रेखा चंदेल/झंडूता। कोटधार नलवाड़ मेला समिति की बैठक प्राचीन शिव मंदिर लग दयो के प्रांगण में सांस्कृतिक समिति कमेटी के पदाधिकारी तथा सदस्यों के बीच संपन्न हुई।
इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कोटधार नलवाड़ मेला के लिए स्थानीय कलाकार महिला मंडल स्कूली बच्चे तथा बाहर से आने वाले कलाकार 23 मार्च 2025 तक अपने आवेदन सांस्कृतिक कार्यक्रम के मंच संचालक शशि रघुवंशी के मोबाइल नंबर 8262801003, सांस्कृतिक समिति के प्रभारी एवं कोषाध्यक्ष अनिल शर्मा 9805247632, सह प्रभारी एवं संस्थापक व महासचिव अमरनाथ धीमान के मोबाइल नंबर 9418055887, समिति के अध्यक्ष कैप्टन ज्ञानचंद धीमान के मोबाइल नंबर 98 05236953 पर भेज सकते हैं।
23 मार्च के बाद कोई भी आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा। कोटधार नलवाड़ मेला समिति के संस्थापक एवं महासचिव अमरनाथ धीमान ने उप मंडल झंडूता तथा जिला बिलासपुर के स्थानीय कलाकारों महिला मंडलों तथा स्कूली बच्चों व अन्य कलाकारों से आग्रह किया है कि वे अपनी प्रतिभा को उजागर करने के लिए इस कार्यक्रम में भाग लें। क्योंकि मेले और त्योहार हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं तथा ये विविधता में एकता के परिचायक होते हैं और यह दलगत राजनीति से ऊपर होते हैं।
इनमें सभी धर्मों, जातियों, संप्रदायों व सभी पार्टियों के लोग सामूहिक रूप से भाईचारे की भावना के साथ मिलजुल कर भाग लेते हैं तथा मेले को सफल बनाने में अपना हर संभव सहयोग देते हैं। कोटधार नलवाड़ मेला में दो सांस्कृतिक संध्या होगी। 28, 29 और 28 मार्च को दिन में स्कूली बच्चों, महिला मंडलों, स्थानीय कलाकारों के कार्यक्रम आयोजित होंगे और रात को स्टार नाइट का कार्यक्रम होगा।
29 तारीख को भी दिन में महिला मंडल, स्थानीय कलाकार, स्कूली बच्चे व शाम के समय रात को दूसरी स्टार नाइट होगी जिसमें उच्च कोटि के जाने-माने कलाकार बुलाए जाएंगे। इससे जहां इलाके के लोगों का मनोरंजन होगा वहीं हमारी जो सांस्कृतिक विरासत है उसे विरासत को आगे बढ़ने व संजोए रखने के लिए भावी पीढ़ी को अवगत करवाया जाएगा।
हम सबका यह नैतिक दायित्व है कि बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए ऐसे आयोजनों से अवगत करवाने की जरूरत है। लोगों के आपसी मेल का नाम ही मेला है। वर्तमान समय में लोग अपनी संस्कृति व सभ्यता को भूलकर पश्चिमी सभ्यता को अपना रहे हैं जो की बिल्कुल गलत है। हमारे देश भारतवर्ष की संस्कृति सब संस्कृतियों से प्राचीन एवं महान है।
इस संस्कृति को अपनाने के लिए भावी पीढ़ी को संदेश देने उन में जागरूकता लाने के लिए ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना बहुत जरूरी है जिससे बच्चे अपने पूर्वजों द्वारा चलाए जा रहे मेलों, त्योहार एवं संस्कार को संजोए रखने में अपनी अहम भूमिका निभा सकें।