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नौकरी छोड़ चुनी प्राकृतिक खेती की राह, तरौर के जगदीश कर रहे अच्छी कमाई

ewn24 news choice of himachal 14 Sep,2025 2:55 pm


    मंडी। नौकरी के पीछे भागने की होड़ छोड़कर अपने गांव की मिट्टी से जुड़े रहते हुए खेत-खलिहानों को आय का जरिया बनाने में उच्च शिक्षित युवा अब मिसाल बन रहे हैं। ऐसे ही युवा हैं मंडी जिले के गोहर ब्लॉक के तरौर गाँव के जगदीश चंद।

    बीएससी फिजिक्स की डिग्री प्राप्त करने के बाद जब उनके साथी बेहतर नौकरी की तलाश में शहरों की ओर जा रहे थे तब जगदीश ने अपनी जड़ों की ओर लौटने का फैसला किया। उन्होंने रसायन मुक्त खेती और आत्मनिर्भरता की राह चुनी। आज वे न केवल अपनी 20 बीघा जमीन पर एक सफल किसान हैं, बल्कि अन्य किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन गए हैं।




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    बकौल जगदीश चंद उन्होंने वर्ष 2016-17 में अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की। इसके बाद खेती-बाड़ी व पशुपालन के पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े। खेती में लगातार बढ़ रहे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों को भी उन्होंने महसूस किया। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता नष्ट होती है, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है। बढ़ती लागत और घटती पैदावार ने उन्हें पारंपरिक खेती से मोह भंग करने पर मजबूर कर दिया। इसी दौरान, उन्होंने प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी जुटाई और इस पद्धति को अपनाने का निर्णय लिया।

    शुरूआती दौर आसान नहीं था, चूंकि प्राकृतिक खेती में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता, जिससे आरम्भ में फसल की पैदावार कम होने का डर रहता है। लेकिन, जगदीश के मजबूत इरादों ने उन्हें आगे बढ़ने का हौसला दिया।

    उन्होंने अपनी 20 बीघा जमीन में से 10 बीघा पर प्राकृतिक खेती शुरू की। आज वे इस जमीन पर पारंपरिक फसलों के अलावा नकदी फसलें मटर, लहसुन और विभिन्न प्रकार की सब्जियां उगा रहे हैं। फसल की गुणवत्ता और स्वाद रसायनिक खादों से उगी फसलों की तुलना में कहीं बेहतर है, जिससे उन्हें बाजार में अच्छे दाम मिल रहे हैं।


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    जगदीश ने बताया कि वर्ष 2025 में कृषि विभाग की ओर से उन्हें सीआरपी (सामुदायिक स्रोत व्यक्ति) बनाया है। उन्होंने एक स्वदेशी गाय भी पाल रखी है, जिसके गौमूत्र एवं गोबर का उपयोग वे प्राकृतिक खेती के लिए करते हैं। साथ ही ग्रामीणों को भी इस खेती के आदान उपलब्ध करवाते हैं। इस तरह जगदीश को अपनी खेती को एक व्यावसायिक मॉडल में बदलने का अवसर मिला।

    राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन ने उनके इस सपने को साकार करने में अहम भूमिका निभाई। इस मिशन के तहत, जगदीश को जैव आदान संसाधन केंद्र खोलने के लिए 25 हजार रुपए की पहली किस्त मिली। उन्होंने इस राशि का उपयोग अपने घर में ही प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक सभी आदान, जैसे जीवामृत, बीजामृत, और घनजीवामृत तैयार करने के लिए किया। उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से कुल एक लाख रुपए तक अनुदान इसके तहत प्रदान किया जाता है।


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    जगदीश अब घर में ही एक छोटी सी प्रयोगशाला चला रहे हैं, जहां से किसान बहुत ही कम कीमत पर ये जैविक आदान खरीद सकते हैं। इससे जगदीश किसान से एक उद्यमी बन गए हैं। वह सिर्फ अपनी खेती से ही नहीं, बल्कि इन आदानों की बिक्री से भी अच्छी आमदनी कमा रहे हैं। अन्य किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर उन्हें इस पद्धति के बारे में विस्तार से जानकारी भी दे रहे हैं।

    खेती के अतिरिक्त उन्होंने दुग्ध उत्पादन पर भी विशेष ध्यान दिया है। अपनी गायों के लिए वे रासायनिक खाद रहित चारा तैयार करते हैं और इस तरह से शुद्ध दूध बाजार तक पहुंचाते हैं। उनके अनुसार यह आय का एक स्थाई स्रोत है और परिवार को बेहतर आर्थिक सुरक्षा भी देता है। देसी चारे और जैविक पद्धति से पाला गया उनका पशुधन उनके आत्मनिर्भर जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है।

    जिला परियोजना उप निदेशक, डॉ. हितेंद्र सिंह ने बताया कि जिले में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 50 प्राकृतिक खेती क्लस्टर बनाए गए हैं और 33 जैव आदान संसाधन केंद्र खोले गए हैं। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य किसानों तक प्राकृतिक खेती की विधि को प्रभावी ढंग से पहुंचाना है।



    इसके लिए 100 कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (सीआरपी) का चयन किया गया है, जो किसानों के बीच जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। ये सीआरपी गांवों में जाकर किसानों को प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों और तकनीकों के बारे में जानकारी देते हैं, उन्हें प्रशिक्षण देते हैं, और उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं।

    गोहर विकास खंड के खंड तकनीकी प्रबंधक, विजय कुमार के अनुसार, जगदीश चंद जैसे मेहनती युवाओं से प्रेरणा लेकर अन्य किसान भी इस पद्धति को अपना रहे हैं। उनके ब्लॉक में बालड़ी, छपराहण, मिश्राणरी और दिलग टिकरी चार क्लस्टर बनाए गए हैं, जिनमें लगभग 600 किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा गया है। पूरे गोहर ब्लॉक में अब तक लगभग 2500 किसानों ने प्राकृतिक खेती पद्धति को अपनाया है।



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