हरिपुर। कांगड़ा जिला के देहरा विधानसभा क्षेत्र की हरिपुर तहसील के गुलेर में सब्जी मंडी आज भी बड़ी बेसब्री से सब्जियों का इंतजार कर रही है। क्षेत्र के किसान और सब्जियां खेतों में पानी की बाट जोह रहे हैं। अब खेतों में पानी पहुंचे तो सब्जियां पैदा हो, सब्जियां पैदा हों तो किसान मंडी में लेकर जाएं और मंडी में सब्जियां पहुंचे तो सब्जी मंडी का इंतजार खत्म हो। पर ऐसा कैसे होगा। सब्जी मंडी निर्माण पर करीब 58 लाख रुपए तो खर्च दिए, लेकिन हरिपुर क्षेत्र में सिंचाई योजनाओं की सुध किसी ने नहीं ली। ऐसे में न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी।
गुलेर में सब्जी मंडी का उद्घाटन करीब दो साल पहले हुआ था। उद्घाटन के वक्त बड़े-बड़े दावे किए गए थे कि इससे किसानों की तकदीर बदलेगी और उनकी आर्थिकी मजबूत होगी। सब्जी मंडी में 6 दुकानों और कैंटीन का निर्माण किया गया है। इसमें सब्जी मंडी के लिए जमीन देने वालों को दो दुकानें देने का तय हुआ था। तीन दुकानें और कैंटीन किराए पर चढ़ी थी, लेकिन काम न चलने से यह दुकानें और कैंटीन भी बंद करनी पड़ी। किराए पर लेने वालों ने इन्हें छोड़ दिया। जमीन देने वालों को दो दुकानें देने को लेकर उसने पत्राचार किया गया। इसमें एक का पता तो गलत निकला और दूसरे ने दुकान लेने में अभी तक दिलचस्पी नहीं दिखाई है। मौजूदा हालातों में करीब 58 लाख रुपए बर्बाद हुए ही दिख रहे हैं।
हरिपुर क्षेत्र में बंगोली, भटेहड़ बासा और गुलेर की सिंचाई योजनाएं ठप पड़ी हैं। इन योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च किया गया, लेकिन मौजूदा स्थिति में वे बर्बाद ही हैं। बंगोली में पंचायत घर के पास बनेर खड्ड में योजना बनाई गई थी। जब से योजना बनी है तब से लोगों के खेतों तक पानी नाममात्र ही पहुंचा है। यह योजना पिछले काफी साल से बंद पड़ी है। पिछली बरसात में योजना पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। हैरानी की बात यह है कि तीन साल पहले बंगोली क्षेत्र में सिंचाई योजना के लिए नई पाइपें बिछाई गईं और होद बनाए गए। लोगों ने सोचा कि अब खेतों में पानी पहुंचेगा, लेकिन नई पाइपें डालने के तीन साल बाद भी एक बूंद पानी खेतों तक नहीं पहुंच सका। 'कंगाली में आटा गीला होना' होने वाली कहावत हो गई। पहले की योजना पर करोड़ों बर्बाद कर दिए और पाइपें व होद बनाकर फिर लाखों रुपए की बलि चढ़ा दी।
इन सब बातों से प्रतीत होता है कि सब्जी मंडी बिना किसी योजना के बना दी गई। यह भी नहीं देखा गया कि सब्जी मंडी में सब्जियां कहां से आएंगी और कितनी आएंगी। इस सब्जी मंडी का कितना लाभ होगा। सब्जी मंडी बनाने से पहले अगर सिंचाई योजनाओं को दुरुस्त कर चालू करते तब भी कोई फायदा देखा जा सकता था। खेतों में पानी पहुंचता तो किसानों को सब्जी उत्पादन से जोड़ा जाता।
जब इस बारे एपीएमसी के सचिव दीक्षित जरयाल से बात की तो उन्होंने कहा कि अभी सब्जी मंडी बंद पड़ी है। तीन दुकानें चढ़ी थीं, लेकिन काम न चलने पर इन्हें भी बंद करना पड़ा। अब आचार संहिता हटने के बाद एक बार फिर दुकानों को अलॉट करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। साथ ही जमीन देने वालों को भी एक और मौका दिया जाएगा। अगर इसके बाद भी कोई परिणाम सामने नहीं आते हैं तो सब्जी मंडी को कृषि से संबंधित अन्य कार्यों के लिए प्रयोग किया जाएगा।