शिमला। सुक्खू सरकार में कैबिनेट मंत्री राजेश धर्माणी को आपराधिक मानहानि मामले में बड़ी राहत मिली है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी के खिलाफ चल रहे मामले को रद्द कर दिया है।
साल 2017 में सितंबर महीने की 11 तारीख को घुमारवीं की एक अदालत ने प्रार्थी के खिलाफ प्रोसेस जारी करने के आदेश पारित किए थे। इस आदेश को राजेश धर्माणी ने एक याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने राजेश धर्माणी की तरफ से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ मामले से जुड़ी तमाम कार्रवाई को रद्द करने का फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि कथित मामला धारा-499 में दर्शाए अपवादों को देखते हुए आपराधिक मानहानि के दायरे से बाहर है।
तकनीकी आधार व आरोप की प्रकृति के दृष्टिगत भी निचली अदालत के आदेश में खामियां पाई गईं, जिन्हें प्रोसेस जारी करने से पहले कानूनी तौर पर जांचना परखना बहुत आवश्यक था। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामले में कार्यवाही को आगे जारी रखना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
दरअसल, ज्ञान चंद धीमान नामक व्यक्ति ने राजेश धर्माणी व प्रतिवादी सुरम सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा-500, 120-बी और 34 के तहत निजी आपराधिक शिकायत दाखिल की थी। उस समय वीरभद्र सिंह सरकार में राजेश धर्माणी सीपीएस थे।
शिकायत के अनुसार 30 दिसंबर 2012 को प्रतिवादी सुरम सिंह राजेश धर्माणी से मिला और शिकायतकर्ता ज्ञान चंद के खिलाफ आरोप लगाया कि उसने स्कूल के प्रधानाचार्य होते हुए जानबूझकर एसबीआई से रिटायर सीनियर मैनेजर ख्याली राम शर्मा को सालाना समारोह में आमंत्रित किया।
ख्याली राम शर्मा ने समारोह के दौरान सरकार के साथ-साथ उस समय कांग्रेस की नीतियों का भी विरोध किया। शिकायतकर्ता के अनुसार धर्माणी ने प्रतिवादी सुरम सिंह की तरफ से पेश संस्करण को सही मानते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय को डीओ नोट भेजा जिसमें शिकायतकर्ता के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की मांग की गई।
शिकायतकर्ता के अनुसार धर्माणी द्वारा की गई शिकायत के कारण उन्हें निलंबित कर दिया गया और आम जनता, विशेषकर शिक्षक समुदाय के बीच उनकी बदनामी हुई। निलंबित किए जाने के बाद विभागीय जांच की गई और जांच अधिकारी ने संबंधित पक्षों द्वारा रिकॉर्ड पर पेश किए गए सबूतों के आधार पर उन्हें दोषमुक्त कर दिया।
शिकायतकर्ता के अनुसार आधारहीन तथ्यों पर राजेश धर्माणी द्वारा जारी किए गए डीओ नोट पर उन्हें निलंबित किया गया था। प्रतिवादी सुरम सिंह द्वारा लगाए गए झूठे आरोप से उन्हें अपमान का सामना करना पड़ा।
शिकायतकर्ता ने राजेश धर्माणी और सुरम सिंह, दोनों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए आईपीसी की धारा-500, 120-बी और 34 के तहत शिकायत की।
इस पर घुमारवीं की सक्षम अदालत ने शिकायत में निहित कथनों के साथ-साथ रिकॉर्ड पर प्रस्तुत आपराधिक सबूतों को देखते हुए जुलाई 2017 में राजेश धर्माणी और सुरम सिंह के खिलाफ तय धाराओं में दंडनीय अपराध के लिए प्रोसेस जारी किया। इस पर राजेश धर्माणी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जहां से उन्हें अब राहत मिली है।