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रनौत परिवार में आया नन्हा मेहमान, कंगना ने शेयर की तस्वीरें, अश्वथामा रखा नाम

मुंबई। नवरात्र के पावन अवसर पर एक्ट्रेस कंगना रनौत के परिवार में नन्हा मेहमान आया है। कंगना बुआ बन गई हैं। कंगना के भाई अक्षत रनौत और उनकी धर्मपत्नी ऋतु रनौत को बेटा हुआ है।

कंगना नन्हे मेहमान के आने से बेहद खुश हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर बच्चे के साथ अपनी व परिवार की ढेर सारी तस्वीरें शेयर की हैं। इसी के साथ कंगना ने बच्चे के नाम का भी खुलासा कर दिया है।

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कंगना रनौत ने लिखा, “आज इस सौभाग्यपूर्ण दिन पर हमारे परिवार को संतान प्राप्ति हुई है, मेरे भाई अक्षत रनौत और उनकी धर्मपत्नी ऋतु रनौत को सौभाग्य से पुत्र प्राप्ति हुई है।

इस तेजस्वी एवं मन मोह लेने वाले बालक का नाम हमने अश्वथामा रनौत ( Ashwatthama Ranaut) रखा है। आप सब हमारे परिवार के नये सदस्य को आशिर्वाद दे, हम अपनी असीम प्रसन्नता आप सब के साथ बाँटते हैं 🙏 आपके आभारी रनौत परिवार ”

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अपने भाई और भाभी के लिए कंगना ने लिखा, “मेरी प्यारी रितु, तुम्हें एक हँसती-खिलखिलाती लड़की से एक उत्कृष्ट महिला और अब एक सौम्य माँ में बदलते हुए देखकर बहुत ख़ुशी हुई। आपके और अक्षत के जीवन के इस गौरवशाली अध्याय के लिए मेरा सारा प्यार और आशीर्वाद।

आपका खुशहाल परिवार एक खूबसूरत तस्वीर बनाता है जो मेरे दिल को इस तरह से भर देता है कि मैं संभवतः कभी भी शब्दों में इसका वर्णन नहीं कर सकती। प्यार और आशीर्वाद हमेशा, दीदी…. ”

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बता दें कि अश्वत्थामा पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था। वह महाभारत का अमर पात्र था जिसे ना तो युद्ध में कोई मार पाया और ना युद्ध के बाद।

पौराणिक गाथाओं में जितने भी लोग चिरंजीवी हैं, उन सभी के लिए यह वरदान है, सिर्फ अश्वत्थामा को छोड़कर। अश्वथामा के लिए अमरत्व वरदान नहीं, बल्कि श्राप है। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।

अश्वत्थामा महावीर था। उसके भीतर महाभारत युद्ध को अकेले ख़त्म करने की शक्ति थी। उसके पास ऐसे दिव्य अस्त्र थे, जो उस कुरुक्षेत्र में किसी के पास नहीं थे। लेकिन, लीलाधर श्रीकृष्ण के आगे उसकी एक ना चली।’ महाभारत युद्ध के बाद 18 योद्धा जीवित बचे, अश्वत्थामा उनमें से एक था।

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महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह के शर शय्या पर पड़ने के बाद गुरु द्रोण कौरवों के सेनापति बने। द्रोण और उनके पुत्र अश्वत्थामा ने पांडव पक्ष के कई दिग्गज सेनापति मार गिराए।

यह देखकर श्रीकृष्ण ने चाल चली। उन्होंने भीम को इशारा किया और भीम ने अवंतिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी का वध कर दिया। वह रणभूमि में उद्घोष करने लगे कि उन्होंने अश्वत्थामा का वध कर दिया।

गुरु द्रोण को भीम की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर से इसकी सत्यता पूछी, क्योंकि वह झूठ नहीं बोलते थे। युधिष्ठिर ने जवाब दिया, ‘अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।’

हाथी बोलते समय श्रीकृष्ण ने शंखनाद कर दिया, जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य ‘हाथी’ शब्द नहीं सुन पाए। आचार्य द्रोण शोक में डूब गए और उन्होंने शस्त्र त्याग दिए। तभी द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट दिया।

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अश्वत्थामा प्रतिशोध की आग में जल रहा था। वह युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव शिविर में पहुंचा। वहां पांडवों के पांच पुत्र सो रहे थे। अश्वत्थामा उन्हें पांडव समझ कर मार आया।

उसने उत्तरा की कोख में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित पर भी ब्रह्मास्त्र चलाकर पांडवों के वंश का समूल नाश करने का प्रयास किया। भगवान श्रीकृष्ण उसके इस कृत्य से बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने अश्वत्थामा के माथे की मणि निकलवा ली और उसे चिरकाल तक भटकते रहने का श्राप दिया।

कहते हैं कि अश्वत्थामा के माथे से मणि के स्थान से मवाद बहता रहता है। उससे जुड़ी कई किवदंतियां भी हैं, जिनमें दावा किया जाता है कि वह कई मंदिरों में आकर पूजा करता है, मवाद को रोकने के लिए घी जैसी चीज़ें मांगता है।

 

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