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ज्येष्ठ मास की संकष्टी चतुर्थी : गणेश जी के एकदंत रूप की ऐसे करें पूजा

पूजा और व्रत करने से पूरी होती है मनोकामना

ज्येष्ठ महीने की शुरुआत 6 मई से हो चुकी है। इस महीने में वट सावित्री व्रत और गंगा दशहरा का भी विशेष महत्व है। ज्येष्ठ का यह महीना विशेष रूप से भगवान सूर्य को समर्पित है। ज्येष्ठ महीने का संकष्टी चतुर्थी व्रत 8 मई (सोमवार) को रहेगा। इस तिथि पर भगवान गणेश के एकदंत रूप की पूजा करने की परंपरा है।

इस बार सोमवार को ज्येष्ठा नक्षत्र में चंद्रमा होने से पद्म नाम का शुभ योग बन रहा है। इस योग में भगवान गणेश की पूजा का शुभ फल और बढ़ जाएगा। भविष्य पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी की पूजा और व्रत करने से हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। हर तरह के संकट से छुटकारा पाने के लिए संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश और चतुर्थी देवी की पूजा की जाती है। इनके साथ ही रात का चंद्रमा की पूजा और दर्शन करने के बाद व्रत खोला जाता है।

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ज्योतिषाचार्यों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ है “कठिन समय से मुक्ति पाना”। इस दिन भक्त अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति जी की आराधना करते हैं। पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना फलदायी होता है। इस दिन उपवास करने का और भी महत्व होता है।

भगवान गणेश को समर्पित इस व्रत में श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाइयों और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं। कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं इसे संकट चौथ भी। इस दिन भगवान गणेश का सच्चे मन से ध्यान करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और लाभ प्राप्ति होती है।

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संकष्टी चतुर्थी की पूजा की विधि
  • सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और साफ कपड़े पहनें।
  • दिनभर व्रत रखने और गणेश जी की पूजा करने का संकल्प लें।
  • गणपति जी की मूर्ति को फूलों से सजा लें और पूजा करें।
  • पूजा में तांबे के कलश में पानी, फूल, धूप, चंदन, प्रसाद के तौर पर तिल, गुड़, लड्डू, केला या नारियल रखें।
  • संकष्टी को भगवान गणपति को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।
  • शाम को चंद्रमा निकलने से पहले गणपति जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।
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