ऋषि महाजन/नूरपुर। पेड़ों का अंधाधुंध कटान चिंता का विषय है। पर्यावरण और अधिक गर्म होने, कार्बन उत्सर्जन बढ़ने की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व में प्रति व्यक्ति 40 पेड़ की आवश्यकता है, जबकि भारत में मात्र 28 पेड़ प्रति व्यक्ति ही बचे हैं। कांगड़ा जिला के क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र जसूर में 21 मार्च 2025 को विश्व वन दिवस के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें 200 किसान व छात्रों ने भाग लिया।
क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र जाच्छ में उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए केंद्र के सह निदेशक डॉ. विपिन गुलरिया ने कहा कि विश्व में पर्यावरण और वनों की रक्षा के लिए 21 मार्च को हर वर्ष विश्व वन दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य वनों का संरक्षण करना है। इस वर्ष इसका थीम 'वन एवं भोजन' है। इस दिवस का उद्देश्य पर्यावरण में फैल रही कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने में प्रयास करना एवं स्थानीय स्तर पर प्रयास करके कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
28 नवंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 21 मार्च को इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य विश्व में कम हो रहे वनों एवं वनों से जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को अध्ययन करना था। विश्व में प्रति व्यक्ति 40 पेड़ की आवश्यकता है, जबकि भारत में केवल मात्र 28 पेड़ प्रति व्यक्ति ही बचे हैं। यदि इस प्रकार अंधाधुंध कटान होता रहा और शहरीकरण बढ़ता रहा तो आने वाले समय में पर्यावरण और अधिक गर्म होगा, कार्बन उत्सर्जन बढ़ेगा, जिसके कारण से फसलो एवं वन्य प्राणियों के जीवन पर कुप्रभाव पड़ेगा।
इसी को ध्यान में रखते हुए हमें सोच तो विश्वस्तरीय चिंतन की चाहिए, लेकिन कार्य स्थानीय स्तर पर करने की आवश्यकता है, ताकि हमारे वन बच सकें। नए पेड़ लगा करके उत्सर्जित हो रही कार्बन डाइऑक्साइड को कम करके वातावरण को ठंडा किया जा सके और पर्यावरण बदलाव के कारण कृषि और अन्य चीजों पर प्रभाव पड़ रहा है, उसको कम किया जा सके।