धर्मशाला। हिमाचल में पटवारी और कानूनगो स्टैट कैडर के विरोध में उतर आए हैं। 28 फरवरी से पैन डाउन स्ट्राइक शुरू हो गई है। इससे लोगों तो परेशानी उठानी पड़ रही है।
वहीं, सरकार को भी करोड़ों रुपए की चपत लग रही है, क्योंकि पटवारी और कानूनगो के हड़ताल पर जाने से जमीन की रजिस्ट्री आदि कार्य प्रभावित हुए हैं।
जिला कांगड़ा के पटवारी और कानूनगो का कहना है कि हिमाचल में एक जिला की पैमाइश अन्य जिलों से भिन्न है। जैसे कनाल, मरले, बीघा बिस्वा, मीटर कर्म। ये कोई स्कूली पढ़ाई की पाइथागोरस थ्योरम नहीं है, जो हर जिला में एक सी पढ़ाई जाएगी।
हर जिला की अपनी बोली अलग है और बुजुर्गों का क्या? कांगड़ा- ऊना का व्यक्ति क्या कुल्लू-किन्नौर की लोकल बोली समझ पाएगा। उनके कार्य क्या ठीक से कर पाएगा।
खासकर विवादित सीमांकन वाले केस समझा पाएगा। वहां के रिवाज, बोली जब तक समझ में आएगी, उसका कहीं नई बोली वाले जिला में तबादला हो जाएगा।
कहा कि किसी भी विषय में कम जानकारी घातक सिद्ध होती है। पटवारी के काम को केवल प्रमाण पत्रों की तस्दीक व मामूली जमीन के कार्यों तक ही सीमित समझने वाले लोगों के द्वारा ही पटवारी की छवि ऐसी बनाई गई है कि वे उससे बढ़कर और कभी सोच ही नहीं पाते।
उनके नजरिये से तो पटवारी को फ्री की तनख्वाह मिलती है। उनका बस चले तो वो पटवारी बनने को ही अपराध घोषित कर दें। मामला यहां ज़िला कैडर में हुई भर्ती, जिला स्तर पर जमीन की अलग-अलग (पैमाइश, पैमाने) जिला स्तर की ट्रेनिंग व सीनियोरिटी का है।