ऋषि महाजन/नूरपुर। कांगड़ा जिला के नूरपुर में जिला स्तरीय नागनी माता मेलों का आगाज हो गया है। जुलाई और अगस्त में मंदिर में मेले लगते हैं। हर शनिवार लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
बता दें कि नागनी माता मंदिर वैज्ञानिकों के लिए आज भी रहस्य बना हुआ है। यहां सांप, बिच्छू और अन्य जहरीले जीवों के काटे लोगों का इलाज सिर्फ पानी पिलाकर और शक्कर (मिट्टी) लगाकर किया जाता है। रोजाना यहां सर्पदंश के मरीज पहुंचते हैं। मान्यता है कि मां की शरण में आने से सर्पदंश का असर खत्म हो जाता है।
मंदिर का इतिहास भी शक्तिपीठों जितना पुराना है। खास बात यह है कि यहां के पुजारी राजपूत घराने से हैं। मंदिर के अस्तित्व को लेकर एक दंतकथा प्रचलित है। कहा जाता है कि पहले इस जगह का नाम टीका कोढ़ी था। यह घने जंगलों से घिरा था।
यहां एक वृद्ध रहता था, जो कोढ़ से पीड़ित था। वह रोज भगवान से बीमारी से मुक्ति की प्रार्थना करता था। एक रात उसे सपने में नागनी माता ने दर्शन दिए। उसने देखा कि नाले में दूध की धारा बह रही है। सुबह उठने पर वही धारा दिखाई दी। उसने उस तरल और शक्कर (मिट्टी) को शरीर पर लगाया, उसका कोढ़ ठीक हो गया।
इसके बाद माता की दिव्य शक्तियां उसके परिवार को भी प्राप्त हो गईं। आज भी वही परिवार मंदिर की सेवा करता है। एक बार एक बंगाली सपेरा माता के चमत्कार सुनकर यहां आया। उसने कठोर तप किया। माता ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा। सपेरे ने पिटारी माता के सामने रख दी और कहा कि आप सदा मेरे साथ रहें। माता ने शर्त रखी कि जब तक नूरपुर की सीमा पार न हो, पिटारी मत खोलना। सपेरा पिटारी लेकर चल पड़ा। जहां भी वह थककर पिटारी रखता, वहां जलधारा फूट पड़ती।
उधर, नागनी माता ने नूरपुर रियासत के राजपुरोहित को सपने में आकर पिटारी में बंद होने की बात बताई। अगले दिन राजा अपने सैनिकों के साथ सपेरे की तलाश में निकले। कंडवाल के पास बखंडा में उसे ढूंढ निकाला। सपेरे ने माता को ले जाने के लिए क्षमा मांगी।
नूरपुर उपमंडल में नागनी माता के दो स्थल हैं। पहला कंडवाल के पास हिमाचल-पंजाब सीमा से आधा किलोमीटर दूर है। इसे छोटी नागनी माता कहा जाता है। दूसरा, भडवार के पास कोढ़ी में है। इसे बड़ी नागनी माता कहा जाता है।
जिस स्थान पर यह घटना घटी, वह आज नागनी माता के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण राजा जगत सिंह और प्रठानी राजपूत ने कराया था। यहां आज भी कई जलधाराएं बहती हैं। मान्यता है कि जो भक्त बिना किसी स्वार्थ के मां की भक्ति करता है, उसे मां दर्शन देती हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार बंगाली सपेरे और राज पुरोहित के बीच तांत्रिक शक्तियों को लेकर शर्त लग गई। सपेरे ने जहरीले नाग से पुरोहित पर वार किया। जहर से तड़पते पुरोहित को गोबर से भरे कुएं में डालकर बचाया गया। बाद में पुरोहित ने मां नागनी की आराधना कर सपेरे पर वार किया। तब सपेरा घबरा गया और महाराजा से जान की भीख मांगी। उसे माफ कर दिया गया।
मां के कोप को शांत करने के लिए प्रार्थना की गई कि वह अपना जहर बांस के जंगल में गिरा दें। इसके बाद बांस के जंगल भस्म हो गए। इस तरह की कई दंतकथाएं इस मंदिर से जुड़ी हैं। सच्चाई जो भी हो, लेकिन यह सच है कि आज भी यहां सांप और बिच्छू के काटे लोगों का इलाज होता है।