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चैत्र नवरात्र : नौवें दिन करें मां सिद्धिदात्री की पूजा, जानें विधि, बीज मंत्र व आरती

चैत्र नवरात्र के नौवें दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवरात्र पर्व की अष्टमी और नवमी तिथि का विशेष महत्व होता है।

नवरात्र की इन दोनों ही तिथियों पर कन्या पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी तिथि पर तो कुछ लोग नवमी तिथि पर कन्या पूजन के साथ मां की आराधना करते हैं।

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्र की नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की विधिवत पूजा करने से धन, बल, यश के साथ सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मां सिद्धिदात्री भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और भक्तों को यश, बल और धन भी प्रदान करती हैं। वह अपने भक्तों को बुद्धि का आशीर्वाद देती हैं और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती हैं।

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सिद्धि शब्द का अर्थ है अलौकिक शक्ति और धात्री का अर्थ है पुरस्कार देने वाला। यह माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूरा करती हैं । मां सिद्धिदात्री को सिद्धि प्रदान करने वाली देवी माना जाता है।

कमल पुष्प पर आसीन सामान्य रूप से मां सिद्धिदात्री कमल पुष्प पर आसीन होती हैं, हालांकि इनका भी वाहन सिंह है। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं।

इनकी दाहिनी ओर की पहली भुजा में गदा और दूसरी भुजा में चक्र है। बांई ओर की भुजाओं में कमल और शंख है। मां अणिमा, महिमा, प्राकाम्य गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, ईशित्व और वशित्व अष्ट सिद्धि का संपूर्ण स्वरूपा हैं।

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महानवमी पूजा-विधि
  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत और पूजा का संकल्प लें।
  • इसके बाद पूजा स्थल पर देवी सिद्धिदात्री की प्रतिमा को स्थापित करें।
  • अगर आपके पास देवी सिद्धिदात्री की प्रतिमा नहीं तो देवी दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित करके पूजा आरंभ करें।
  • सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें और नवग्रह को फूल अर्पित करें।
  • इसके बाद देवी को धूप, दीप, फल, फूल, भोग और नवैद्य अर्पित करें।
  • इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ और मां दुर्गा और सिद्धिदात्री से जुड़े मंत्रों का पाठ करें।
  • अंत में मां की आरती करें और कन्याओं का पूजन करते हुए उपहार देकर विदा करें।
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मां सिद्धिदात्री पूजा मंत्र-

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।

स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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मां सिद्धिदात्री की आरती

जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जब भी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥

तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥

 

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महाष्टमी पर कालीबाड़ी मंदिर पहुंचे राज्यपाल, मां महागौरी की पूजा-अर्चना

लेडी गवर्नर भी मौजूद रहीं

शिमला। चैत्र नवरात्र में हिमाचल प्रदेश के सभी शक्तिपीठों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिदिन मंदिरों में शीश नवा रहे हैं। (राज्यपाल)

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आठवें नवरात्र यानी महाष्टमी के मौके पर शिमला के कालीबाड़ी मंदिर में भी लोगों की भीड़ उमड़ी। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने भी काली बाड़ी मंदिर पहुंचकर पूजा-अर्चना की। इस दौरान लेडी गवर्नर भी मौजूद रहीं।

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हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि ये देवियों के पूजन का समय है। पहले बेटियों की भ्रूण हत्या कर दी जाती थी लेकिन आज देश ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संकल्प लिया है, बेटियां आज हर क्षेत्र में आगे हैं।

वी ही महागौरी सरस्वती और महालक्ष्मी हैं। उन्होंने कहा कि भारत से जो शक्तियां चलती हैं वो वसुधैव कुटुम्बकम् के नाम से विश्व की रक्षा करें।

 

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चैत्र नवरात्र : आठवें दिन करें मां महागौरी की पूजा, जानें विधि, बीज मंत्र व आरती

चैत्र नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। आदिशक्ति मां दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी हैं। देवी महागौरी का रंग अत्यंत गौर वर्ण है इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है।

मान्यता के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था तभी से इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया।

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मां दुर्गा का आठवां स्वरूप देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण आदि भी सफेद ही हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है।

देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका स्वभाव अति शांत है।

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देवी महागौरी की पूजा करने से सभी ग्रहदोष दूर हो जाते हैं। मां महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजन-आराधना से दांपत्य सुख, व्यापार, धन और सुख-समृद्धि बढ़ती है। मनुष्य को सदैव इनका ध्यान करना चाहिए।

इनकी कृपा से आलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये भक्तों के कष्ट जल्दी ही दूर कर देती हैं एवं इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। ये मनुष्य की वृतियों को सत्य की ओर प्रेरित करके असत्य का विनाश करती हैं।

भक्तों के लिए यह देवी अन्नपूर्णा का स्वरूप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। ये धन, वैभव, अन्न-धन और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।

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मां महागौरी पूजन विधि
  • प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात महागौरी की पूजा में श्वेत, लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें।
  • सर्वप्रथम कलश पूजन के पश्चात मां की विधि-विधान से पूजा करें।
  • देवी महागौरी को चंदन, रोली, मौली, कुमकुम, अक्षत, मोगरे का फूल अर्पित करें व देवी के सिद्ध मंत्र श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: का जाप करें।
  • माता के प्रिय भोग हलवा-पूरी,चना एवं नारियल का प्रसाद चढ़ाएं फिर 9 कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराएं।
  • माता रानी को चुनरी अर्पित करें।
  • सुख-समृद्धि के लिए घर की छत पर लाल रंग की ध्वजा लगाएं।
  • मां महागौरी को पूजा के दौरान सफेद, मोरपंखी या पीले रंग का पुष्प अर्पित करना चाहिए। मां को चमेली व केसर का फूल अर्पित किया जा सकता है।
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मां महागौरी का वंदना मंत्र

श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

देवी महागौरी स्तोत्र

सर्वसङ्कट हन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्.
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्.
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्.
वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

मां महागौरी आरती

”जय महागौरी जगत की माया ।
जय उमा भवानी जय महामाया ॥
हरिद्वार कनखल के पासा ।
महागौरी तेरा वहा निवास ॥
चंदेर्काली और ममता अम्बे
जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे ॥
भीमा देवी विमला माता
कोशकी देवी जग विखियाता ॥
हिमाचल के घर गोरी रूप तेरा
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा ॥
सती ‘सत’ हवं कुंड मै था जलाया
उसी धुएं ने रूप काली बनाया ॥
बना धर्म सिंह जो सवारी मै आया
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया ॥
तभी मां ने महागौरी नाम पाया
शरण आने वाले का संकट मिटाया ॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता
माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता ॥
‘चमन’ बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो
महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो” ॥

 

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चैत्र नवरात्र : सातवें दिन करें मां कालरात्रि की पूजा, जानें विधि, बीज मंत्र व आरती

चैत्र नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। यह मां दुर्गा का रौद्ध रूप भी है जिसका वर्ण काला है इसलिए इन्हें मां काली या कालिका के नाम से भी जाना जाता है।

माता का यह रूप अत्यंत भयंकर है परंतु भक्तों के लिए अत्यंत शुभ फलदायी है। माना जाता है कि मां काली की पूजा करने से व्यक्ति का सभी प्रकार का भय खत्म होता है।

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माना जाता है कि माता कालरात्रि की आराधना से साधक को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो सकती हैं। तंत्र मंत्र के साधकों में मां कालरात्रि की पूजा विशेष रूप से प्रचलित है। यही कारण है कि मां कालरात्रि की पूजा मध्य रात्रि में करने का विधान है।

साथ ही यह भी माना गया है कि मां काली की पूजा से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। क्योंकि मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं इसलिए हिंदू धर्म में उन्हें वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है।

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मां कालरात्रि की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षसों ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। इन राक्षसों को हाहाकर से परेशान होकर सभी देवतागण शिवजी के पास गए और उनसे इस समस्या से बचने का कोई उपाय मांगने लगे।

तब भगवान शिव ने माता पार्वती से इन राक्षसों का वध करने के लिए कहा। तब माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया।

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लेकिन जब रक्तबीज के वध की बारी आई तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों की संख्या में रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। क्योंकि रक्तबीज को यह वरदान मिला था कि यदि उनके रक्त की बूंद धरती पर गिरती है तो उसके जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाएगा।

ऐसे में दुर्गा ने अपने तेज से देवी कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और मां कालरात्रि ने उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ।

मां कालरात्रि की पूजा विधि
  • देवी पार्वती के कालरात्रि रूप की पूजा करने के लिए सुबह और रात्रि दोनों का समय शुभ माना जाता है।
  • इस रूप में मां की पूजा करने के लिए सुबह स्नान करके लाल कंबल के आसन पर बैठे।
  • मां कालरात्रि की तस्वीर स्थापित करें, वहां गंगाजल का छिड़काव करें।
  • इसके बाद दीपक जलाकर पूरे परिवार के साथ मां के जयकारे लगाएं।
  • दुर्गा चालीसा का पाठ करें, हवन करें और मां कालरात्रि को गुड़ से बनाएं मालपुए का भोग जरूर लगाएं।
  • आप चाहे तो रुद्राक्ष की माला से मां के मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
मां कालरात्रि पूजा मंत्र

मां कालरात्रि की पूजा के दिन लाल चंदन की माला से इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति की सभी मुरादें पूरी होती हैं साथ ही जीवन में आ रहे कष्टों से भी मुक्ति मिलती है …

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।

मां कालरात्रि की आरती

कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुंह से बचाने वाली॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥

खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥

सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥

रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥

ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥

उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥

तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥

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चैत्र नवरात्र : छठे दिन करें मां कात्यायनी की पूजा, जानें विधि, बीज मंत्र व आरती

चैत्र नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के छठे रूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी रखा गया। माता कात्यायनी की पूजा से विवाह संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।

धार्मिक मान्यता है कि इनकी कृपा से योग्य वर और विवाह की सभी अड़चनें दूर हो जाती हैं। ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। माता कात्यायनी सफलता और यश का प्रतीक हैं।

भगवान कृष्ण को पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्ही की पूजा कालिंदी नदी के तट पर की थी। ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

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माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बायें हाथ में कमल, तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।

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इनकी पूजा अमोघ फलदायिनी हैं, मान्यता है कि माता कात्यायनी जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है।

इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है और साधक के रोग, शोक, संताप और भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं। शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए भी मां कात्यायनी की पूजा की जाती है यह स्वयं नकारात्मक शक्तियों का अंत करने वाली देवी हैं।

मां कात्यायनी पूजा विधि
  • सबसे पहले स्नान-ध्यान के बाद शुभ रंगों के वस्त्र पहनकर कलश पूजा करें।
  • इसके बाद मां दुर्गा के स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा करें।
  • पूजा प्रारंभ करने से पहले मां को स्मरण करें और हाथ में फूल लेकर संकल्प जरूर लें।
  • इसके बाद वह फूल मां को अर्पित करें।
  • फिर कुमकुम, अक्षत, फूल आदि और सोलह श्रृंगार माता को अर्पित करें।
  • उसके बाद भोग अर्पित करें। फिर जल अर्पित करें और घी के दीपक जलाकर माता की आरती करें।
  • देवी की पूजा के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए।
  • मां कात्यायनी को शहद बहुत ही प्रिय है, इसलिए पूजा के समय मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएं ऐसा करने से स्वयं के व्यक्तित्व में निखार आता है।
  • देवी को पीला और लाल रंग अतिप्रिय है। इस वजह से पूजा में आप मां कात्यायनी को लाल और पीला रंग के गुलाब का फूल अर्पित करें इससे मां कात्यायनी आप पर प्रसन्न होंगी।
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माता कात्यायनी पूजा मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||
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माता कात्यायनी की आरती

जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा।

कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।

हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।

कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।

झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।

हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।

जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।

 

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चैत्र नवरात्र : पांचवें दिन करें मां स्कंदमाता की पूजा, जानें विधि, बीज मंत्र और आरती

चैत्र नवरात्र के पांचवें दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप यानी मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

सिंह पर सवार स्कन्दमाता देवी की चार भुजाएं हैं, जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं और नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं।

ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है।

सच्चे मन से पूजा करने पर स्कंदमाता सभी भक्तों की इच्छाओं को पूरी करती हैं और कष्टों को दूर करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए माता की आराधना करना उत्तम माना गया है।

माता रानी की पूजा के समय लाल कपड़े में सुहाग का सामान, लाल फूल, पीले चावल और एक नारियल को बांधकर माता की गोद भर दें। ऐसा करने से जल्द ही घर में किलकारियां गूंजने लगती हैं।

स्कंदमाता मोक्ष का मार्ग दिखाती हैं और इनकी पूजा करने से ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। माता का यह स्वरूप ममता की मूर्ति, प्रेम और वात्सल्य का साक्षात प्रतीक हैं।

मां स्कंदमाता पूजन विधि
  • प्रात: काल स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद मां का पूजन आरंभ करें एवं मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें।
  • मां के श्रृंगार के लिए शुभ रंगों का इस्तेमाल करना श्रेष्ठ माना गया है।
  • स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा विनम्रता के साथ करनी चाहिए।
  • पूजा में कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल आदि से पूजा करें।
  • चंदन लगाएं, माता के सामने घी का दीपक जलाएं।
  • इसके बाद फूल चढ़ाएं व भोग लगाएं।
  • मां की आरती उतारें तथा इस मंत्र का जाप करें
मां स्कंदमाता के मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां स्कंदमाता का प्रिय रंग और भोग

भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है। आरती के बाद 5 कन्याओं को केले का प्रसाद बांटें। मान्यता है इससे देवी स्कंदमाता बहुत प्रसन्न होती है और संतान पर आने वाले सभी संकटों का नाश करती है।

मां स्कंदमाता की आरती

जय तेरी हो स्कंदमाता,
पांचवां नाम तुम्हारा आता।
सब के मन की जानन हारी,
जग जननी सब की महतारी। जय तेरी हो स्कंदमाता
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं,
हर दम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।
कई नामों से तुझे पुकारा,
मुझे एक है तेरा सहारा। जय तेरी हो स्कंदमाता
कहीं पहाड़ों पर है डेरा,
कई शहरो में तेरा बसेरा।
हर मंदिर में तेरे नजारे,
गुण गाए तेरे भक्त प्यारे। जय तेरी हो स्कंदमाता
भक्ति अपनी मुझे दिला दो,
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।
इंद्र आदि देवता मिल सारे,
करे पुकार तुम्हारे द्वारे। जय तेरी हो स्कंदमाता
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए,
तुम ही खंडा हाथ उठाएं।
दास को सदा बचाने आईं,
चमन की आस पुराने आई। जय तेरी हो स्कंदमाता

मां स्कंदमाता स्तोत्र

नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥

शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥

महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥

मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।

सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधामककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥

शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥

सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥

प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥

इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥

जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥

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चैत्र नवरात्र : चौथे दिन करें मां कूष्मांडा की पूजा, जानें बीज मंत्र और आरती

चैत्र नवरात्र में चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की आदिशक्ति माना जाता है साथ ही माता दुर्गा के इस रूप को सबसे उग्र भी माना गया है।

माता दु्र्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की 8 भुजाएं होती हैं इसलिए इन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है।

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मां कूष्मांडा के आठ हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और माला होती है और इनके आठवें हाथ में जप की माला है। मां कुष्मांडा सिंह पर सवार होती हैं।

देवी कूष्मांडा की साधना और पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है। देवी अपने भक्तों को हर संकट और विपदा से निकालकर सुख वैभव प्रदान करती हैं।

साथ ही जो देवी कूष्मांडा की भक्ति करते हैं माता उसके लिए मोक्ष पाने का मार्ग सहज कर देती हैं। माता के भक्तों में तेज और बल का संचार होता है। इन्हें किसी प्रकार का भय नहीं रहता है।

 

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मां कूष्मांडा की पूजा विधि
  • सुबह स्‍नानादि से निवृत्त होकर देवी कूष्मांडा का ध्यान करें।
  • इसके बाद दुर्गा के कूष्‍मांडा रूप की पूजा करें।
  • पूजा में मां को लाल रंग के पुष्‍प, गुड़हल या गुलाब अर्पित करें।
  • इसके साथ ही सिंदूर, धूप, दीप और नैवेद्य भी माता को चढ़ाएं।
  • माता के इस स्वरूप का ध्यान स्थान अनाहत चक्र है इसलिए देवी की उपासना में अनाहत चक्र के मिलते रंग जो हल्का नील रंग है उसी रंग के वस्त्रों को धारण करे। इससे माता के स्वरूप में ध्यान लगाना आसान होगा।
मां कूष्मांडा के मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ओम देवी कूष्माण्डायै नमः॥

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मां कुष्मांडा की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

मां कूष्मांडा का स्तोत्र

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।

कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।

कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

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चैत्र नवरात्र : तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा, जानें बीज मंत्र और आरती

चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का ये स्वरूप बेहद ही कल्याणकारी माना गया है। देवी चंद्रघंटा का स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी हैं। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं।

इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान हैं, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। 10 भुजाओं वाली देवी के हर हाथ में अलग-अलग शस्त्र विभूषित हैं। इनके गले में सफ़ेद फूलों की माला सुशोभित रहती हैं। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने वाली होती है।

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इनके घंटे की सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं। दुष्टों का दमन और विनाश करने में सदैव तत्पर रहने के बाद भी इनका स्वरूप दर्शक और आराधक के लिए अत्यंत सौम्यता और शांति से परिपूर्ण रहता है।

अतः भक्तों के कष्टों का निवारण ये शीघ्र ही कर देती हैं। इनका वाहन सिंह है। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेत-बाधादि से रक्षा करती है। आपको बताते हैं क्या है मां चंद्रघंटा की पूजा विधि, मंत्र और आरती …

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मां चंद्रघंटा की पूजा विधि
  1. मां को शुद्ध जल और पंचामृत से स्नान कराएं।
  2. अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, अर्पित करें।
  3. केसर-दूध से बनी मिठाइयों या खीर का भोग लगाएं।
  4. मां को सफेद कमल, लाल गुडहल और गुलाब की माला अर्पण करें और प्रार्थना करते हुए मंत्र जप करें।
  5. इस तरह देवी चंद्रघंटा की पूजा करने से साहस के साथ सौम्यता और विनम्रता में वृद्धि होती है।
मां चंद्रघंटा बीज मंत्र

“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।”

पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।

देवी चंद्रघंटा की आरती

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम।।
चंद्र समान तू शीतल दाती। चंद्र तेज किरणों में समाती।।

क्रोध को शांत बनाने वाली। मीठे बोल सिखाने वाली।।
मन की मालक मन भाती हो। चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।।

सुंदर भाव को लाने वाली। हर संकट मे बचाने वाली।।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये। श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय।।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं। सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।।
शीश झुका कहे मन की बाता। पूर्ण आस करो जगदाता।।

कांची पुर स्थान तुम्हारा। करनाटिका में मान तुम्हारा।।
नाम तेरा रटू महारानी। भक्त की रक्षा करो भवानी।।

 

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चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें बीज मंत्र व आरती

चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। देवी ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप और नौ शक्तियों में से दूसरी शक्ति हैं। मां दुर्गा का यह स्वरूप ज्योर्तिमय है।

ब्रह्मा की इच्छाशक्ति और तपस्विनी का आचरण करने वाली ब्रह्मचारिणी माता त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। साथ ही कुंडली में मंगल ग्रह से जुड़े सारे दोषों से मुक्ति मिल जाती है।

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देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप है। ब्रह्म का मतलब तपस्या होता है वहीं चारिणी का मतलब आचरण करने वाली।

इस तरह ब्रह्माचारिणी का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली देवी। मां ब्रह्माचारिणी के दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला और बाएं में कमंडल है।

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से सभी कार्य पूरे होते हैं, रुकावटें दूर होती हैं और विजय की प्राप्ति होती है।

इसके अलावा जीवन से हर तरह की परेशानियां भी खत्म होती हैं। आइए जानते हैं क्या है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, बीज मंत्र और आरती ….

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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
  • सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर लें।
  • पूजा के लिए सबसे पहले आसन बिछाएं फिर उस आसन पर बैठकर मां की पूजा करें।
  • माता को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि चढ़ाएं।
  • ब्रह्मचारिणी मां को भोगस्वरूप पंचामृत चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं।
  • इसके साथ ही माता को पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें।
  • इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें और फिर आरती करें।
देवी ब्रह्माचारिणी बीज मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

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मां ब्रह्मचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।

 

 

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चैत्र नवरात्र शुरू : शिमला के ऐतिहासिक काली बाड़ी मंदिर में लगा भक्तों का तांता

प्रथम दिन की गई मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना

शिमला। चैत्र नवरात्र के साथ आज हिंदू नव वर्ष की शुरुआत हो गई है। हिमाचल प्रदेश के सभी शक्तिपीठों में आज नवरात्र के प्रथम दिन सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया। राजधानी शिमला के ऐतिहासिक कालीबाड़ी मंदिर में प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की गई। हर वर्ष नवरात्र में दूर-दूर से लोग कालीबाड़ी मंदिर शिमला आते हैं।

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मंदिर के पुजारी मुक्ति चक्रवर्ती ने बताया कि मंदिर में नौ दिन तक माता के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाएगी। प्रथम दिवस आज शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जा रही है। उन्होंने कहा कि पूरे देश भर से श्रद्धालु नवरात्रों में कालीबाड़ी शिमला आते हैं।

लोगों की माता में विशेष आस्था है। सच्चे मन से जो माता की पूजा-अर्चना करता है माता उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। कालीबाड़ी मंदिर शिमला का ऐतिहासिक मंदिर है। अंग्रेजों के समय में मूर्ति को खंडित करने का प्रयास किया गया लेकिन सफल नहीं हो सके।

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आज के समय में हिंदू लोग अपनी रीति-रिवाज और संस्कृति भूल रहे हैं जो कि सही नहीं है जबकि विदेशी लोग हिंदू परंपरा को अपना रहे हैं। उन्होंने सभी प्रदेशवासियों को नवरात्र की शुभकामनाएं दीं और प्रदेश की मंगल कामना की प्रार्थना माता रानी से की।

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ऊना : तालाब में नहाने उतरे थे तीन मासूम, गंवा बैठे जान

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चैत्र नवरात्र हो रहे शुरू : जान लें कलश स्थापना शुभ मुहूर्त और विधि
कांगड़ा : महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक, पर वोट कम 

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