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जयंती माता मंदिर में पंच भीष्म मेलों के अंतिम दिन उमड़ी भक्तों की भीड़, सैकड़ों ने किए दर्शन

दूर-दूर से दर्शन करने पहुंचते हैं श्रद्धालु

कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में प्रसिद्ध जयंती माता मंदिर में पंचभीष्म मेलों का आज समापन हुआ। पंच भीष्म मेले के आखिरी दिन सोमवार को भारी संख्या में श्रद्धालु जयंती माता मंदिर पहुंचे और मां का आशीर्वाद लिया। मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ना शुरू हो गई और पूरा दिन ये सिलसिला जारी रहा।

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पहाड़ की चोटी पर स्थित जयंती माता मंदिर के ठीक नीचे तीन नदियों मांझी, मनूनी और बनेर का संगम स्थल है। पंचभीष्म मेलों के दौरान तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्ते लगाकर दीपक जलाया जाता है। हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां के मंदिर में शीश नवाते हैं।

जयंती माता को मां दुर्गा की छठी भुजा का एक रूप माना जाता है। कहा जाता है कि कांगड़ा में माता का यह मंदिर द्वापर युग में निर्मित हुआ था। जयंती माता जहां जीत का प्रतीक है वहीं वह पापनाशिनी भी हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर पांडवों का भी वास कुछ समय तक रहा है।

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महाभारत के युद्ध के समय युधिष्ठर को मां जयंती ने स्वप्न दिया था कि उनकी इस युद्ध में जीत होगी और यह भी निर्देश दिया था कि पांडव मां चामुंडा का आशीर्वाद लें।

पांडवों की स्मृति में जयंती मां के मंदिर में पंचभीष्म मेले होते हैं। पांच दिन तक चलने वाले इन मेलों में कांगड़ा ही नहीं बल्कि दूर दराज के क्षेत्रों से भी हजारों की संख्या में लोग यहां पर मां के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार पंच भीष्म का संबंध महाभारत से जुड़ा हुआ है। जब महाभारत का युद्ध खत्म हुआ तो भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे हुए थे।

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यहीं से उन्होंने पांडवों को पांच दिन तक राजधर्म का उपदेश दिया। इसकी शुरुआत शुक्ल एकादशी को हुई थी और समाप्ती कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुई थी।

शरशैया पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने पांडवों को राजधर्म, मोक्ष, वर्ण आदि धर्मों पर उपदेश दिए थे। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर इन पांच दिनों को भीष्म पंचक व्रत के नाम से स्थापित किया।

साथ ही कहा कि जो भी इस व्रत को करेगा वह सभी पापों से मुक्त हो जाएगा और मोक्ष की प्राप्ति करेगा। पंच भीष्म के दौरान घर के आंगन में तुलसी माता की पूजा की जाती है। हिमाचल में तुलसी के साथ आंवला और गन्ने को रखकर भी पूजा की जाती है।

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