शिमला। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कांग्रेस के 6 बागी विधायकों को लेकर कहा कि अगर कोई जनता के वोट से चुनकर आता है और बिक जाता है तो जनता उसका जवाब देती है। यह विधायक हिमाचल की जनता को फेस तक नहीं कर पाएंगे।
बागी विधायक हमारे भाई हैं। गलती की है और गलती माफ भी की जा सकती है। अगर वो आना चाहते कांग्रेस की विचारधारा के साथ तो स्वागत है। पर उनका फोन तक नहीं लग रहा है। विधायकों की पत्नियों से बात हो रही है। दो विधायकों की पत्नियां तो उनके पास आई थीं।
यह बात मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शिमला में मीडिया से बातचीत में कही है। वहीं, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी ली है। उन्होंने कहा कि हमसे भी कोई कमी रही है। हम शराफत में रहे। वहीं, इंटेलिजेंस फेलियर भी हुआ है।
शिमला। हिमाचल में कांग्रेस के 6 विधायकों की बगावत के साथ पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश की थी। इससे सुक्खू सरकार पर संकट मंडरा गया था।
तमाम गतिरोध के चलते कांग्रेस हाईकमान ने कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और भूपेश बघेल को ऑब्जर्वर बनाकर भेजा था।
होटल सिसिल में ऑब्जर्वर ने हिमाचल कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, विक्रमादित्य सिंह और डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री से मुलाकात की। सबसे मुलाकात के बाद तय हुआ कि विक्रमादित्य सिंह अपने इस्तीफे को लेकर दबाव नहीं डालेंगे।
मीडिया से बातचीत में हिमाचल कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला ने इस बात की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ऑब्जर्वर ने पहले पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह से बातचीत की और बाद में विक्रमादित्य सिंह के साथ बात की और इनकी राय जानी।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी कहा कि वह विक्रमादित्य सिंह के इस्तीफे को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। अब तय हुआ है कि विक्रमादित्य सिंह अपने इस्तीफे पर दबाव नहीं डालेंगे यानी प्रेस नहीं करेंगे।
पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि जो ऑब्जर्वर आए हैं, उन्होंने मुख्यमंत्री, हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष, मंत्रियों और विधायकों से राय ली है। मेरा मानना है कि व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण संगठन होता है और संगठन को बनाए रखना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है।
मैंने जो सुबह इस्तीफे की पेशकश की थी, जिसे मुख्यमंत्री ने नकारा था। पार्टी हित में मैं उसे प्रेस नहीं करना चाहूंगा। संकट को लेकर विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि किसी प्रकार का संकट नहीं था, मात्र एक क्रिएशन थी। हर तरीके का हल होता है, बस सकारात्मक सोच होनी चाहिए।
कांग्रेस पार्टी के विधायक पार्टी के प्रति रहेंगे वफादार
शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजनीति में इस समय भारी खलबली मची हुई है। राज्यसभा चुनाव के बाद सियासी पारा चढ़ा हुआ है। शिमला विधानसभा परिसर और सदन में माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है।
इसी बीच कांग्रेस हाईकमान ने डीके शिवकुमार और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हिमाचल प्रदेश में आब्जर्वर नियुक्त किया है। डीके शिवकुमार कांग्रेस को संकट से उबारने हिमाचल आ रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से ये जानकारी दी है।
डीके शिवकुमार ने कहा, कांग्रेस आलाकमान के निर्देशानुसार मैं हिमाचल प्रदेश पहुंच रहा हूं। इसके अलावा किसी भी अफवाह में शामिल होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, क्योंकि मुझे विश्वास है कि कांग्रेस पार्टी के विधायक पार्टी के प्रति वफादार रहेंगे और जो जनादेश उन्हें दिया गया है, उसका पालन करेंगे।
हालांकि, जिस बात पर सवाल उठाया जाना चाहिए और चिंता की बात यह है कि सत्ता हासिल करने के मामले में भाजपा किस हद तक जा रही है, इस प्रक्रिया में जानबूझकर लोकतंत्र और सार्वजनिक जनादेश को कुचलने का प्रयास कर रही है।”
शिमला। हिमाचल बीजेपी के नवनिर्वाचित राज्यसभा सांसद हर्ष महाजन ने कहा कि कांग्रेस बिखर गई है। कांग्रेस का ग्राफ जीरो हो रहा है। प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है।
उन्होंने विक्रमादित्य सिंह के मंत्री पद छोड़ने के फैसले को सही करार दिया है। हर्ष महाजन ने कहा कि विधायक सरकार में प्रताड़ित हैं। हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है। विधायक खुद हमारे पास आ रहे हैं। कांग्रेस में फाइव स्टार कल्चर है। लोगों को झूठी गारंटियां दी गईं।
शिमला। हिमाचल की राजनीति में खलबली मच गई है। राज्यसभा चुनावों में बड़ी हार के बाद कांग्रेस को एक और बड़ा झटका लगा है। पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। विक्रमादित्य ने कहा कि यह घटना लोकतंत्र के खिलाफ है।
इस तरह का घटनाक्रम हिमाचल में चिंतजनक है। क्या कारण रहे यह जानना जरूरी है। 2022 में विधानसभा चुनाव हुए उस समय सभी ने मिलकर चुनाव लड़े। वीरभद्र का नाम चुनावों में इस्तेमाल किया गया, सबके योगदान से सरकार बनी। एक साल की सरकार की कार्यप्रणाली पर बेबाक तरीके से कहना जरूरी है।
एक साल की सरकार की व्यवस्था में सरकार में विधायकों को दबाने की कोशिश हुई जिसका ये परिणाम है। हाई कमान के सामने मामला उठाया लेकिन जिस तरह से होना चाहिए था वैसा नहीं हुआ।
प्रदेश के युवा नौजवान साथियों ने सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्या सरकार उनके लिए कुछ कर पाई हैं? केवल ये कहना कि हमने किया है? ये सब घटनाक्रम दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
दुख के साथ कहना पड़ रहा है मुझे कई मौके पर अपमानित करने की कोशिश की गई है। मैं किसी भी प्रैशर में आने वाला नहीं हूं। वीरभद्र सिंह के जो प्रिंसिपल हैं हम उसी राह पर चलेंगे, लेकिन कोई हमारी आवाज और अस्तित्व को दबाने और मिटाने की कोशिश करेगा वह सहन नहीं होगा।
कांग्रेस हाई कमान को इसके बारे में अवगत कराया गया है। अब गेंद हाई कमान के पाले में हैं। जिसके नाम पर सरकार बनी उसके लिए दो गज जमीन माल रोड़ पर नहीं मिली। विक्रमादित्य सिंह ने रोते हुए कहा कि वीरभद्र सिंह की प्रतिमा लगाने के लिए मालरोड पर दो गज जमीन तक उपलब्ध नहीं करवाई गई।
विक्रमादित्य ने रोते हुए कहा कि हम इमोशनल लोग हैं भावनात्मक रूप से, मैं बहुत आहात हूं। किस वजह से ये हुआ हाई कमान को ये देखना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हमने पार्टी का हर मोके पर साथ दिया है। आने वाले समय में कोई ऐसा कदम नहीं उठाऊंगा जिससे किसी को ठेस लगे। मैं इस सरकार से इस्तीफा देता हूं।
शिमला। बहुमत की सुक्खू सरकार की राज्यसभा चुनाव में फजीहत हुई है। कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी चुनाव हार गए हैं। वहीं, कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए हर्ष महाजन चुनाव जीत गए हैं।
हिमाचल राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस की फजीहत के कारणों की बात करें तो बागी नेताओं की अनदेखी के बाद कांग्रेस हाईकमान द्वारा बाहरी प्रत्याशी थोपना आग में घी का काम कर गया।
बता दें कि राज्यसभा सांसद के रूप में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल अप्रैल में समाप्त हो रहा है। इसके चलते हिमाचल में एक सीट पर राज्यसभा चुनाव हुआ है।
राज्यसभा चुनाव की आहट के साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी को लेकर भी अटकलें तेज हो गईं। सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी के हिमाचल से राज्यसभा जाने की अटकलें लगती रहीं। जब राज्यसभा चुनाव का बिगुल बजा तो नामांकन के आखिरी दिन से एक दिन पहले कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी को प्रत्याशी घोषित कर दिया।
कहीं न कहीं इस फैसले से कांग्रेस के अंदर भी चर्चाएं हुईं। पर हाईकमान के निर्णय के आगे कोई कुछ कह न पाया। कुछ नेताओं को ऐसा भी लगा कि हिमाचल में कोई सक्षम नेता नहीं था, जिसे प्रदेश हित में राज्यसभा भेजा जाता।
वहीं, हिमाचल में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही कुछ वरिष्ठ कांग्रेस नेता हाशिए पर आ गए। इसमें सुधीर शर्मा और राजेंद्र राणा प्रमुख हैं। कांग्रेस में अंतर्कलह किसी से छिपी नहीं थी।
जब कांग्रेस ने बाहरी को प्रत्याशी बनाया तो भाजपा भी एक्टिव मोड़ में आ गई।
राज्यसभा प्रत्याशी को लेकर पत्ते न खोलने वाली भाजपा ने नामांकन के आखिरी दिन कांग्रेस प्रत्याशी के नामांकन भरने से पहले अपने प्रत्याशी हर्ष महाजन का नामांकन भरवा दिया। इससे पहले ऐसी किसी भी प्रकार की चर्चाएं राजनीति के गलियारों में नहीं थीं। भाजपा के इस फैसले ने सबको चौंका दिया।
भाजपा, कांग्रेस की अंतर्कलह के साथ बाहरी प्रत्याशी को लेकर कुछ कांग्रेस विधायकों की नाराजगी को भुनाने में जुट गई। भाजपा एक तीर से दो निशाने की फिराक में थी।
एक विधायकों की नाराजगी से राज्यसभा सीट जीतना और दूसरा सरकार को अस्थिर करना। हुआ भी ऐसा। कांग्रेस के 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। वहीं, निर्दलीय भी भाजपा के साथ चले। बहुमत की सरकार के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा।
शिमला। हिमाचल राज्यसभा चुनाव ने प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी है। भाजपा हिमाचल की सुक्खू सरकार के अल्पमत में होने का दावा कर रही है। वहीं, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का दावा है कि सरकार अभी अल्पमत में नहीं है।
दूसरी तरफ राज्यसभा चुनाव के नतीजे के बाद पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने बीजेपी विधायक दल के साथ विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया से उनके कार्यालय में मुलाकात की।
मांग की है कि बजट पारित करने के लिए डिवीजन ऑफ वोट की मांग की। कट मोशन डिवीजन ऑफ वोट से होना चाहिए। जब भी फाइनेंशियल बिल पारित हो तो फ्लोर टेस्ट हो।
शिमला। हिमाचल में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। बहुमत के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी को राज्यसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन राज्यसभा के लिए चुने गए हैं।
हर्ष महाजन को कांग्रेस की सेवा का फल मिला और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से नजदीकियों का फायदा यह कहना गलत न होगा। वहीं, भाजपा का मास्टर स्ट्रोक भी काम आया है।
हर्ष महाजन का लंबा अरसा कांग्रेस में बीता है। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खासमखास नेताओं में माना जाता था। वह पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के राजनीतिक सलाहकार भी रहे हैं।
हर्ष महाजन चंबा सदर से तीन बार विधायक और पूर्व मंत्री रहे हैं। हर्ष महाजन ने कांग्रेस की टिकट पर 1993 में चंबा सदर से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद 1998, 2003 में भी वह विधायक रहे।
वर्ष 2007 के चुनाव में उन्होंने इलेक्शन लड़ने से मना कर दिया। उनके इस फैसले से उनके समर्थकों को बड़ा झटका लगा। वहीं, अन्य लोगों को भी इस फैसले ने हैरान किया।
2007 के बाद हर्ष महाजन ने कोई चुनाव नहीं लड़ा। चुनाव न लड़ते हुए हर्ष महाजन पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के साथ साये की तरह रहे। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अंतिम सांस तक हर्ष महाजन उनके साथ रहे।
वीरभद्र सिंह के अच्छे और बुरे वक्त में हर्ष महाजन उनके साथ हमेशा खड़े रहे।
हर्ष महाजन चुनावी प्रबंधन में माहिर माने जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के शिमला ग्रामीण और अर्की विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार का जिम्मा भी हर्ष महाजन ने ही संभाला था।
वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में भी सत्ता का केंद्र बदला। वहीं, हिमाचल में भी सत्ता बदली। सत्ता बदलने के बाद हर्ष महाजन ने कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा का दामन थामा।
हिमाचल में कांग्रेस के 40 विधायक हैं। भाजपा के 25 और तीन आजाद हैं। राज्यसभा चुनाव में दोनों प्रत्याशियों को 34-34 मत मिले। पर्ची से विजेता का ऐलान हुआ। इसमें कांग्रेस के छह मत कम हुए।
भाजपा को तीन निर्दलीय और 6 कांग्रेस विधायकों का साथ मिला। इससे साफ है कि कांग्रेस में क्रॉस वोटिंग हुई है। 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करते हुए भाजपा प्रत्याशी को मत डाला है।
बताया जा रहा है कि सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, रवि ठाकुर, इंद्र दत्त लखनपाल, देवेंद्र भुट्टो और चैतन्य शर्मा ने क्रॉस वोटिंग की है।
सबको पता है कि सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, रवि ठाकुर और इंद दत्त लखनपाल को भी पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह गुट का माना जाता है। वह पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के करीबियों में जाने जाते थे। सुधीर शर्मा के पिता बैजनाथ के पूर्व विधायक संत राम वीरभद्र सिंह के घनिष्ठ मित्रों में थे।
ऐसे में वीरभद्र सिंह के कटर समर्थक रहे हर्ष महाजन को वीरभद्र सिंह के कटर समर्थकों का मत जाना स्वाभाविक था। कहीं न कहीं यह नजदीकियां हर्ष महाजन के काम आई हैं।
इसी के चलते देवेंद्र भुट्टो और चैतन्य शर्मा का मत भी उन्हें मिला। कांग्रेस की अंतर्कलह ने इस मुकाम को और आसान कर दिया। क्योंकि सत्ता परिवर्तन के बाद वीरभद्र गुट कहीं न कहीं हाशिए पर है। हिमाचल कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह कई बार सरकार को चेता चुकी हैं।
भाजपा ने मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए हर्ष महाजन को राज्य सभा प्रत्याशी बनाकर सबको चौंका दिया था। कहीं न कहीं भाजपा ने भी हर्ष महाजन की कांग्रेस की नजदीकियों को भुनाया है।
हर्ष महाजन को चुनावी मैदान में उतारकर भाजपा ने कांग्रेस में चल रही अंतर्कलह का फायदा उठाया, वहीं सुक्खू सरकार की कुर्सी हिलाने का भी दाव खेला। कहीं न कहीं भाजपा का मास्टर स्ट्रोक काम आया है। हर्ष महाजन की जगह अगर भाजपा का और कोई पुराना नेता होता तो परिणाम ऐसा न होता।
कहीं न कहीं राज्यसभा के लिए हिमाचल से बाहरी प्रत्याशी देना भी कांग्रेस को भारी पड़ा है। ऐसा कहा जा सकता है कि प्रत्याशी खड़ा नहीं किया, बल्कि हाईकमान ने थोपा था।
शिमला। हिमाचल में आखिरकार वही हुआ जिसकी आशंका थी। हिमाचल की राजनीति में बड़ा उलट फेर हुआ है। बहुमत के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी राज्यसभा चुनाव हार गया। भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन की जीत हुई है।
दोनों ही प्रत्याशियों को मिले 34-34 यानी बराबर वोट मिले। टाई होने के बाद पर्ची डाली गई जिसमें भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई। इस जीत से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है और भाजपा में खुशी की लहर है।
कांग्रेस के 40 विधयकों के बावजूद कांग्रेस को सिर्फ 34 वोट ही मिले यानी 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी राज्य सभा चुनाव हार गए हैं जिससे कांग्रेस की बड़ा झटका लगा है।
कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष का पद छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हर्ष महाजन चुनावी प्रबंधन में माहिर माने जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह के शिमला ग्रामीण और अर्की विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार का जिम्मा महाजन ने ही संभाला था।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि विपक्ष के नेता काउंटिंग हॉल के पास आकर बार-बार काउंटिंग ऑफिसर को धमका रहे हैं जो कि लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
इन्होंने पहले काफी देर वोटिंग रोकी। सब्र रखिए विधायकों पर दबाव न डालें। विपक्ष जिस तरह की गुंडागर्दी कर रहा है हिमाचल की जनता उसको कभी स्वीकार नहीं करेगी।
उन्होंने कहा कि विधायकों से संपर्क नहीं हो पा रहा है। उनके परिवार वाले उनसे संपर्क करना चाह रहे हैं। इसलिए वे परिवार वालों से संपर्क करें। लोकतंत्र में सबको अपनी मर्जी से मत करने का अधिकार होता है।