पालमपुर। जायका मुख्यालय मिशन के चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को परियोजना क्षेत्र का दौरा किया और हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण प्रोत्साहन परियोजना-2 में चल रही नई कृषि पद्धतियों की समीक्षा की। पिछले दो वर्ष में जायका कृषि परियोजना-2 क्षेत्र में किसी अंतरराष्ट्रीय मिशन का यह पांचवां दौरा है।
हिमाचल फसल विविधीकरण प्रोत्साहन परियोजना में हिमाचल सरकार के मीडिया एडवाइजर राजेश्वर ठाकुर ने बताया कि इस दल के सदस्यों में शिनो काटो, ताकाहिरो कोइके (दोनों जायका मुख्यालय के प्रतिनिधि), केन कुनीडा और युकारी इनागाकी (दोनों जायका इंडिया से) शामिल हैं।
जायका मिशन दल का हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति कार्यालय में स्वागत किया गया। मिशन दल ने कुलपति डॉ. नवीन ठाकुर, जायका कृषि परियोजना-2 के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया। जायका कृषि परियोजना-2 के परियोजना निदेशक डॉ. सुनील चौहान ने विस्तृत जानकारी दी और समीक्षा दल को प्रगति की स्थिति रिपोर्ट सौंपी।
जायका मिशन प्रतिनिधिमंडल ने पपरोला में संग्रह केंद्र का दौरा किया और लाभार्थी किसान उत्पादक कंपनी और इसके स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की महिला सदस्यों के साथ बातचीत की। परियोजना निदेशक डॉ. सुनील चौहान ने गणमान्य व्यक्तियों को बताया कि केंद्र की स्थापना 2017 में परियोजना-1 अवधि के दौरान 36.77 लाख रुपये के कुल परिव्यय के साथ की गई थी।
बाद में, परियोजना-2 के दौरान जून 2023 में केंद्र को मौजूदा किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ)-बैजनाथ प्रगतिशील किसान उत्पादक निर्माता कंपनी लिमिटेड को सौंप दिया गया।
पीएफओ की स्थापना पिछले साल 19 मार्च को जिला कांगड़ा के थारू (पपरोला) गांव में कार्यालय के साथ की गई थी। यह एफपीओ कृषि उपज के भंडारण, प्रसंस्करण और खुदरा बिक्री, संग्रह ग्रेडिंग और ऊन, दूध संग्रह, बोतलबंद और बिक्री के प्रसंस्करण में काम कर रहा है।
इसके 450 सदस्य हैं और गबली कुहल, हरटाडा, रग्लू, धरेर, छू नाला और बड़ाग्राम और नहलोट के लगभग छह स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) भी इससे जुड़े हैं। इस एफपीओ द्वारा खरीदे गए ऊन का भारत के बाहर भी निर्यात किया जा रहा है।
जायका मिशन टीम ने पालमपुर में शिटाके खेती और प्रशिक्षण केंद्र (एससीटीसी) का भी दौरा किया, जिसे जापान की याट्स कॉरपोरेशन के तकनीकी सहयोग से स्थापित किया गया था। टीम के सदस्यों ने केंद्र के कर्मचारियों और शिटाके उत्पादकों के साथ बातचीत की।
परियोजना के चरण-1 के दौरान राज्य फार्म विश्वविद्यालय परिसर में 3.25 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया गया, जबकि जायका कृषि परियोजना-2 अवधि के नौ वर्ष में 5.9 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
केंद्र के बारे में बताते हुए डॉ. सुनील चौहान ने कहा कि यह केंद्र भारत में एक मॉडल के रूप में अपनी तरह का एक केंद्र है और लकड़ी के ब्लॉकों पर शिटाके मशरूम उगाना शुरू कर दिया है। इस साल अगस्त के अंत तक 53.57 किलोग्राम सूखे मशरूम का उत्पादन किया गया।
स्थानीय स्तर पर 65.575 किलोग्राम ताजा शिटाके मशरूम बेचे गए हैं। केंद्र ने तैयार ब्लॉकों के साथ-साथ ताजे और सूखे शिटाके मशरूम बेचकर ₹3.31 लाख का राजस्व अर्जित किया है।
अप्रैल, 2023 में शिटाके मशरूम खेती की तकनीक को मानकीकृत करने के बाद, केंद्र ने 212 और 199 किसानों को शिटाके की खेती और प्रसंस्करण क्रमशः कुशल बनाने के लिए आठ प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं। केंद्र ने विभिन्न स्थानों पर किसानों को 2675 परीक्षण ब्लॉक वितरित किए हैं। इस मौके पर परियोजना के कांगड़ा जिले के तमाम पदाधिकारी भी मौजूद थे।