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पझौता : ठंडी धार में 27 साल बाद मनाया जा रहा ऐतिहासिक मेला

चार और पांच सितंबर को होगा आयोजन

राजगढ़। सिरमौर जिला के राजगढ़ उपमंडल के तहत पझौता परगणा के आराध्य देव शिरगुल महाराज की पावन स्थली ठंडी धार में ऐतिहासिक रेलटी (रेई) मेले का आयोजन किया जा रहा है। इस ऐतिहासिक मेले का आयोजन चार और पांच सितंबर को आयोजित होना सुनिश्चित हुआ है। ये मेला 27 साल बाद मनाया जा रहा है।

इस मेले में परंपरागत ठोडा खेल का आयोजन किया जा रहा है। जिसमे “शाठी दल कुंथल” एवं “पाशी दल जीमू” जम्वाल चार और पांच सितंबर को अपने खेल का प्रदर्शन करके इस ऐतिहासिक मेले की शोभा बढ़ाएंगे।

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सुदर्शन सिंह भण्डारी, ठाकुर देशराज सिंह, बबलू भगनाल , जोगिन्दर सिंह, नरेश ठाकुर, आकाश नेगी, अमन नेगी एवं समस्त शिरगुल सेवा समिति ठंडीधार के ने सभी लोगों से अधिक से अधिक संख्या में पधार कर इस मेले की शोभा में चार चांद लगाने की अपील की है।

सिरमौर जिला के मेलों में ठोडा खेल का बड़ा महत्व है। जब हमारी तकनीक से पहुंच बहुत दूर थी, मनोरंजन के सीमित साधन थे तब मेलों में मनोरंजन का ज़रिया था ठोडा खेल। इस खेल में दो दल होते हैं।

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दोनों दल विशेष परिधान पहन कर क्षत्रिय वीरगाथा गाते व ललकारते हुए एक दूसरे पर तीरों से प्रहार करते हैं। यह प्रहार टांगों पर घुटने के नीचे किए जाते हैं, जो दल सबसे अधिक सफल प्रहार करता है उसे विजेता घोषित किया जाता है।

दोनों टीमें तीर कमान, डांगरे (फरसे) व लाठियों से सुसज्जित होती हैं। फरसे लहराते हुए जब ये दल पारंपरिक नृत्य करते हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ बजने वाले गीत और एक दूसरे को ललकारने वाले बोल सबका मन मोह लेते हैं।

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नियमानुसार केवल विशेष पोशाक अथवा सुथण पहनने वाले धनुर्धर की टांगों पर ही सूर्यास्त से पहले तक दूसरा योद्धा वार कर सकता है। इसे मूल रूप से क्षत्रियों का ही खेल माना जाता है। इन मेलों में प्राचीन काल से इस परंपरा से जुड़े परिवार ही भाग लेते हैं।

पुरानी परंपरा के मुताबिक हर देवठी यानी देवी के फॉलोअर्स का अपना एक खूंद होता है। ये खूंद क्षत्रिय परिवारों के ही होते हैं और युवा ठोडा खेल अपने पूर्वजों से सीखते आ रहे हैं। हर खूंद देवी दुर्गा और कुछ कुल देवताओं के उपासक माने जाते हैं।

 

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