ऋषि महाजन/नूरपुर। कांगड़ा जिला के नूरपुर के निचले क्षेत्र में फलों के राजा आम पर लोगों की रोजी-रोटी निर्भर करती है। अच्छी उपज व अच्छी आय प्राप्त करने के लिए लोगों को बदलते पर्यावरण परिवेश में वैज्ञानिक पद्धति से खेती की ओर प्रयास करने चाहिए।
इसके लिए उन्हें अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए बगीचों का रखरखाव करना जरूरी है। वहीं, हाल में हुई बारिश भी आम की उपज के लिए अच्छी बताई जा रही है।
क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र जाच्छ के वैज्ञानिकों के अनुसार फल झड़ने की समस्या के निदान के लिए 2, 4 डी रसायन (2 ग्राम/100 लीटर पानी) या प्लेनों फिक्स (1 मिलीलीटर/4.5 लीटर पानी) का छिड़काव अप्रैल अंत या मई मास के प्रारंभ में किया जा सकता है।
बता दें कि हिमाचल प्रदेश में आम की खेती लगभग 40000 हेक्टेयर में होती है। साथ ही पैदावार 35000 मेट्रिक टन है। अगर कांगड़ा जिले की बात करें तो इसका कुल क्षेत्रफल 21735 हेक्टेयर और उत्पादन 22350 मेट्रिक टन है। इसकी खेती प्रमुखता नूरपुर, इंदौर, फतेहपुर,नगरोटा सूरियां, देहरा, प्रागपुर आदि विकास खंडों में सफलतापूर्वक की जाती है।
शुष्क क्षेत्रों में आम की बागवानी एक उत्तम विकल्प है। यहां बदलते मौसम व जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को भी आम के पौधे काफी हद तक सहने में सक्षम पाए जाते हैं। समुद्र तल से 600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्र आम की बागवानी के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
आम की प्रमुख किस्म में दशहरी, चौसा, लंगड़ा, मल्लिका, आम्रपाली आदि हैं। ये किस्में अधिक पैदावार देने में सक्षम हैं। इसके साथ-साथ सघन बागवानी के लिए आम्रपाली, अल्फांसो, मल्लिका, पूसा प्रतिमा, पूसा ललिया, पूसा श्रेष्ठ, अर्का अनमोल, अंबिका आदि किस्म का उपयोग भी किया जा सकता है।
आम की फसल में रोगों की बात करें तो तेला, मिली वग, तना छेदक कीट, टहनी छेदक,जाला बनाने वाला किट, फल मक्खी आदि प्रमुख हैं। इसके प्रमुख रोगों में अंबिका गुच्छा रोग, डाटूवैक, एंथ्रेक्नोज, चूरनी फफूद आदि हैं। बगीचों में अन्य समस्याएं फल झड़ना, निरंतर फलन कोरा और लू का प्रकोप आदि हैं।
क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र जाच्छ के वैज्ञानिक डॉ. राजेश क्लेयर ने कहा कि अक्सर पौधों में एक वर्ष भरपूर फसल होती है, वहीं दूसरे वर्ष पैदावार कम या ना के बराबर होती है।
इस समस्या के निदान के लिए बागवानों को नैप्थलीन एसिड (200 ग्राम/100 लीटर पानी) का छिड़काव फूलने के पश्चात फलत वर्ष के दौरान करना चाहिए। लू से बचाव के लिए पौधों की सिंचाई के साथ-साथ तने की चूना से पुताई करनी चाहिए। उन्होंने बागवान को सलाह दी है कि केंद्र में आकर भी सुझाव ले सकते हैं।
अनुसंधान केंद्र के सह निदेशक विपिन गुलेरिया का कहना है कि किसानों को उन्नत उत्पादन से अच्छी आमदनी के लिए आम की बोनी किस्म को ग्रेड करके बेचना चाहिए, ताकि कम उपज में भी अच्छी आम प्राप्त की जा सके। इसके अलावा फसल को बदलते पर्यावरण परिवेश में वैज्ञानिक पद्धति से खेती की ओर प्रयास करना चाहिए।
उधर, स्थानीय बागवानों की बात करें तो उन्होंने कहा कि फसल तो हो जाती है, लेकिन जब बेचने जाते हैं, तो उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलता है। क्योंकि बाहर से जो आढ़ती लोग आते हैं, वे स्थानीय आढ़तियों के साथ मिलकर सांठगांठ कर लेते हैं और कम मूल्य पर खरीदते हैं, जबकि बाजार में उसे दोगुना मूल्य पर बेचते हैं।