हरिपुर। गुलेर रियासत की राजधानी हरिपुर का नाम इतिहास के पन्नों में भी दर्ज है, लेकिन वर्तमान में हरिपुर अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है। ऐतिहासिक धरोहरें तो मिट ही रहीं हैं, वहीं प्राचीन तालाब और कुएं भी अनदेखी शिकार हैं। इसमें से एक हरिपुर का भरा तालाब है। अगर आप हरिपुर कॉलेज की तरफ से न जाकर मुख्य रास्ते से माता संतोषी मंदिर की तरफ जाएं तो रास्ते में वट वृक्ष की छांव और भरा तालाब देखने को मिलता है। यह देखने में बड़ा ही अलौकिक प्रतीत होता है।
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हालांकि, भरा तालाब के जीर्णोद्धार पर लाखों रुपए खर्च किए गए। जीर्णोद्धार के बावजूद वर्तमान में यह भरा तालाब न रहकर सड़ा तालाब बन गया है। यही नहीं हरिपुर में ओझा का कुआं नाम से जाने जाना वाला प्राचीन कुआं भी बलि चढ़ गया है। बता दें कि हरिपुर भरा तालाब के जीर्णोद्धार के लिए श्री कल्याण राय टेंपल से पैसा आया था। यह पैसा एमपीलैंड फंड से मंजूर हुआ था। बताया जा रहा है कि तालाब को साफ करने और उसकी मरम्मत के लिए लाखों रुपए खर्च किए गए हैं।
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मगर साफ करके तालाब का पुरातन ही खत्म कर दिया गया। यानी इसका आस्तित्व ही बदल दिया गया। लोगों का कहना है कि जहां से इस तालाब को पानी से भरने का स्रोत था, उसका रास्ता ही बदल दिया गया। मां संतोषी मंदिर पहाड़ी की तरफ पाइप डालकर पानी का मुंह की मोड दिया।
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यही नहीं तालाब के साथ में वट वृक्ष था, जोकि टूट कर गिर गया था, उसे भी पानी से नहीं निकाला गया। तालाब को साफ करके कोई घास का बीज उसमें डाल दिया गया, जोकि पिछले दिनों पूरी तरह से बीच में सड़ गया। इस कारण तालाब का पानी पूरी तरह से गंदगी से भर गया।
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इसका असर साथ में एक कुएं पर पड़ा। इस कुएं को ओझा का कुआं नाम से जाना जाता है और सुबह शाम जिस पर पानी भरने वालों का जमावड़ा लगा रहता था। इस कुएं का पानी पूरी तरह से खराब हो चुका है। अब लोगों को दूसरी जगह से पानी लाना पड़ रहा है। उधर, जल शक्ति विभाग हरिपुर ने पानी के सैंपल लिए हैं। इस कुएं की बात करें तो यह कभी सूखता नहीं था। जल शक्ति विभाग व स्थानीय लोगों द्वारा इस कुएं को साफ भी किया, मगर पानी से बदबू नहीं गई। लोगों ने सरकार से मांग की है कि इतना बजट खर्च करने के बावजूद तालाब साफ क्यों नहीं हो पाया, इसकी जांच की जाए।
राजाओं ने बनवाए थे 360 मंदिर, 360 कुएं, बावड़ी और तालाब कहते हैं कि गुलेर रियासत के राजाओं ने 360 मंदिर, 360 कुएं, बाबड़ियां व तालाबों का निर्माण करवाया था, ताकि शहर में पानी की कमी न हो। तालाबों का निर्माण करने के पीछे एक बहुत बड़ी वजह भूमिगत पानी का स्तर बना रहना रही थी।
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साथ ही तालाबों के पानी से कुओं के पानी का लेवल बना रहे और तालाबों से पानी रिस-रिस कर कुओं में जा सके और कुओं से पानी हमेशा मिलता रहे। पहले तो लोग तालाबों के पानी को प्रयोग घर के लिए भी करते थे, लेकिन कुछ समय से इसका प्रयोग करना बंद कर दिया गया है।
भरा और सूखा तालाब हरिपुर की पहचान भरा तालाब और सूखा तालाब हरिपुर की पहचान है। हरिपुर के दो हिस्सों को सूखा और भरा तालाब में विभाजित किया जाता है। यानी बस अड्डे वाली जगह सूखा तालाब और हरिपुर चौगान साइट की जगह भरा तालाब से पहचानी जाती थी। सूखा तालाब का अस्तित्व तो पहले की मिट चुका है। अब वहां पर बस अड्डा बन गया है, लेकिन अब भी उस जगह को सूखा तालाब के नाम से जाना जाता है। वहीं, भरा तालाब अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है।
क्या कहते है हरिपुर के पंचायत प्रधान हरिपुर पंचायत के प्रधान राकेश कुमार ने कहा कि पानी से बदबू आ रही थी। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि भरा तालाब का पानी गंदी होने के चलते कुएं का पानी दूषित हुआ है। तीन चार दिन पहले कुएं का पानी साफ किया है। अब देखते हैं कि पानी साफ होता या नहीं। अभी लोग दूसरी जगह से पानी भर रहे हैं।
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