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HCU : तथ्यपूर्ण कवरेज न होना कश्मीर घाटी से हिंदुओं के पलायन का बड़ा कारण

भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रोफेसर प्रमोद कुमार ने कही बात
धर्मशाला। कश्मीर घाटी से हिंदुओं के पलायन का एक बहुत बड़ा कारण स्थानीय मीडिया द्वारा 1989 के आस-पास घट रही घटनाओं की तथ्यपूर्ण कवरेज नहीं करना था। यदि उस समय स्थानीय मीडिया ने निष्पक्ष-कवरेज की होती कश्मीरी हिंदुओं का विस्थापन रूक सकता था।
उस समय राष्ट्रीय मीडिया ने भी तथ्यों तक पहुंचने में विशेष प्रयास नहीं किए। ये बात भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रोफेसर प्रमोद कुमार ने HCU के कार्यक्रम में 1947 के बाद जम्मू-कश्मीर में मीडिया के यात्रा विषय पर बोलते हुए कहीं।
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रिपोर्टरों को घाटी छोड़कर जम्मू आना पड़ा, इसलिए पूरा देश और नीति-नियंता वहां पर घट रही घटनाओं को लेकर अंधेरे में रहे और कश्मीरी हिंदुओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक दबाव नहीं बन सका।
वह हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय (HCU) के कश्मीर अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित ’ संवैधानिक अधिमिलन सप्ताह’ के दौरान बोल रहे थे। प्रो. प्रमोद कुमार ने कहा कि 1989 के आस-पास नए-नए आतंकी समूह उभर रहे थे और वह प्रसिद्धि पाने के लिए मीडिया का उपयोग कर रहे थे।
आंतकी घटनाओं का श्रेय लेने की होड़ मची थी और इसके लिए आतंकी समूह मीडिया संस्थानों पर निरंतर दबाव बना रहे थे।
उन्होंने कहा कि उस समय के समाचार-पत्रों की खबरों का विश्लेषण यह बताता है कि वहां की मीडिया-पारिस्थितिकी पूरी तरह से आंतकियों के दबाव में आ गई थी ।
वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता यशराज सिंह बुंदेला ने कहा कि आजादी के समय भारतीय रियासतों के विलय को लेकर लॉर्ड माउंटबेटन और जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने पत्राचार के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए।
मगर इस व्यक्तिगत पत्राचार को संवैधानिक वैधता के रूप में दर्शाते हुए इसके सहारे एक वर्ग ने जम्मू- कश्मीर को विवादित क्षेत्र के रूप में दर्शाने का षड्यंत्र रचा।
इससे जम्मू-कश्मीर के विषय को समझने में मुश्किल पैदा होती रही है। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय (HCU) के कश्मीर अध्ययन केंद्र की ओर से आयोजित संवैधानिक अधिमिलन सप्ताह कार्यशाला में जम्मू-कश्मीर के एकीकरण की प्रक्रियाः विधिक एवं संवैधानिक दृष्टिकोण विषय पर व्याख्यान देते सर्वाच्च न्यायालय के अधिवक्ता यशराज सिंह बुंदेला ने यह बात कही।
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उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का हमेशा से एक अभिन्न अंग रहा है और हमेशा रहेगा। मगर जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र के रूप में दिखाने के लिए एक वर्ग लंबे समय से झूठे राजनीतिक विमर्श गढ़ता रहा है।
यही वर्ग अक्टूबर, 1947 में जम्मू-कश्मीर पर हुए पाकिस्तानी सेना के आक्रमण को कबायली आक्रमण के रूप में बताता रहा।
इसके अलावा यह झूठ फैलाया गया कि महाराजा हरिसिंह एक कमजोर शासक थे और वह जम्मू-कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे। जम्मू-कश्मीर को लेकर इस तरह के झूठे विमर्श लंबे समय तक आगे बढ़ाए गए।
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गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय (HCU) धर्मशाला के कश्मीर अध्ययन की ओर से 26 अक्टूबर से लेकर 31 अक्टूबर तक संवैधानिक अधिमिलन सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है।
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शुक्रवार को ऑनलाइन आयोजित किए गए सत्र में कश्मीर अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रो. आभा चौहान, प्रो. मलकीत सिंह, डॉ. जयप्रकाश सिंह, डॉ. अजय कुमार, डॉ. उदयभान सिंह, डॉ. चंद्रशेखर, डॉ. करतार सिंह सहित विभिन्न विभागों के आचार्य, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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पौंग झील में इस साल पहुंचे 1,17,022 विदेशी मेहमान: पहली बार दिखी लंबी पूंछ वाली बत्तख

विदेशी परिंदों की अठखेलियां पौंग झील की खूबसूरती को लगा रही चार-चांद

कांगड़ा। मौसम के बदलते मिजाज़ के साथ प्रकृति के विभिन्न रंगों में सराबोर रहने वाले पौंग बांध जलाशय के इर्द-गिर्द सुबह से शाम तक पानी के अंदर और बाहर विदेशी मेहमान परिंदों की दिल को छू लेने वाली अठखेलियां जहां पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करती हैं। वहीं पौंग झील की खूबसूरती को भी चार-चांद लगा रही हैं। इनमें से अधिकांश पक्षी ट्रांस- हिमालयी क्षेत्र के तिब्बत, मध्य एशिया, रूस और साइबेरिया के अपने प्रजनन स्थलों से पलायन करते हैं।

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प्रसन्नता का विषय है कि विदेशी पक्षियों की संख्या पिछले वर्ष 1,10,309 थी, जो इस वर्ष 1,17,022 हो गई है। इसके अलावा अच्छी बात ये है कि हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष पहली बार सुगनाड़ा क्षेत्र में बोटिंग प्वाइंट के पास लंबी पूंछ वाली बतख पाई गई है। यह बतख अधिकतर अमेरिकन महाद्वीप में पाई जाती है। इससे पहले भारत में कश्मीर घाटी में ही इस प्रजाति की एक बतख पाई गई है।

पिछले कुछ वर्षों में, पौंग बांध झील भी एक रामसर स्थल है, जो प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियों के लिए सर्दियों की एक पसंदीदा स्थली बन गया है। डीएफओ वन्य प्राणी विंग हमीरपुर रेगिनॉल्ड रॉयस्टॉन ने बताया कि 30 तथा 31 जनवरी को वन्य प्राणी विंग, वन विभाग के कर्मियों के साथ-साथ वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, दि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी सहित राज्य जैव प्रौद्योगिकी बोर्ड तथा पक्षी प्रेमियों के सहयोग से करवाई गई गणना के अनुसार इस वर्ष 108 प्रजातियों के एक लाख सत्रह हजार बाइस मेहमान परिंदों ने अब तक दस्तक दी है जबकि आने वाले दिनों में पक्षियों की आबादी और प्रजातियों की संख्या उनके प्रजनन स्थलों में वापसी  के दौरान बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि अब उत्तर- पश्चिम मध्य और दक्षिण भारत से पक्षियों का पौंग झील में आगमन शुरू हो जाएगा।

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पौंग झील में आने वाले परिंदों की हर वर्ष गणना की जाती है, विदेशी पक्षियों की संख्या पिछले वर्ष 1,10,309 थी, जो इस वर्ष 1,17,022 हो गई है। इस वर्ष 6,713 की वृद्धि दर्ज की गई है। इस वर्ष सबसे अधिक वृद्धि उत्तरी पिंटेल की दर्ज की गई है जो पिछले वर्ष के 4665 के आंकड़े से बढ़कर इस वर्ष 15,784 हो गई है। इसके अतिरिक्त बार हेडेड गीज़ की गणना में भी वृद्धि दर्ज हुई है जो पिछले वर्ष की संख्या से 2665 अधिक है।

डीएफओ ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष पहली बार सुगनाड़ा क्षेत्र में बोटिंग प्वाइंट के पास लंबी पूंछ वाली बतख पाई गई है। यह बतख अधिकतर अमेरिकन महाद्वीप में पाई जाती है। इससे पहले भारत में कश्मीर घाटी में ही इस प्रजाति की एक बतख पाई गई है। इस वर्ष अन्य प्रमुख प्रजातियों में यूरेशियन कूट (13035), उत्तरी पिंटेल (15784), कॉमन टील (6478) हैं।

कॉमन पोचर्ड (8096), यूरेशियन कबूतर (1674), लिटिल कॉर्मोरेंट (6565), नॉर्दर्न शोवेलर (1518) और ग्रेट कॉर्मोरेंट (2768) झील में रिपोर्ट की गई  जबकि अन्य असामान्य प्रजातियों में लेसर व्हाइट, फ्रंटेड गूज, रेड क्रेस्टेड पोचर्ड, फेरुगिनस पोचर्ड, पाइड एवोकेट, नॉर्दर्न लैपविंग, कॉमन केस्ट्रेल आदि पाई गई। मतगणना अभ्यास के दौरान एक रिंग्ड बार- हेडेड गूज भी देखा गया।

पौंग झील में पर्यटन की अपार संभावनाएं…

कृषि मंत्री चंद्र कुमार का कहना है कि पौंग झील में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं तथा इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विकसित कर विश्व के पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए हर संभव प्रयास किये जाएंगे। जिससे स्थानीय लोगों विशेषकर बेरोजगार युवाओं को रोज़गार व स्वरोजगार के बेहतर अवसर सुनिश्चित हो सकें।

डीसी डॉ निपुण जिंदल ने बताया कि मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सूक्खु के दिशा-निर्देशानुसार इस क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए इको टूरिज्म सहित अन्य रोजगारोन्मुखी गतिविधियों  को विकसित करने की संभावनाओं पर विशेष कार्य किया जाएगा।

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