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खबली की 70 वर्षीय शोभा देवी ने कर दिखाया, अपनों की सेहत भी बचाई और मुनाफा भी कमाया

प्राकृतिक खेती अपनाकर प्राप्त कर रही अच्छे दाम

देहरा। कहते हैं कि अपनों की सेहत से बढ़कर शायद ही कुछ हो। इसके आगे धन दौलत भी बौनी है। यही साबित किया है कांगड़ा जिला के देहरा उपमंडल के खबली गांव की शोभा देवी ने। घर वाले बीमार रहने लगे तो खेतों में कीटनाशकों और रासायनिक खादों का प्रयोग बंद कर दिया और जैविक खेती की शुरूआत की, लेकिन जैविक खेती से भी नुकसान उठाना पड़ा।

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फिर भी हिम्मत नहीं हारी और प्राकृतिक खेती को अपनाने का फैसला लिया। प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण प्राप्त कर आज अच्छा मुनाफा कमा रहीं हैं और अपनों की सेहत भी अच्छी है।

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देहरा उपमंडल के खबली गांव की शोभा देवी कठोर मेहनत के बलबूते आज समाज के लिए प्रेरणा बन गई हैं। 20 कनाल में सब्जियां उगाकर परिवार का भरण-पोषण करने वाली 70 वर्षीय शोभा देवी ने उत्कृष्ट महिला किसान के रूप में पहचान बनाई है। शोभा देवी बताती हैं कि परिवार के सदस्य के आए दिन बीमार रहने लगे तो, उन्होंने खेतों में कीटनाशकों और रासायनिक खादों के प्रयोग को बंद करने का फैसला लिया।

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सब्जियों में अच्छी पैदावार और कीटों से रक्षा के लिए वह खेतों में जमकर खादों और कीटनाशकों को प्रयोग करती थीं। समय के साथ असर उनके पति के स्वास्थ्य और अन्य परिवारवालों की सेहत पर होने लगा। इसलिए उन्होंने परिवार और अपने सब्जी उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए जैविक खेती करना शुरू किया, लेकिन जैविक खेती में अधिक मात्रा में केंचुआ खाद और अन्य बाजार आधारित उत्पादों के प्रयोग के बावजूद उत्पादन कम होने से उत्पादन लागत बढ़ने से नुकसान हुआ।

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शोभा देवी को प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी मिली और उन्होंने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में पदमश्री सुभाष पालेकर से प्राप्त किया। शोभा देवी ने बताया कि इस खेती विधि के पहले ही साल में उनके उत्पादन में किसी प्रकार की कमी नहीं आई और कीटनाशकों तथा रासायनिक खादों का खर्च भी शून्य हो गया। प्राकृतिक खेती अपनाने से आज बाजार में उनकी सब्जियों की खासी मांग है और दाम भी अच्छे प्राप्त हो रहे हैं।

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शोभा देवी ने कहा कि खेती को रोजगार के रूप में अपनाने पर, उन्हें नई पहचान मिली है। आज वे उत्साह और आत्मविश्वास से भरी हुई हैं। शोभा देवी प्रगतिशील महिला किसान के रूप में प्राकृतिक खेती के बारे में बड़े-बड़े मंचों पर अपने अनुभव साझा करती हैं। पूरे क्षेत्र के किसानों को भी प्राकृतिक खेती से जोड़ने का काम कर रही हैं।

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उत्साह और आत्मविश्वास से भरी शोभा देवी ने पॉलीहाउस में भी प्राकृतिक खेती आरंभ कर मॉडल खड़ा कर दिया है। प्रदेश सरकार के सहयोग से शोभा देवी ने दो पॉलीहाऊस स्थापित कर प्राकृतिक खेती से बे-मौसमी सब्जियां उगाना आरंभ कर दी हैं। प्राकृतिक बे-मौसमी सब्जियों के उत्पादन से इन्हें अच्छी खासी कमाई भी हो रही है।

मेहनत और आत्मविश्वास से परिपूर्ण शोभा देवी किसानों के लिए प्रेरणाश्रोत बन चुकी हैं और उनकी देखा देखी में क्षेत्र के अन्य किसान भी इस खेती विधि से जुड़ रहे हैं। शोभा देवी ने बताया कि किसानों खासकर महिला किसानों को अपने खेतों में लाकर प्राकृतिक खेती का मॉडल दिखाती हूं और इस खेती विधि से हुए लाभ के बारे में जानकारी देती हूं।

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उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के लिए उन्हें सरकार की ओर से अनुदान पर देशी गाय उपलब्ध करवाई गई है। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन्हें लगभग प्राप्त हो रहा है।

 

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सिरमौर के संजीव ने लिखी कामयाबी की इबारत, मुनाफा भी कमा रहे-रोजगार भी दे रहे

राजगढ़ के नेरी कोटली पंचायत में सनोहत गांव के निवासी
राजगढ़। कहते हैं कि कुछ करने की दृढ़ इच्छा हो तो आप किसी भी मंजिल को पा सकते हो। ऐसा ही कर दिखाया है सिरमौर जिला के राजगढ़ उपमंडल के नेरी कोटली पंचायत के सनोहत गांव के संजीव रपेइक ने। वह न केवल अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि लोगों को रोजगार भी मुहैया करवा रहे हैं। संजीव रपेइक मल्टीपर्पज नर्सरी का कारोबार कर रहे हैं। आड़ू, पलम, बादाम और सेब के रूट स्टॉक तैयार कर बेचते हैं।
संजीव रपेइक ने 14-15 साल पहले कोटखाई के पुढ़ग के बेहद अनुभवी बागवान चेत राम धनी से नर्सरी का काम सीखा। उस समय राजगढ़ में सेब की बागवानी नहीं हुआ करती थी। दोनों ने मिलकर राजगढ़ में सेब से ही शुरुआत की। कुछ समय बाद चेत राम कोटखाई लौट गए तो संजीव ने अकेले काम शुरू किया। इसके बाद संजीव रपेइक ने एक छोटी सी नर्सरी से शुरुआत की। अपनी मेहनत से अब मल्टी पर्पज नर्सरी में करोड़ों का कारोबार कर रहे हैं। रमेश कुमार और कमला देवी के पुत्र 40 वर्षीय संजीव रपेइक हिमाचल और उत्तराखंड में मल्टी पर्पज नर्सरी चला रहे हैं। यही नहीं अकेले इस कारोबार की शुरुआत करने वाली संजीव आज करीब 23 लोगों को रोजगार दे रहे हैं।
संजीव रपेइक ने बताया कि जब वह सेब की रूट स्टॉक की नर्सरी करते थे तो उन्हें बांगलादेश से सेब की डिमांड आनी शुरू हो गई। उन्होंने नेपाल और पाकिस्तान भी सेब के रूट स्टॉक भेजे। फिलहाल उनके पास अभी एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का लाइसेंस नहीं है फिर भी बाहर से लोग भारत आकर उनके सेब  रूट स्टॉक लेकर जाते हैं। संजीव सेब से कुछ अलग काम चाहते थे। उस समय राजगढ़ में एक अंग्रेज मिस्टर हेडी आए, जिन्होंने संजीव को पलम के रूट स्टॉक के बारे में बताया। उन्होंने पलम की नर्सरी करने का मन बनाया।
वह कुछ समय चंडीगढ़ में भी रहे। उनके दोस्त के पिताजी का नैनीताल में बगीचा था। उसमें पलम और आड़ू के रूट स्टॉक थे। उस समय हिमाचल में इस बारे में कोई नहीं जानता था। नौणी विवि में भी पलम के रूट स्टॉक लाए गए थे, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए थे। संजीव बताते है कि उनके आड़ू, पलम और बादाम की अरुणाचल में भारी डिमांड है। खास बात ये है कि पलम में कम खर्चा है और पलम की ज्यादातर वैरायटी शुगर फ्री भी है।
बता दें कि संजीव रपेइक ने 8-10 साल पहले उधार आदि लेकर 30-40 हजार रुपए से कारोबार की शुरुआत की थी। फिर थोड़ा लोन लेकर काम आगे बढ़ाया और आज खर्च 8-10 लाख का हो जाता है और एक करोड़ के आसपास मुनाफा कमा लेते हैं। संजीव इस साल पलम का तीन हजार प्लांट लगाने वाले हैं। रूट स्टॉक खरीदने या इससे जुड़ी जानकारी के लिए संजीव रपेइक से संपर्क किया जा सकता है।

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