Breaking News

  • हिमाचल : 10 को नया पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होने की संभावना, कितना रह सकता असरदार - जानें
  • हमीरपुर के कांगू स्कूल के अक्षित ठाकुर की बड़ी उपलब्धि, सीएम सुक्खू ने बधाई
  • दुर्गम क्षेत्र क्वार में बीमार हुआ व्यक्ति, सीएम ने भेजा हेलिकॉप्टर-करवाया एयरलिफ्ट
  • सीएम सुक्खू बोले-हिमाचल में दो वर्ष में 39220 को दिया रोजगार
  • हिमाचल : नौतोड़ भूमि मामले में राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की बड़ी बात
  • नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा 18 जनवरी को, यहां से डाउनलोड करें रोल नंबर
  • बद्दी और अंबाला की कंपनी में 200 पदों पर भर्ती, ITI ऊना में इंटरव्यू
  • हमीरपुर : टौणीदेवी के चारों अनुभागों में 10 को बाधित रहेगी बिजली
  • कुल्लू : रायसन में पैराग्लाइडर क्रैश, हैदराबाद के पर्यटक की गई जान
  • HMPV अलर्ट : क्या बोले हिमाचल के स्वास्थ्य मंत्री धनी राम शांडिल-पढ़ें

Video Story - सिरमौर : बिशु मेले का खास महत्व, चार चांद लगाता है "ठोडा"

ewn24news choice of himachal 22 May,2023 8:59 pm

    राजगढ़। हिमाचल के सिरमौर जिला में बिशु मेला का अपना ही महत्व है। ठोडा नृत्य या खेल बिशु मेले की शान में चार चांद लगाने का काम करता है। इस दौरान देवताओं की पूजा की जाती है वहीं लोग नाच गाकर त्योहार मनाते हैं।

    देव परंपरा से जुड़े होने के कारण देवभूमि के दूर दराज इलाकों में बिशु मेले आयोजन करवाना जरूरी माना जाता है। बिशु मेला मैदानी इलाकों में मनाई जाने वाली बैसाखी के समकक्ष होता है। बिशु का त्योहार क्षेत्र में अपना खास महत्व रखता है क्योंकि इस समय सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं। गांव के जुब्बड़ पर मेला लगता है, लेकिन मेले से पूर्व तीन दिन तक गांव के देवता को जुब्बड़ पर गाजे बाजे के साथ नंगे पांव ले कर जाते हैं।

    हिमाचल : PMGSY तीसरे चरण में 2,800 करोड़ रुपए मंजूर, 2,400 किमी सड़कों होंगे खर्च

     

    बिशु की सूचना के लिए बाजा बजाया जाता है जिसे टमाकरा कहते हैं। इसमें बिशु का संगीत बजाया जाता है, यह इस बात का द्योतक है कि इस गांव में बिशु का मेला लगेगा। जिसके बाद लोग नाचते और गाते हैं। इस मौके पर पहले घर में स्वादिष्ट मीठी रोटी बनाई जाती थी जिसे मेले में मेहमानों को खिलाते थे और खुद भी खाते थे।

    बिशु मेले के दौरान देवताओं की झांकी निकाली जाती है। कुल देवता को प्रसन्न करने के लिए उन्हें उनके स्थानीय स्थान से पालकी द्वारा उनके मूल स्थान पर ले जाते हैं जोकि थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। बिशु मेले में तीर कमान से होने वाला महाभारत का सांकेतिक युद्ध अथवा ठोडा नृत्य व खेल मुख्य आकर्षण रहता है। ठोडा एक प्रकार को पारंपरिक खेल है।

     

    जब हमारी तकनीक से पहुंच बहुत दूर थी, मनोरंजन के सीमित साधन थे तब बिशु से बड़ा आयोजन पहाड़ी इलाकों में कोई नहीं माना जाता था। इनमें मनोरंजन का ज़रिया था ठोडा खेल। इस खेल में दो दल होते हैं। दोनों दल विशेष परिधान पहन कर क्षत्रिय वीरगाथा गाते व ललकारते हुए एक दूसरे पर तीरों से प्रहार करते हैं। यह प्रहार टांगों पर घुटने के नीचे किये जाते हैं, जो दल सबसे अधिक सफल प्रहार करता है उसे विजेता घोषित किया जाता है।
    हिमाचल में दो दिन भारी बारिश, ओलावृष्टि, तेज हवाएं चलने का अनुमान, ऑरेंज अलर्ट

    दोनों टीमें तीरकमान, डांगरे (फरसे) व लाठियों से सुसज्जित होती हैं। फरसे लहराते हुए जब ये दल पारंपरिक नृत्य करते हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ बजने वाले गीत और एक दूसरे को ललकारने वाले बोल सबका मन मोह लेते हैं। सिरमौर के अलावा हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बिशु मेले लगते हैं। शिमला के चौपाल में भी महाभारत कालीन बिशु मेले को मनाए जाने की परंपरा कायम है।

    नियमानुसार केवल विशेष पोशाक अथवा सुथण पहनने वाले धनुर्धर की टांगों पर ही सूर्यास्त से पहले तक दूसरा योद्धा वार कर सकता है। इसे मूल रूप से क्षत्रियों का ही खेल माना जाता है। इन मेलों में प्राचीन काल से इस परंपरा से जुड़े परिवार ही भाग लेते हैं। पुरानी परंपरा के मुताबिक हर देवठी यानी देवी के फॉलोअर्स का अपना एक खूंद होता है। ये खूंद क्षत्रिय परिवारों के ही होते हैं और युवा ठोडा खेल अपने पूर्वजों से सीखते आ रहे हैं। हर खूंद देवी दुर्गा और कुछ कुल देवताओं के उपासक माने जाते हैं।
    साच पास में बर्फ हटाने का काम जारी, जल्द खुलेगी ग्राम्फू-काजा-समदो सड़क

    हमारी दी गई जानकारी आपको पसंद आई हो तो लाइक व शेयर करें। दी गई जानकारी के संबंध में अगर आपके पास कोई नया या अलग तथ्य हो तो जरूर कमेंट करें।



     




Himachal Latest

Live video

Jobs/Career

Trending News

  • Crime

  • Accident

  • Politics

  • Education

  • Exam

  • Weather