शिमला। हिमाचल की राजधानी शिमला से करीब 30 किलोमीटर दूर धामी के हलोग में सोमवार को पत्थर मेले का आयोजन किया गया। यह पत्थर का ऐसा अजीब खेल है कि जब तक खून न बहने लगे तब तक पत्थरों की बारिश नहीं रुकती। पत्थरों का यह मेला दिवाली के एक दिन बाद खेला जाता है। इस मेले में दो समुदायों के बीच पत्थरों की जमकर बरसात होती है।
ऐसा ही पत्थरबाजी का नजारा आज भी धामी में देखने को मिला जहां दोनों तरफ से पत्थरों की जमकर बरसात हुई। ये सिलसिला तब तक जारी रहा, जब तक कि एक पक्ष लहूलुहान नहीं हो गया। नरबलि से शुरू हुई परंपरा पशु बलि के बाद पत्थरों के खूनी खेल के रूप में निभाई जाती है। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। करीब 20 से 25 मिनट तक चला यह खेल एक पक्ष की आंख में पत्थर लगने पर थमा।
धामी रियासत के उत्तराधिकारी राजा जगदीप सिंह ने बताया कि पहले यहां हर वर्ष भद्रकाली को नर बलि दी जाती थी लेकिन धामी रियासत की रानी ने सती होने से पहले नर बलि को बंद करने का हुक्म दिया था इसके बाद पशु बलि शुरू हुई। कई दशक पहले इसे भी बंद कर दिया गया। तत्पश्चात पत्थर का मेला शुरू किया गया।
मेले में पत्थर से लगी चोट के बाद जब किसी व्यक्ति का खून निकलता है तो उसका तिलक मां भद्रकाली के चबूतरे में लगाया जाता है। इसके बाद यह खेल खत्म कर दिया जाता है। यह खेल धामी रियासत के लोगों की खुशहाली के लिए खेला जाता था आज भी इसके माध्यम से क्षेत्र की खुशहाली की कामना की जाती है।
राजवंश के लोगों का कहना है कि आज तक पत्थर लगने से किसी की जान नहीं गई है। पत्थर लगने के बाद मेले को बंद कर सती माता के चबूतरे पर खून चढ़ाया जाता है साथ ही जिसको पत्थर लगता है उसका इलाज साथ लगते अस्पताल में करवाया जाता है।