ऋषि महाजन/नूरपुर। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी राजा साहिब दशहरा और रामलीला क्लब नूरपुर द्वारा होली उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। फूलों, रंगों व गुलाल की होली श्री बृजराज स्वामी मंदिर प्रांगण नूरपुर में खेली जाएगी।
आयोजन 13 और 14 मार्च, 2025 को होगा। दो दिन मनाए जाने वाले होली पर्व के पहले दिन 13 मार्च को फूलों की होली खेली जाएगी। दोपहर 2 बजे से शाम 7 बजे तक फूलों की होली खेली जाएगी।
साथ ही वृंदावन से भजन गायक कुंज बिहारी दास जी महाराज के द्वारा धार्मिक व सांस्कृतिक भजनों की प्रस्तुति होगी। इसी दिन सुंदर झांकियां भी निकाली जाएंगी। दूसरे दिन 14 मार्च को सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक रंगों की होली खेली जाएगी। हिमाचली लोक गायक ईशांत भारद्वाज मुख्य आकर्षण होंगे।
राजा साहिब दशहरा और रामलीला क्लब नूरपुर के प्रधान गौरव महाजन ने बताया कि पिछले कुछ वर्ष से सभी के साथ एवं सहयोग से यह प्रयास किया जा रहा है कि नूरपुर में मनाए जाने वाले अन्य धार्मिक आयोजनों की तरह नूरपुर की होली की भी प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान बने। इसके लिए क्लब का पूरा प्रयास है। उन्होंने कहा कि 13 मार्च को दोपहर 2 से शाम 7 बजे तक फूलों की होली खेली जाएगी।
बता दें कि भक्त कैसा हो और भक्ति कैसी होनी चाहिए इसका उत्तम उदाहरण हैं मीराबाई। श्री कृष्ण की अपार भक्त मीरा बाई को प्रेम व आस्था का संगम माना जाता है। आज भी लोग उनके त्याग और भक्ति भाव का गुणगान करते हैं। हिमाचल के कांगड़ा जिला के नूरपुर शहर में इस प्रेम व आस्था के संगम का प्रतीक एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें श्री कृष्ण और मीरा एक साथ विराजमान हैं।
इस किले के अंदर श्री बृज राज स्वामी तथा काली माता मंदिर है। जानकार बताते हैं कि नूरपुर स्थित श्री बृजराज स्वामी मंदिर विश्व में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां कृष्ण व मीरा की मूर्तियां एक साथ हैं। रजवाड़ाशाही में दरबार-ए-खास (जहां राजा का दरबार सजता था) और विश्व के हजारों राधा-कृष्ण के मंदिरों में से यही एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान श्रीकृष्ण व मीरा की साक्षात मूर्तियां एक साथ स्थापित हैं।
सौंदर्य से परिपूर्ण एक टीलेनुमा जगह पर स्थित यह नगर कभी राजपूत राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। इस मंदिर के इतिहास के साथ एक रोचक कथा जुड़ी है। 1619 से 1623 ई. में नूरपुर के राजा जगत सिंह अपने राज पुरोहित के साथ चित्तौड़गढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गए। राजा जगत सिंह व उनके राज पुरोहित को रात्रि विश्राम के लिए महल में स्थान दिया गया।
उसके साथ एक मंदिर था, जहां रात के समय राजा को उस मंदिर से घुंघरुओं तथा संगीत की आवाजें सुनाई दीं। राजा ने जब मंदिर में झांक कर देखा तो उस कमरे में श्रीकृष्ण जी की मूर्ति के सामने एक उनकी एक अनन्य भक्त भजन गाते हुए नाच रही थी। राजा ने सारी बात अपने राज पुरोहित को सुनाई।
राज पुरोहित ने राजा जगत सिंह को चितौड़गढ़ से घर वापसी पर राजा से इन मूर्तियों को उपहार स्वरूप मांग लेने का सुझाव दिया, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण व मीरा की यह मूर्तियां साक्षात हैं। चितौड़गढ़ के राजा ने भी खुशी-खुशी मूर्तियां व मौलश्री का एक पेड़ राजा जगत सिंह को उपहार स्वरूप दे दिया।
तदोपरांत नूरपुर के राजा ने अपने दरबार-ए-खास को मंदिर का स्वरूप देकर इन मूर्तियों को वहां पर स्थापित करवा दिया। राजस्थानी शैली की काले संगमरमर से बनी भगवान श्रीकृष्ण व अष्टधातु से बनी मीरा की मूर्ति आज भी नूरपुर किले के अंदर ऐतिहासिक श्री बृज राज स्वामी मंदिर में शोभायमान हैं।