छठ पर्व : रविवार को होगा संध्या अर्घ्य, छठी मैया को चढ़ाया जाएगा खास प्रसाद
ewn24news choice of himachal 18 Nov,2023 8:07 pm
जानिए छठ पर्व के पीछे की कहानी
छठ पर्व शुरू हो चुका है। कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को छठ पूजा का विशेष विधान होता है। इस पूजा का मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश से आरंभ हुआ है, जो अब देश-विदेश तक फैल चुका है।
चार दिन का छठ पर्व सबसे कठिन व्रत होता है। इसलिए इसे छठ महापर्व कहा जाता है। इस पर्व के दो दिन निकल चुके हैं और अब रविवार को तीसरा दिन है।
इस पर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य के लिए होता है, जिसमें व्रत करने वाली महिलाएं पानी के अंदर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। चार दिन तक चलने वाला यह व्रत जिसका रविवार को तीसरा और विशेष दिन है। इस दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
महिलाएं दूध और पानी से सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं। इस दिन जैसे ही सूर्यास्त होता है परिवार के सभी लोग किसी पवित्र नदी, तालाब या घाट पर एकत्रित होकर एक साथ सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। आपको बताते हैं छठ पर्व के तीसरे दिन के बारे में विस्तार से ...
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं बनाया जाता है।
इसके अलावा चावल के लड्डू बनाए जाते हैं जिसे लडुआ भी कहा जाता है। इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
संध्या के समय पूरी तैयारी के साथ बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रत करने वाले के साथ परिवार और पड़ोसी सूर्य देव को अर्घ्य देने अपने-अपने नगर या गांव के नदी या तालाब के किनारे इकट्ठे होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं।
सूर्य को दूध और अर्घ्य का जल दिया जाता है। इसके बाद छठ मैया की भरे सूप से पूजा की जाती है और सारी रात छठी माता के गीत गाए जाते हैं।
भारत में सूर्य देव को प्रत्यक्ष ईश्वर मानकर उनकी पूजा-उपासना करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से चली आ रही है। सूर्य देव और उनकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में विस्तार से की गई है।
रामायण में माता सीता के भी छठ पूजा किए जाने का वर्णन मिलता है। वहीं, महाभारत में भी इससे जुड़ी कई कथाएं आती हैं। मध्यकाल तक आते आते छठ पूजा बेहद प्रतिष्ठित पर्व के रूप में मनाया जाने लगा जो कि आज देश-विदेश तक में मनाया जा रहा है।
कौन हैं छठी मैया
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं षष्ठी मैय्या। इस व्रत में षष्ठी मैया का पूजन किया जाता है इसलिए इसे छठ व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
पुराणों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया।
सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी मां का एक प्रचलित नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जानते हैं।
पुराणों के मुताबिक राजा प्रियंवद की काफी समय से कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनी खीर को खाने को कहा। इससे उन्हें पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ।
प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, ‘सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो।’
राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी तब से छठ को त्योहार के रूप में मनाने और व्रत करने की परंपरा चल पड़ी।
भगवान राम और माता सीता ने भी छठ का व्रत किया था। लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।
प्राचीन काल से यह भी मान्यता चली आ रही है कि महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने भी छठ पूजा की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
पौराणिक कथाओं में ये भी बताया गया है कि छठ का व्रत करने के प्रताप से ही पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट फिर से प्राप्त हो सका। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा।
उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।