेन्द्र भट्ट, पार्षद राजेन्द्र मोहन, जस्टिस धर्म चंद चैधरी सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे ।

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शाही अंदाज में निकली ‘माधोराय’ की जलेब, देव ध्वनियों से गुंजायमान हुई ‘छोटी काशी’

मुख्य संसदीय सचिव सुंदर सिंह ठाकुर रहे मध्य जलेब के मुख्यातिथि

मंडी। छोटी काशी मंडी में 19 फरवरी से 25 फरवरी तक मनाए जा रहे
अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव की मध्य जलेब का आयोजन बुधवार को किया गया। जलेब में मुख्य संसदीय सचिव सुन्दर सिंह ठाकुर मुख्यातिथि के रूप में शामिल हुए। उन्होंने जलेब में शामिल होने से पहले राजदेवता माधोराय मंदिर में पूजा अर्चना कर उनका आर्शीवाद लिया। देव ध्वनियों के साथ राजदेवता माधोराय के मंदिर से शुरू हुई मध्य जलेब पड्डल मैदान में सम्पन्न हुई। जलेब में दर्जनों देवी-देवता अपने वाद्य यंत्रों के साथ शामिल हुए। शोभायात्रा के दौरान देवताओं के वाद्य यंत्रों से निकलने वाली देव ध्वनियों से पूरा शहर गुंजायमान रहा।

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इस अवसर पर पड्डल मैदान में सुन्दर सिंह ठाकुर ने कहा कि मंडी शहर का यह देव समागम एक अनूठा महोत्सव है जिसमें श्रद्धालुओं को देवी-देवताओं के दर्शन करने का अवसर प्राप्त होता है। लोगों को छोटी काशी और इसके ग्रामीण क्षेत्रों की पारम्परिक संस्कृति की जानकारी भी मिलती है।

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मुख्य संसदीय सचिव ने कहा कि वर्तमान में प्रत्यक्ष कुछ है तो वह हमारे देवी देवता हैं और हमारे देव समाज को आगे बढ़ाने वाले देवलु देव समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो अपना घर परिवार छोड़कर देव परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू के प्रयासों से पहली बार देव समाज को एक करोड़ रुपये की राशि मिली है जो देव समाज को गौरवान्वित करने वाला है।

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उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह ने देव समाज के लिए अनेक योजनाएं आरम्भ की। जिसके कारण देव समाज आगे बढ़ा है। मंडी में अत्याधुनिक देव सदन का निर्माण किया गया है जिससे इस महोत्सव में आने वाले देवताओं और देवलुओं को बेहतर सुविधा उपलब्ध हुई है। उन्होंने कहा कि कुल्लू और मंडी का देव समाज एक हो रहा है और भविष्य में एक साथ आगे बढ़कर देव परम्पराओं को आगे ले जाने के लिए सामुहिक प्रयास आवश्यक है।

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उन्होंने कहा कि मेले हमारी प्राचीन संस्कृति व सभ्यता के प्रतीक है, लेकिन मण्डी में मनाए जाने वाले अन्र्तराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव की अपनी अलग पहचान है। उपायुक्त एवं अध्यक्ष, शिवरात्रि मेला आयोजन समिति अरिंदम चौधरी ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया तथा उन्हें शाल व स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।

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इस अवसर पर विधायक धर्मपुर चन्द्रशेखर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चेत राम ठाकुर, चंपा ठाकुर, लाल सिंह कौशल, नरेश चौहान, पुलिस अधीक्षक शालिनी अग्निहोत्री और विभिन्न विभागों के अधिकारी, संगठनों के पदाधिकारी व शहर के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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