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HPU में SFI का प्रदर्शन, छात्रों का निष्कासन वापस न लेने पर उग्र आंदोलन को चेताया

विश्वविद्यालय प्रशासन पर एक तरफा कार्रवाई का जड़ा आरोप

शिमला। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (HPU) में शुक्रवार को छात्र संगठन एसएफआई (SFI) ने छात्रों की विभिन्न मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में छात्रों के बीच हिंसा के मामले में एसएफआई का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने वीडियो को आधार बनाकर एकतरफा कार्रवाई की है।

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लड़ाई के दौरान दूसरे गुट की तरफ से पहले हमला हुआ, लेकिन कार्रवाई सिर्फ छात्र संगठन एसएफआई (SFI) के कार्यकर्ताओं पर ही की गई है और छात्रों को निष्कासित किया गया है। बीते कई दिन से एसएफआई इसके विरोध में प्रदर्शन कर रही है। छात्र संगठन की चेतावनी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई, तो आने वाले वक्त में आंदोलन को उग्र रूप दिया जाएगा।

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एसएफआई (SFI) के राज्य सचिव अमित ठाकुर ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन तानाशाही रवैया अपनाए हुए है। विश्वविद्यालय में हुई हिंसा में एक तरफा कार्रवाई के विरोध के अलावा एसएफआई (SFI) की ओर से छात्र संगठन चुनाव बहाली की मांग और नई शिक्षा नीति- 2020 के खिलाफ भी प्रदर्शन किया गया। अमित ठाकुर ने कहा कि देशभर में कांग्रेस नई शिक्षा नीति का विरोध कर रही है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद नई शिक्षा नीति को लागू किया जा रहा है।

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उन्होंने कहा कि छात्र संगठन एसएफआई (SFI) की यह मांग है की नई शिक्षा नीति को वापस लिया जाए। इसके अलावा छात्र संगठन के नेता और कार्यकर्ता पिछले कुछ वक्त में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में हुई भर्तियों में कथित धांधली की जांच की मांग भी कर रहे हैं। एसएफआई का दावा है कि उन्होंने बीते दिनों हुई भर्ती की आरटीआई ली है।

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इस आईटीआई में करीब 80 फीसदी सिलेक्शन गलत सर्टिफिकेट के आधार पर हुआ है। ऐसे में मांग की जा रही है कि राज्य सरकार इसकी जांच करवाए। अमित ठाकुर ने कहा कि अगर राज्य सरकार उनकी मांगे नहीं मानती है, तो आने वाले वक्त में आंदोलन को बड़ा रूप दिया जाएगा।

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SFI की चेतावनी- NEP, CBCS व ERP को हटाए सरकार, नहीं तो होगा उग्र आंदोलन

री-वैल्यूएशन परिणाम को किया जाए घोषित

शिमला। एसएफआई ने को पीजी प्रथम सत्र परीक्षाओं में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत सीबीसीएस के माध्यम से जो परेशानियां छात्रों को आ रही हैं उसको जल्द से जल्द सुलझाने की मांग की है। एसएफआई ने चेतावनी देते हुए कहा कि NEP के साथ सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBCS) और एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ERP) को खत्म कर इसके लिए कोई और सिस्टम प्रदेश सरकार द्वारा लाया जाना चाहिए। एसएफआई ने कहा कि अगर जल्द छात्रों की मांगों को सकारात्मक रूप से सुलझाया नहीं गया तो आने वाले समय के अंदर विश्वविद्यालय के अंदर आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी।

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एसएफआई कैंपस सचिवालय सदस्य साहिल ने बताया कि विश्वविद्यालय इस बार पीजी प्रथम सत्र में NEP के तहत CBCS को लागू कर रहा है। जिसके चलते छात्रों को परेशानी देखने को मिल रही है के चलते छात्र परेशान है कि वह इस सिस्टम के अंदर किस तरह अपनी परीक्षाओं की तैयारियां करेंगे।

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उन्होंने कहा कि एसएफआई मांग कर रही है कि री-वैल्यूएशन के परिणाम को जल्द घोषित किया जाए परन्तु अभी तक रिजल्ट पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाया है। जिसके अंदर अभी भी काफी कमियां देखने को मिल रही है। इसके चलते छात्रों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कुछ महाविद्यालय के अंदर मिड टर्म आरंभ हो चुके है पर छात्रों को मालूम नहीं है की वह किस ईयर को वह परीक्षाएं दे।

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धरना-प्रदर्शन के दौरान कैंपस उपाध्यक्ष हैप्पी ने कहा कि काफी समय से प्रदेश सरकार NEP को लागू करने के प्रयत्न करने जा रही है जिसमें मातृभाषा में पढ़ाई करना और करवाना असंभव है। उन्होंने कहा कि हमने GDP का 6% खर्च करना लक्ष्य रखा लेकिन भारत सरकार अभी GDP का 2.5% ही खर्च करवा पा रही है जो NEP के तहत असंभव सा अनुमान लगाया जा रहा है।

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आज भारत शिक्षा पर जीडीपी खर्च करने में भूटान से भी पीछे है। NEP में शिक्षा के समवर्ती सूची से हटा के केंद्रीयकरण करने की कोशिश की जा रही है। इसके साथ ST, SC, JRF व अन्य स्कॉलरशिप के बारे में कोई प्रावधान नहीं है। छात्र अगर इन पर मुद्दा लड़ना चाहे तो उनके लिए कोई SCA का प्रावधान भी नहीं है। ऐसे में कैंपस डेमोक्रेसी के लिए आने वाले समय में खतरा है और बीजेपी सरकार ने अनपर्लियामेंरी तौर पर इसको पास किया है। जिसके तहत NEP का पहला कदम सीबीसीएस है जिसमे 2013 से यूजी में लाया गया और हिमाचल प्रदेश में 2015 में छात्रों को उसका खामियाजा देखने को मिला जब 98% छात्र फेल हो गए थे।

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एसएफआई ने कहा कि आज यूजी व पीजी के छात्रों का भविष्य संकट में है। 13 करोड़ खर्च करने के बावजूद भी सिस्टम में कोई सुधार नहीं हो पाया है। ऐसे में सीबीएस को छात्रों पर थोपना उचित नहीं होगा। इसका परिणाम है इसका परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे ।

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