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अहोई अष्टमी : जानिए पूजा का मुहूर्त, विधि, सावधानियां और कथा

देशभर में आज अहोई अष्टमी मनाया जा रहा है। अहोई अष्टमी का त्योहार कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने पुत्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। जबकि निःसंतान महिलाएं भी पुत्र कामना के लिए यह व्रत रखती हैं।

इस व्रत को विशेष तौर पर उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन अहोई माता के साथ-साथ स्याही माता की भी पूजा का विधान है। महिलाएं शाम को अहोई माता की पूजा करती हैं और तारे देखने पर व्रत खोलती हैं।

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अहोई अष्टमी पर पूजन का समय आज शाम 5 बजकर 33 मिनट से लेकर शाम 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगा यानी पूजन के लिए आपको सिर्फ 1 घंटा 19 मिनट का ही समय मिलेगा।

साथ ही अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। पूजा करने या कथा सुनने के लिए ये दोनों ही मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ हैं।

अष्टमी तिथि की शुरुआत 5 नवंबर यानी आद रात 12 बजकर 59 मिनट से हो चुकी है और समापन 6 नवंबर यानी कल सुबह 3 बजकर 18 मिनट पर होगा। अहोई अष्टमी का व्रत तारों को अर्घ्य देकर खोला जाता है। आज तारों के निकलने का समय शाम 5 बजकर 58 मिनट रहेगा।

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अहोई अष्टमी पूजा विधि
  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
  • पूजा के समय पुत्र की लंबी आयु और उसके सुखमय जीवन की कामना करें।
  • इसके बाद अहोई अष्टमी व्रत का संकल्प करें। मां पार्वती की आराधना करें।
  • अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर उनके चित्र के साथ ही साही और उसके सात पुत्रों की तस्वीर बनाएं।
  • माता के सामने चावल की कटोरी, मौली, सिंघाड़ा आदि रखकर अहोई अष्टमी के व्रत की कथा सुनें।
  • सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखें।
  • इसमें उपयोग किया जाने वाला करवा भी वही होना चाहिए, जिसे करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया हो।
  • शाम में इन चित्रों की पूजा करें। लोटे के पानी से शाम को चावल के साथ तारों को अर्घ्य दें।
  • अहोई पूजा में चांदी की अहोई बनाने का विधान है, जिसे स्याहु कहते हैं।
    स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व से करें।
अहोई अष्टमी की सावधानियां
  • अहोई माता के व्रत में बिना स्नान किए पूजा-अर्चना ना करें।
  • इस दिन महिलाओं को मिट्टी से जुड़े कार्य करने से बचना चाहिए।
  • इस दिन काले, नीले या गहरे रंग के कपड़े बिल्कुल न पहनें।
  • व्रत विधान के अनुसार, किसी भी जीव-जंतु को चोट ना पहुंचाएं और ना ही हरे-भरे वृक्षों को तोड़ें।
  • अहोई के व्रत में पहले इस्तेमाल हुई पूजा सामग्री का दोबारा इस्तेमाल न करें।
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अहोई अष्टमी कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार था। उसके सात बेटे और एक बेटी थी। साहुकार ने अपने सभी बेटों और बेटी की शादी कर दी थी। हर दिवाली साहूकार की बेटी अपने मायके आती थी। दिवाली पर घर की लीपापोती के लिए साहूकार की सातों बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं।

उन्हें जाता देख साहुकार की बेटी भी उनके साथ चल पड़ी। साहूकार की बेटी जंगल पहुंच कर मिट्टी काटने लगी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने बेटों से साथ रहती थी।

मिट्टी काटते समय उसके हाथ से कुदाल स्याहु के एक बच्चे को लग गई और स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि जिस तरह तुमने मेरे बच्चे को मार डाला, मैं भी तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याहु की बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से विनती करने लगी कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। सबसे छोटी भाभी तैयार हुई और अपनी ननद के बदले उसने अपनी कोख बंधवा ली।

इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते वे सात दिन के बाद ही मर जाते। सात पुत्रों की मृत्यु होने पर वह बहुत दुखी हुई और उसने पंडित को बुलाया और इसका कारण पूछा।

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पंडित ने उसकी व्यथा सुनी और सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही गाय, छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होती है और उससे पूछती है कि तू किसलिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और मुझसे क्या चाहती है?

साहूकार की छोटी बहू ने सुरही गाय को बताया कि स्याहु माता ने उसकी कोख बांध दी है, जिसके बाद वो जब भी बच्चे को जन्म देती वो सात दिन के भीतर ही मर जाते हैं। अगर आप मेरी कोख खुलवा दें तो मैं आपका बहुत उपकार मानूंगी।

सुरही गाय उसकी बात मान कर उसे सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले जाने लगी। रास्ते में दोनों थक जाने पर आराम करने लगते हैं। तभी अचानक साहूकार की छोटी बहू देखती है, कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डसने जा रहा होता है।

वह उस बच्चे को बचाने के लिए सांप को मार देती है। जब गरुड़ पंखनी वहां खून बिखरा हुआ देखती है, तो उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया। अपने बच्चे का हत्यारा समझ वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू उसे समझाती है कि यह खून एक सांप का है, जिसे मारकर मैंने तुम्हारे बच्चे की जान बचाई है। गरुड़ पंखनी यह जान बहुत खुश होती है, और सुरही और छोटी बहु दोनों को स्याहु के पास पहुंचा देती है।

वहां पहुंचकर छोटी बहू स्याहु की भी बहुत सेवा करती है। छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर स्याहु उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत करने की परंपरा चली।

 

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