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चंद्र कुमार बोले- पूर्व में प्राकृतिक खेती के नाम पर होती रहीं संगोष्ठियां

सरकार ऑर्गेनिक फार्मिंग की दिशा में बढ़ रही आगे
शिमला। हिमाचल प्रदेश सरकार में कृषि मंत्री चौधरी चंद्र कुमार ने कहा कि सरकार ऑर्गेनिक फार्मिंग (जैविक खेती) की दिशा में आगे बढ़ रही है। इससे पहले प्राकृतिक खेती के नाम पर प्रदेश में केवल संगोष्ठियों का काम होता रहा। जमीनी स्तर पर इसका कोई असर नजर नहीं आया।
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उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने ऑर्गेनिक खेती का बजट ही प्राकृतिक खेती की तरफ डायवर्ट कर दिया था। हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग विश्वविद्यालय में से जुड़ी संगोष्ठी होती रही, लेकिन इसका असर नजर नहीं आया।
उन्होंने कहा कि खेतीबाड़ी पशुपालन के बिना अधूरी है। मौजूदा वक्त में जब मशीनरी का उपयोग बढ़ा है, तो लोगों ने पशुओं को पालना कम कर दिया है। ऐसे में पशु सड़कों पर भटकते हुए नजर आ रहे हैं।
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उन्होंने कहा कि सरकार ऑर्गेनिक खेती की दिशा में आगे बढ़ रही है और इससे पहले भी इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं।  हिमाचल बीजेपी अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल ने सरकार के प्राकृतिक खेती को बंद करने के फैसले पर विरोध जताया था।
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कृषि मंत्री चौधरी चंद्र कुमार ने कहा कि ऑर्गेनिक खेती की वजह से ही देश में उत्पादकता बढ़ी है। देश की आजादी के बाद उत्पादकता बढ़ाने के लिए ऑर्गेनिक खेती पर जोर दिया गया। स्थिति ऐसी भी थी, जब दो वक्त की रोटी की भी समस्या पैदा हो गई थी, लेकिन तब ऑर्गेनिक खेती नहीं देश को बचाने का काम किया।
कृषि मंत्री चौधरी चंद्र कुमार ने कहा कि सरकार पहले की तरह ही पॉलीहाउस में सब्सिडी दे रही है। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से पहले मिलने वाली सब्सिडी को अब कम कर दिया गया है।

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75 की आयु में ऐसा जज्बा, समाज के लिए मिसाल बने कांगड़ा जिला के राजिंदर

22 कनाल जमीन पर कर रहे प्राकृतिक खेती

पालमपुर। कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों…। इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है विकास खंड सुलह की ग्राम पंचायत बारी के चंजेहड़ निवासी राजिंदर कंवर ने। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत बलबूते युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का केंद्र बन गए हैं। एक ओर लोग खेती योग्य जमीन में बढ़ती लागत और मौसमी बदलावों से आ रही जटिलताओं की वजह से बंजर छोड़ रहे हैं।

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वहीं, कांगड़ा जिला के चन्जेहड़ निवासी 75 वर्षीय राजिंदर कंवर ने प्राकृतिक खेती को अपनाकर समाज के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया और कृषि लागत को लगभग शून्य किया जबकि मुनाफा दोगुना से अधिक प्राप्त कर रहे हैं।

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राजिंदर, 22 कनाल (11 बीघा) जमीन पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। इसमें गेहूं, भिंडी, चना, मटर, टमाटर, सरसों, घीया, तोरी, खीरा इत्यादि फसलों की प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसमें उनका व्यय 3 हजार और आय अढ़ाई लाख से अधिक है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती से उत्पन्न उत्पादों की औसतन आयु अन्य उत्पादों से अधिक है। बाजार में मूल्य अच्छा होने के साथ-साथ मांग भी अधिक होने से किसानों को दोगुना लाभ हो रहा है।

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राजिंदर कंवर बताते हैं कि बंजर भूमि को खेती योग्य बनाने का काम सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती ने आसान किया है। उन्होंने बताया कि प्रदेश कृषि विभाग के सहयोग से मध्य प्रदेश के झांसी में सुभाष पालेकर से प्राकृतिक खेती के विभिन्न आदानों के निर्माण, प्रयोग, कीट रोग प्रबंधन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपना कर सफलता प्राप्त की तो इससे उनका हौसला बढ़ गया। उन्होंने बंजर भूमि को खेती लायक बनाने की चुनौती स्वीकार किया और कड़ी मेहनत से प्राकृतिक खेती में सफलता हासिल की।

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राजिंदर बताते हैं कि प्रशिक्षित होने के उपरांत आने के बाद उन्होंने साहीवाल नस्ल की गाय खरीदी। गाय के गोबर – मूत्र और स्थानीय वनस्पतियों से आदान बनाकर उन्होंने खेतों में इस्तेमाल शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि रसायनों का प्रयोग खेतों नहीं करने से उन्हें जल्दी ही अच्छे नतीजे मिले और इसके बाद उत्साह से खेतों में जुट गए।

 

उन्होंने प्राकृतिक खेती से 3 तरह की गेहूं उगाई है, जिसमें स्थानीय किस्म के साथ, बंसी और काली गेहूं भी सम्मिलित है। मिश्रित खेती के तौर पर गेहूं के साथ सरसों और मटर की फसल ली है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में स्थानीय बीजों का बड़ा महत्व है। वह अपनी खेती में स्थानीय बीजों का ही इस्तेमाल करते हैं। इससे पैदावार और फसल गुणवत्ता बाकी किसानों के मुकाबले बेहतर रहती है।

 

राजिंदर गांव के अन्य किसानों और युवाओं को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब हमारा खानपान शुद्ध और रसायनरहित होगा तभी हम एक स्वस्थ जीवन यापन कर सकते हैं। आज के भागदौड़ भरे जमाने में अच्छे, पोषणयुक्त खाने का महत्व और बढ़ गया है। जब किसान रसायन रहित उगाएगा, तो उसका परिवार और आस पड़ोस ही नहीं देश भी सेहतमंद होगा।

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घाड़ जरोट के विवेक ने पिता के कहने पर छोड़ी नौकरी, फिर लिखी नई इबारत

खेतों में उगा रहे सब्जियां और अनाज, कर रहे प्राकृतिक खेती

ज्वाली। कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों…। जी हां अगर आपने में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो आप किसी भी मुकाम को हासिल कर सकते हैं। आप किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं।

ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कांगड़ा जिला के ज्वाली विधानसभा क्षेत्र के घाड़ जरोट गांव के विवेक कुमार ने। विवेक कुमार 12वीं के बाद आईटीआई कर निजी क्षेत्र में नौकरी के लिए निकल पड़ा। परवाणू में 2000 से 2005 तक निजी क्षेत्र में नौकरी की। पर पांच साल तक नौकरी करने के बाद नौकरी छोड़ वर्ष 2006 में कृषि व्यवसाय से जुड़ा। इसके बाद विवेक कुमार ने पीछे मुडकर नहीं देखा और आज खुद सालाना 3 लाख रुपए तक की कमाई कर रहा है। वहीं, 10 लोगों को भी रोजगार मुहैया करवाया है।

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विवेक कुमार की पारिवारिक पृष्ठभूमि किसान परिवार से है। उनके पिता सरकारी नौकरी के दौरान भी इस व्यवसाय से जुड़े रहे। वर्ष 2008 में सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने खेतीबाड़ी तथा पशुपालन व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने अपने बेटे विवेक को जमा दो की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत आईटीआई करवाई, जिसके उपरांत वर्ष 2000 से 2005 तक विवेक कुमार ने परवाणू में निजी क्षेत्र में नौकरी की। उनके पिता ने नौकरी छोड़ कर पुस्तैनी व्यवसाय से जुड़ने को कहा। विवेक ने वर्ष 2006 में अपने पिता के साथ कृषि व्यवसाय से जुड़ कर विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

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कृषि विभाग से खेतीबाड़ी की उन्नत तकनीकों तथा व्यवसाय चलाने के लिए बताए गए आधुनिक तरीकों को भी अपनाने के साथ समय-समय पर मिलते मार्गदर्शन तथा प्रोत्साहन से विवेक खेतीबाड़ी के कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके पिता जिनका गत वर्ष मई माह में देहांत हो चुका है, द्वारा दिए गए मार्गदर्शन व गुर से विवेक आज 80 कनाल भूमि पर सब्जियों तथा 40 कनाल भूमि पर गेहूं, धान, गन्ना तथा पशुओं के लिए हरे चारे का उत्पादन कर रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा उनके खेतों में सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है, जिससे मौसम पर निर्भरता समाप्त हुई है।

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वे खेतीबाड़ी में प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे खेतीबाड़ी पर कम लागत आ रही है। उन्होंने गत वर्ष प्राकृतिक खेती से सब्जियां उगाने के साथ 15-20 क्विंटल गेहूं पैदा की थी, जिसमें से 10 क्विंटल गेहूं 3,500 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेची है। वे भविष्य में प्राकृतिक खेती की तकनीकों को अपनाकर अच्छी किस्म के उत्पाद उगा कर मार्किट में बेचने के प्रयास कर रहे हैं।

 

विवेक कुमार स्वंय स्वावलंबी होने के साथ 10 और लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवा रहे हैं। उन्होंने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अच्छी किस्म की 6 गाय भी पाल रखी हैं,जिनसे प्रतिदिन 40-45 लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है, जिसमें से 30 लीटर दूध की बिक्री कर रहे हैं, जबकि देसी खाद का अपने खेतों में प्रयोग कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त मांग पर पनीर व दहीं भी बेचते हैं। विवेक अपने व्यवसाय से सालाना चार से पाँच लाख रुपए तक आमदनी कमा रहे हैं।

 

क्या कहते हैं विवेक कुमार

प्रगतिशील किसान विवेक कुमार का कहना है कि वे खेतों में सीजन के अनुसार गेहूं, धान, मक्की, गन्ना के अतिरिक्त सब्जिओं में गोभी, टमाटर, भिंडी, बैंगन, मूली, शलगम, घीया, तोरी, पालक, धनिया , मटर, चुकंदर की खेती कर रहे हैं, जिससे सालाना 3 लाख रुपए तक कमाई कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमारे पुरखों ने गरीबी झेली है, लेकिन जमीने संभाल कर रखी, जिसकी वजह से हम नौकरी की इच्छा न करते हुए आज जमीन में ही अपना रोजगार चलाने के साथ 10 अन्य लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं। उनका मानना है कि अन्य लोगों को भी कृषि व पशुपालन व्यवसाय से जुड़कर अपनी आमदनी को बढ़ाना चाहिए।

 

कृषि विषयवाद विशेषज्ञ नगरोटा सूरियां डॉ. राज कुमार भारद्वाज का कहना है कि कृषि विभाग द्वारा किसानों को समय-समय पर बीज,कृषि उपकरण अनुदानित दरों पर उपलब्ध करवाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त खेतों में जाकर मिट्टी की जांच, किसानों की समस्याओं का समाधान करने सहित अन्य तकनीकी जानकारियां उपलब्ध करवाई जाती हैं। यदि किसान को खेत में काम करते हुए चोट लग जाती है तो उस स्थिति में उसे मुख्यमंत्री खेतीहर मजदूर सुरक्षा योजना के तहत 10 हजार से 3 लाख रुपए तक की सहायता भी प्रदान की जाती है। विभाग का प्रयास है कि अधिक से अधिक युवा कृषि व्यवसाय से जुड़ें तथा विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ उठा कर अपनी आमदनी बढ़ाएं।

 

क्या कहते हैं कृषि मंत्री

कृषि व पशुपालन मंत्री चंद्र कुमार का कहना है कि खेती हमारा पुश्तैनी व्यवसाय है। किसानों की समस्याओं का खेतों में हल करने एवं अधिक से अधिक लोगों को कृषि व्यवसाय से जोड़ने के लिए “चलो गांव की ओर” मुहिम शुरू की गई है। विभाग से जुड़े अधिकारी और वैज्ञानिक खेत खलिहान में जाकर किसानों की समस्याओं का निदान करें । उनका मानना है कि भूमि से अधिक ख्याति और समृद्धि हमें कोई नहीं दिला सकता।

प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सूक्खु की सरकार प्रदेश में कृषि तथा पशुपालन व्यवसाय को लाभकारी बनाने के लिए किसानों को संसाधन और व्यवस्थाएं उपलब्ध करवाने के लिए विशेष कार्ययोजना तैयार कर रही है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इन व्यवसायों से जोड़ कर ग्रामीण आर्थिकी को सुदृढ़ बनाया जा सके।

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