धर्मशाला। हम अपने आसपास कई बार छोटे बच्चों को भीख मांगते देखते हैं। कुछ लोग दया खाकर कुछ पैसे या खाने को कुछ दे देते हैं तो कुछ नसीहत देकर आगे बढ़ जाते हैं।
वहीं, कुछ लोग बच्चों से भीख मंगवाने की बात कह कर मां और बाप को कोसते नजर आते हैं। कई बार परिस्थितियां दूसरे के आगे हाथ फैलाने को मजबूर कर देती हैं। पर ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं जो उनकी मजबूरी या उनके हुनर को परखने की कोशिश करते हैं।
फिल्मों में तो अक्सर देखने को मिल जाता है कि स्लम एरिया से कोई करोड़पति बन गया या डॉक्टर या अधिकारी बन गया।
असलियत में यह बहुत कम देखने को मिलता है। पर एक ऐसा मामला हिमाचल में सामने आया है, जिसने यह साबित कर दिया है कि ऐसे बच्चों को अगर बेहतर अवसर मिले तो वह कोई भी मुकाम हासिल कर सकते हैं। यह कहानी है स्लम एरिया की रहने वाली पिंकी हरयान की।
पापी पेट की खातिर 2004 में करीब चार साल की उम्र में पिंकी हरयान को धर्मशाला के मैक्लोडगंज स्थित भगवान बुद्ध मंदिर के पास मां कृष्णा के साथ भीख मांगनी पड़ी। पर टोंग-लेन चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक, निदेशक व तिब्बती शरणार्थी भिक्षु जामयांग पिंकी हरयान के लिए फरिश्ता बनकर आए।
उन्होंने भीख मांगने और कूड़ा इकट्ठा करने वाले बच्चों के साथ पिंकी को भी अपना बच्चा समझकर नई जिंदगी दी। मां के साथ भीख मांगते पिंकी पर तिब्बती भिक्षु जामयांग की नजर पड़ी। यह नजर कुछ पल की सहानुभूति की नहीं थी।
जानकारी हासिल कर कुछ दिन बाद भिक्षु जामयांग चरान खड्ड की झुग्गी-बस्ती में आए। उन्होंने पिंकी की माता कृष्णा देवी और पिता कश्मीरी लाल से पिंकी को टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट के हॉस्टल भेजने को कहा।
माता-पिता की सहमति के बाद पिंकी को पढ़ाई के लिए हॉस्टल लाया गया। इसके बाद पिंकी की जिंदगी मानो बदल सी गई। एक बेहतर अवसर, अपने हौसले व जज्बे के बूते पिंकी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर डॉक्टर बन गई हैं और अब वह मरीजों की सेवा करने के लिए तैयार हैं।
धर्मशाला में पत्रकारों से बातचीत में पिंकी ने अपने अनुभव साझा किए। कहा कि वह टोंग लेन चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक और निदेशक जामयांग की तरह तो कुछ नहीं कर सकती लेकिन उनका सिर हमेशा ऊंचा रहे ऐसा कार्य करती रहूंगी।
वहीं, टोंग-लेन चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक और निदेशक जामयांग ने बताया कि पिंकी को साल 2018 में चीन के एक प्रतिष्ठित मेडिकल विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाया गया। वहां से छह साल की एमबीबीएस की डिग्री पूरी करके अब वह धर्मशाला लौट आई हैं। अब एक डॉक्टर के तौर पर वे मरीजों का इलाज करेंगी।
उन्होंने बताया कि टोंग-लेन चैरिटेबल ट्रस्ट गरीब व मजबूर लोगों के लिए काम करता है। धर्मगुरू दलाईलामा फाउंडेशन की ओर से भी सहयोग मिलता रहता है। पिंकी के पिता चादर और दरी बेचने का काम करते हैं। कुछ टाइम उन्होंने बूट पालिश भी की थी।