रेखा चंदेल/झंडूता। वर्ष 1937 में राजा आनंद चंद द्वारा स्थापित बिलासपुर जिला का सिविल अस्पताल बरठीं अपनी दयनीय स्थिति के लिए जाना जाता है। इस अस्पताल को शुरू में एक डिस्पेंसरी के रूप में खोला गया था। ठाकुर रामलाल के प्रयासों से इसे सीएचसी का दर्जा मिला और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह द्वारा इसकी घोषणा की गई।
आज भी यह अस्पताल अपनी पुरानी बिल्डिंग में ही संचालित हो रहा है, जिसमें सुविधाओं का अभाव है। अस्पताल में मात्र 22 बेड हैं, जबकि ओपीडी में रोजाना 300 से अधिक मरीज आते हैं। यह अस्पताल 20 पंचायतों को कवर करता है। करीब 45000 लोगों को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाता है। इसके अलावा, यह जिला में डिलीवरी के लिए दूसरा सबसे बड़ा हॉस्पिटल है।
हॉस्पिटल की समस्याओं को देखते हुए यहां के डॉक्टर अखिलेश गौतम और डॉ अरुण जेस्ट ने बताया कि अस्पताल में सुविधाओं का अभाव है। उन्होंने बताया कि वर्किंग में 22 बेड हैं, जिनमें से 3 लेबर रूम में और 3 इमरजेंसी में लगाए गए हैं। बाकी 16 बेड वार्ड में लगाए गए हैं।
लोगों का कहना है कि सरकार को इस अस्पताल की स्थिति में सुधार करने के लिए कदम उठाने चाहिए। अस्पताल को नई बिल्डिंग और अधिक सुविधाओं की आवश्यकता है, ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके। हमें उम्मीद है कि सरकार इस ओर ध्यान देगी और अस्पताल की स्थिति में सुधार करेगी।
बता दें कि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला की तहसील झंडूता के तहत गांव भल्लू, पटवार सर्कल बडगांव में 7 अक्टूबर को निजी बस पर चट्टान गिरने का हादसा हुआ था। हादसे में 16 लोगों जान गंवाई। दो बच्चे घायल हुए थे।
घायल बच्चों को सिविल अस्पताल बरठीं ले जाया गया था। जहां प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें एम्स बिलासपुर रेफर कर दिया गया, लेकिन एंबुलेंस के अभाव के चलते बच्चों को रात करीब 11 बजे एम्स ले जाया गया। अब सवाल यह है कि अगर घायलों की संख्या अधिक होती तो स्थिति क्या रहती।