हरिपुर। किसानों की तकदीर बदलने वाली फल और सब्जी मंडी गुलेर ही बदलने की दहलीज पर है। लाखों रुपए खर्च कर बनी गुलेर फल और सब्जी मंडी वर्तमान में अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है।
उद्घाटन के दो साल 9 माह बाद भी सब्जी मंडी शुरू नहीं हो पाई है। अब कृषि उपज मंडी समिति (APMC) कांगड़ा दुकानों की नीलामी की प्रक्रिया दोबारा शुरू करने जा रही है। इसके लिए जल्द विज्ञापन जारी किया जाएगा। अगर सब्जी मंडी नहीं चल पाई तो भवन को अन्य कार्य के लिए प्रयोग में लाया जाएगा।
नियमों की बात करें तो चार बार सब्जी मंडी में खाली दुकानों की नीलामी की जाती है। चार बार नीलामी प्रक्रिया के बाद भी दुकानों की बोली न लगे तो इसे कृषि संबंधित अन्य कार्यों के लिए लीज पर दिया जाता है। इसमें कृषि से जुड़े डेयरी, पोल्ट्री आदि कार्य किए जा सकते हैं। इसमें भी अगर कोई दिलचस्पी न दिखाए तो फिर गेंद सरकार के पाले में होती है। सरकार सब्जी मंडी को लेकर फैसला लेती है।
फल और सब्जी मंडी गुलेर में इससे पहले एक बार नीलामी हो चुकी है। यह दूसरी बार होगी। सब्जी मंडी में 6 दुकानों और कैंटीन का निर्माण किया गया है। दो दुकानें सब्जी मंडी को जमीन देने वालों को देने का निर्णय लिया है। तीन दुकानें और कैंटीन किराए पर चढ़ी थी, लेकिन काम न चल पाने से यह भी बंद पड़ी हैं।
फल और सब्जी मंडी गुलेर का उद्घाटन 1 मई 2022 को तत्कालीन विधायक होशियार सिंह ने किया था। इस सब्जी मंडी पर करीब 58 लाख रुपए खर्च किए थे। इस सब्जी मंडी से किसानों की तकदीर बदलने का दावा किया था। इससे हरिपुर, वासा, मेहवा, गुलेर, गठूतर, बिलासपुर, झकलेड़, इंदिरा कालोनी, भटोली फकोरियां, सपडू, खैरियां, कोड़ा गरना , जलरियां आदि के सात हजार से अधिक किसानों को लाभ होना था।
फल और सब्जी मंडी गुलेर बिना प्लान के ही तैयार की लगती है। क्योंकि क्षेत्र में सिंचाई योजनाएं बंद पड़ी हैं। बंगोली, गुलेर व बिलासपुर में सिंचाई योजना ठप पड़ी है। वासा की योजना कार्य कर रही, लेकिन उसका भी ज्यादा लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है।
ऐसे में जब किसानों के खेतों पर पानी ही नहीं पहुंचा तो सब्जी मंडी में सब्जी कहां से आती। पहले खेतों तक पानी पहुंचाया जाता फिर सब्जी मंडी का निर्माण किया जाता तो फिर भी किसानों को लाभ मिल पाता।
एपीएमसी के सचिव दीक्षित जरयाल ने कहा कि सब्जी मंडी में खाली दुकानों की नीलामी प्रक्रिया शुरू की जा रही है। यह दूसरी बार प्रक्रिया शुरू हो रही है। नियमों के तहत चार बार प्रक्रिया की जाती है।
इसके बावजूद दुकानों खाली रहे तो भवन को कृषि कार्य जैसे डेयरी, पोल्ट्री आदि के लिए पहले आओ पहले पाओ के आधार पर दिया जाता है। यह प्रक्रिया भी न हो सके तो फिर सरकार को लिखा जाता है। इसके बाद सरकार भवन को लेकर निर्णय लेती है।