तपोवन (धर्मशाला)। कांगड़ा जिला के तपोवन धर्मशाला में हिमाचल प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र का छठा दिन समाप्त हुआ। छठे दिन तपोवन खूब तपा। एक तरफ जहां जोरावर स्टेडियम में ओबीसी संघर्ष समिति और एबीवीपी ने मांगों को लेकर प्रदर्शन किया।
दूसरी तरफ विधानसभा परिसर में कांग्रेस मंत्रियों और विधायकों ने केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोला तो सदन में रेरा को लेकर विपक्ष तल्ख दिखा और वॉकआउट किया।
बता दें कि धर्मशाला के तपोवन में हिमाचल प्रदेश विधानसभा सत्र का छठा दिन हंगामे से भरा रहा। भोजनावकाश में कांग्रेस विधायकों ने सदन के बाहर केंद्र सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। विधायक ओपीएस के लिए केंद्र से रोकी गई राशि वापस करने, श्रम कानूनों को वापस लेने और कर्मचारियों को राहत देने जैसी मांगों को लेकर आवाज बुलंद कर रहे थे। कांग्रेस विधायकों का कहना है कि एनपीएस का पैसा केंद्र सरकार जारी नहीं कर रही, जिससे प्रदेश आर्थिक दबाव में है।
भोरंज के कांग्रेस विधायक सुरेश कुमार ने कहा कि भाजपा केवल जनता को भ्रमित करने में लगी है। कर्मचारियों की मेहनत की कमाई केंद्र में अटकी हुई है और प्रदेश बार-बार आग्रह कर रहा है कि उसे वापस किया जाए। हमारी सरकार ने ओपीएस बहाल की, लेकिन भाजपा उसे बदलने की बात करती है। यह साफ दिखाता है कि भाजपा कर्मचारी–विरोधी नीति पर चल रही है।
वहीं, दूसरी ओर विपक्ष ने सुक्खू सरकार द्वारा लाए गए विधेयक भू संपदा (विनियमन और विकास) हिमाचल प्रदेश संशोधन विधेयक 2025 पर मुख्यमंत्री के जवाब से असंतुष्ट होकर सदन से वॉक आउट किया। मीडिया से बात करते हुए नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सुक्खू सरकार न तो संविधान को मानती है और न ही सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को महत्व देती है।
इसलिए सरकार आज यह ऐसा कानून लेकर आई है, जो रेरा चीफ की नियुक्ति में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को समाप्त कर दे। सरकार को न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर भी भरोसा नहीं है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इस पर सवाल किया गया तो मुख्यमंत्री ने हर बार की तरह विपक्ष पर न पढ़कर आने की टिप्पणी की।
वह स्वयं कितना पढ़ते हैं और कितने ज्ञानी हैं, वह पूरा देश देख चुका है। हिमाचल प्रदेश 3 साल से उनके पढ़ने लिखने का खामियाजा भुगत रहा है। जयराम ठाकुर ने कहा कि 2021 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि संवैधानिक पदों की नियुक्ति में न्यायपालिका के अधिकारों को कम करने के प्रयास किए जाएंगे तो वह किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं होंगे।