ऋषि महाजन/नूरपुर। किसानों को अच्छी आय अर्जित करने के लिए अगेती फसल लगानी चाहिए। साथ ही अंतर फसल और ट्रैप फसल को अपनाना चाहिए। सब्जियों आदि को कीटनाशकों से बचाने के लिए फसलों के बीच गेंदे के फूल खेत की मेढ़ों और फसल की पंक्तियों के बीच लगाने चाहिए, जिसे एक प्रभावी ट्रैप फसल माना जाता है।
गेंदा फूल फल छेदक और माहू जैसे हानिकारक कीटों को आकर्षित कर मुख्य फसल से दूर करता है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों के बिना प्राकृतिक कीट नियंत्रण संभव हो पाता है। वहीं, लौकी, तोरी, तुरई, करेला, भिंडी व बैगन आदि की खेती करते समय आवश्यक सावधानियां अवश्य अपनाएं।
जिला कांगड़ा के क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, जाच्छ (नूरपुर) की वैज्ञानिक रेणु कपूर ने यह जानकारी दी है। उन्होंने बेहतर उत्पादन के लिए अंतर फसल (खेत में एक साथ दो या दो से अधिक फसलें उगाना) और ट्रैप फसल (कीटों को आकर्षित करने के लिए लगाई जाने वाली फसल) की सलाह दी है।
उन्होंने किसानों को इको-फ्रेंडली तकनीकों और बारिश के मौसम में खेती के लिए मार्गदर्शन करते हुए कहा कि किसानों को अच्छी आए के लिए अगेती फसल लगानी चाहिए। फूलगोभी, बंदगोभी और ब्रोकली आदि के नर्सरी पौधे अगस्त माह से फार्म में होंगे उपलब्ध हो जाएंगे।
वर्तमान वर्षा ऋतु के दौरान सहायक प्रोफेसर (मृदा वैज्ञानिक) रेणु कपूर ने किसानों को सलाह दी है कि वे स्वस्थ सब्जियों जैसे कि लौकी, तोरी, तुरई, करेला, भिंडी व बैगन आदि की खेती करते समय आवश्यक सावधानियां अवश्य अपनाएं। जैसे खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था करना और उठी हुई क्यारियां या मेड़ें बनाना, ताकि पौधों की जड़ों के पास पानी न ठहरे-जो जड़ सड़न और फफूंदी संक्रमण का सामान्य कारण होता है।
अतिरिक्त वर्षा जल को निकालने के लिए खेत में उचित जल निकासी चैनल बनाए रखना आवश्यक है, जबकि प्राकृतिक खेती पूरी तरह से जीवामृत, गोबर, कम्पोस्ट, जैविक कीटनाशकों और मल्चिंग जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित होती है। ये तरीके न केवल फसल उत्पादन में वृद्धि करते हैं, बल्कि मिट्टी की जैव विविधता को भी धब्बेदार बनाए रखते हैं और रासायनिक इनपुट पर निर्भरता को कम करते हैं।
इसके साथ ही फसलों में फफूंदी जनित रोगों जैसे पाउडरी मिल्ड्यू, डैम्पिंग-ऑफ और पत्तों के धब्बे आदि के लक्षणों की नियमित निगरानी जरूरी है। प्रारंभिक लक्षण दिखाई देने पर नीम तेल या ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक फफूंदनाशकों का तुरंत उपयोग करना चाहिए। फल छेदक, माहू और सफेद मक्खी जैसे कीटों पर भी नजर रखनी चाहिए और एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) तकनीकों जैसे पीले चिपचिपे ट्रैप, फेरोमोन ट्रैप, प्राकृतिक रिपेलेंट और जैविक नियंत्रण उपायों का प्रयोग करना चाहिए।
सहायक प्रोफेसर (मृदा वैज्ञानिक) रेणु कपूर ने बताया कि अच्छी आए के लिए अगेती फसलों को बीजना चाहिए। समय पर लगाने से इसमें अच्छी फसल होती है। उन्होंने बताया कि हमारे जाच्छ फार्म पर विभिन्न मौसमों के अनुसार कई प्रकार की सब्जियों के नर्सरी पौधे तैयार किए जा रहे हैं।
ये स्वस्थ और अच्छी तरह विकसित पौधे खेत में तत्काल रोपाई के लिए उपयुक्त हैं। आगामी सर्दी के मौसम के लिए फूलगोभी, बंदगोभी, ब्रोकली आदि के पौधे अगस्त माह से उपलब्ध होंगे। सभी किसान भाई-बहनों से अनुरोध है कि समय पर रोपाई सुनिश्चित करने के लिए फार्म पर पधारे और अपनी पौधों की अग्रिम बुकिंग करवाएं।
सहायक प्रोफेसर (मृदा वैज्ञानिक) रेणु कपूर ने बताया कि सब्जियों आदि को कीटनाशकों से बचाने के लिए फसलों के बीच गेंदे के फूल खेत की मेढ़ों और फसल की पंक्तियों के बीच लगाने चाहिए, जिसे एक प्रभावी ट्रैप फसल माना जाता है ।
गेंदा फूल फल छेदक और माहू जैसे हानिकारक कीटों को आकर्षित कर मुख्य फसल से दूर करता है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों के बिना प्राकृतिक कीट नियंत्रण संभव हो पाता है। किसानों को इन उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि फसलें स्वस्थ रहें, पैदावार बेहतर हो और मिट्टी की दीर्घकालिक उर्वरता बनी रहे।