ऋषि महाजन/नूरपुर। एचएएस अधिकारी और तहसीलदार नूरपुर राधिका ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कहा कि महिलाओं को सिर्फ सम्मान देना ही काफी नहीं है। उन्हें बराबरी का हक, निर्णय लेने की स्वतंत्रता और अपने जीवन को अपने तरीके से जीने की आजादी मिले। हम केवल नारों तक सीमित न रहें, बल्कि यह सुनिश्चित करें कि हर घर, हर स्कूल, हर ऑफिस और हर पंचायत में यह बदलाव महसूस हो।
नूरपुर तहसीलदार राधिका ने कहा कि महिला सिर्फ सपने देखने तक सीमित नहीं है, वह उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत भी कर रही है। वह घर भी चला रही है और ऑफिस भी, खेतों में हल भी चला रही है और कारोबार भी देख रही है, लेकिन क्या हमारा समाज उसकी इस मेहनत को पूरी तरह स्वीकार कर पाया है?
समाज के हर वर्ग की महिलाओं की अलग-अलग चुनौतियां हैं। गांवों में आज भी लड़कियां स्कूल छोड़ने को मजबूर होती हैं, क्योंकि या तो स्कूल दूर हैं या परिवार को लगता है कि पढ़ाई उनके लिए जरूरी नहीं है।
तकनीक और सोशल मीडिया के इस दौर में नई तरह की समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं।
इंटरनेट की ताकत जहां एक तरफ महिलाओं को जागरूक बना रही है, वहीं दूसरी ओर यह उन्हें ट्रोलिंग, साइबर अपराध और मानसिक उत्पीड़न का शिकार भी बना रही है, लेकिन बदलाव आ रहा है। बेटियां अब केवल संघर्ष नहीं कर रहीं, वे जीत भी रही हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार की योजनाएं 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ', 'उज्ज्वला योजना', 'मुद्रा योजना', 'महिला स्वयं सहायता समूह' महिलाओं को सशक्त बना रही हैं, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा, जब हर गांव, हर शहर और हर गली में यह सोच बदले कि लड़की बोझ नहीं, बराबर की हकदार है।
एक प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते मेरी यह जिम्मेदारी है कि महिलाओं तक उनके हक पहुंचे। चाहे वह भूमि के मालिकाना हक की बात हो, न्याय की या स्वरोजगार की। किसी भी महिला को सिर्फ इसलिए अपने अधिकार से वंचित न रहना पड़े, क्योंकि उसे जानकारी नहीं है या सिस्टम की जटिलताओं की वजह से वह पीछे रह जाती है।
अब नारी झुकेगी नहीं, अब दौर बदलेगा। यह बदलाव हर परिवार से, हर दफ्तर से, हर गांव-शहर से शुरू होगा। हम सभी को यह सुनिश्चित करना होगा कि अगली पीढ़ी की लड़कियों को वह समाज मिले, जहां वे खुलकर हंस सकें।