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देवभूमि हिमाचल के बैजनाथ में कैसे पहुंचा शिवलिंग, पढ़ें बाबा बैजनाथ धाम की कथा

बैजनाथ। हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी शक्तिपीठों व प्राचीन शिवालयों के लिए विश्व विख्यात है। इसमें जहां प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री ज्वालाजी, चामुंडा और ब्रजेश्वरी धाम कांगड़ा के ऐतिहासिक महत्व का धार्मिक ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है वहीं पर कांगड़ा की सुरम्य घाटी में अनेक प्राचीन शिवालय विद्यमान है जिनमें से बैजनाथ स्थित शिवधाम एक हैं जिसके प्रादुर्भाव की कथा  दशानन रावण  से जुड़ी है। देश विदेश से हर वर्ष लाखों की तादाद में श्रद्धालु व पर्यटक इस घाटी के मंदिरों के दर्शन के अतिरिक्त धौलाधार की हिमाच्छादित पर्वतश्रृंखला की अनुपम छटा का आनंद लेते हैं।

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उल्लेखनीय है कि शिवधाम में यूं तो वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन विशेषकर शिवरात्रि व सावन महीने में इस मंदिर में विशेष मेलों का आयोजन होता है। जिसमें बम बम भोले के उद्घोष से समूची बैजनाथ घाटी गुंजायमान होती है। बताते हैं कि इस मंदिर में प्राचीन शिवलिंग के दर्शन करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है।

जनश्रुति के अनुसार बैजनाथ शिव मंदिर में विशेषकर महाशिवरात्रि पर्व पर दर्शन करने का विशेष महत्व है। शिवरात्रि पर्व पर इस मंदिर में प्रातः से ही  भोलेनाथ के दर्शन के लिए हजार लोगों का मेला लगा रहता है। इस दिन मंदिर के बाहर रहने वाली बिनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर बेलपत्र, फूल भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर भोले बाबा को प्रसन्न करके अपने कष्टों का निवारण करते हैं।

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पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की थी। कोई फल न मिलने पर दशानन ने घोर तपस्या प्रारंभ की तथा अपना एक-एक सिर काट कर हवन कुंड में आहुति  देकर शिव को अर्पित करना शुरू कर दिया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिव जी ने प्रसन्न होकर रावण का हाथ पकड़ लिया उसके सभी सिरों को पुनर्स्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि वह कैलाशपति को शिवलिंग के रूप को लंका में स्थापित करना चाहता है। महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा। रावण ने शर्त मान ली।

शिवजी ने तथास्तु कहकर लुप्त हो गये। लुप्त होने के पहले शिव ने अपनी शिवलिंग स्वरूप चिन्ह रावण को देने से पहले शर्त रखी  कि वह इन शिवलिंगों को पृथ्वी पर न रखे। रावण दोनों शिवलिंग लेकर चला गया। रास्ते में गोकर्ण क्षेत्र बैजनाथ पहुंचने पर रावण को लघुशंका का आभास हुआ।

रावण ने बैजू नाम के ग्वाले को शिवलिंग पकड़ा दिया और स्वयं लघुशंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजू शिवलिंग के अधिक भार नहीं सहन सका और उसने इसे धरती पर रख दिया। इस तरह शिवलिंग बैजनाथ में स्थापित हो गया। मंदिर के सामने कुछ छोटे मंदिर हैं। नंदी बैल की मूर्ति है। जहां पर भक्तगण नंदी के कान में अपनी मनौती पूरी होने की कामना हैं।

गौर रहे कि यह शिवधाम अत्यंत आकर्षक सरंचना व निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने के रूप में विद्यमान है। इस मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश एक डयोढ़ी से होता है । जिसके सामने का बड़ा वर्गाकार मंड़प बना हुआ है और उत्तर व दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने हैं। मंडप के अग्रभाग में चार स्तंभों पर टिका एक छोटा बरामदा है। बहुत सारे चित्र दीवार में नक्काशी करके बनाए गए हैं। मंदिर परिसर में प्रमुख मंदिर के अलावा कई और भी छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें भगवान गणेश, मां दुर्गा, राधाकृष्ण व भैरव की प्रतिमाएं विराजमान हैं।

पांच दिवसीय राज्य स्तरीय मेला 18 से

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बैजनाथ में महाशिवरात्रि पर पांच दिवसीय राज्य स्तरीय मेला 18 से 22 फरवरी 2023 तक पारंपरिक ढंग से मनाया जाएगा। जिसमें शिवलिंग की पूजा अर्चना तथा शोभा यात्रा के साथ 18 फरवरी को मेला आरंभ होगा। इस पांच दिवसीय मेले में रात्रि को सिनेमा जगत के प्रसिद्ध कलाकारों के अतिरिक्त प्रदेश के विभिन्न जिलों से प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरा जाएगा। कमेटी द्वारा मेले में विशाल दंगल का आयोजन भी किया जाएगा जिसमें उत्तरी भारत के जाने माने पहलवान भाग लेंगे।

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