ऋषि महाजन/नूरपुर। क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र जाच्छ के तत्वाधान से एक दिवसीय विश्व जल दिवस पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में बताया गया कि मात्र 3 फीसदी जल ही पीने योग्य है, जिसमें 2.5 फीसदी जल नदियों और ग्लेशियरों में सम्मिलित है। मात्र 0.5 फीसदी जल ही पीने योग्य है।
अंधाधुंध औद्योगीकरण एवं पेस्टीसाइड के प्रयोग से आने वाले समय में यह 0.5 प्रतिशत जल भी प्रदूषित होने की कगार पर है, जिससे की भयंकर बीमारियां एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एवं जीव जंतुओं पर इसका कुप्रभाव पड़ेगा।
इस कार्यशाला में केंद्र के सह निदेशक डॉ. विपिन गुलेरिया ने मुख्य अतिथि के तौर पर भाग लिया। इसके अलावा इस कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर बागवानी डॉ. राजेश कुमार कलेर ने लेक्चर दिया। कार्यशाला में बागवानी विश्वविद्यालय नौणी और कमनाल सरकारी स्कूल के छात्रों ने भाग लिया। क्षेत्रीय बागवान अनुसंधान केंद्र, जाच्छ के प्रधान वैज्ञानिक मुख्य वक्ता डॉक्टर राजेश कलेर ने बताया कि भारत की जनसंख्या आज 18 फीसदी के करीब विश्व की हो गई है। मात्र चार प्रतिशत विश्व का फ्रेश वाटर पीने के लिए उपलब्ध है, जिसमें अधिकतर जल वर्षा से प्राप्त होता है।
उन्होंने यह भी बताया कि इस वर्ष का विश्व जल दिवस का मुख्य उद्देश्य ग्लेशियर का संरक्षण है, क्योंकि भारत की अधिकतर नदियां, जोकि उत्तर भारत में बहती हैं, उनके जल स्रोत ग्लेशियर हिमालय में उपस्थित हैं। ग्लेशियर समय के साथ व पर्यावरण बदलाव के कारण बड़ी गति से पिघल रहे हैं। उन्होंने बताया कि यदि इसी प्रकार हम जंगलों का कटान करते रहें तो पांच महत्वपूर्ण 'ज' जिन में जल, जंगल, जमीन, जन और जीव जंतु हैं, इनका संतुलन अगर बिगड़ा तो परिस्थितियों बड़ी भयंकर होंगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर विपिन गुलरिया ने बताया कि विश्व में मात्र 3 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है, जिसमें 2.5 प्रतिशत जल नदियों और ग्लेशियरों में सम्मिलित हैं। मात्र 0.5 फीसदी जल ही पीने योग्य है। अंधाधुंध औद्योगीकरण एवं पेस्टीसाइड के प्रयोग से आने वाले समय में यह 0.5 प्रतिशत जल भी प्रदूषित होने की कगार पर है, जिससे की भयंकर बीमारियां एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एवं जीव जंतुओं पर इसका कुप्रभाव पड़ेगा।
उन्होंने बताया कि डाइक्लोफिनेक दवा के प्रयोग से पशुओं को खाने वाले गिद्धों की संख्या में कमी आई है। अतः विश्व इकोलॉजी को हमने सही ढंग से नहीं संभाला तो आने वाली समय में मनुष्य एवं जीव जंतुओं का इस धरती पर रहना असंभव हो जाएगा। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने लोगों के अंदर जागरुकता पैदा करने के लिए 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया है।
हमें जल के संरक्षण के लिए अपने व्यक्तिगत व्यवहार में बदलाव करना पड़ेगा, ताकि हमारी जल संबंधी जरूरतें कम से कम पानी से पूरी हो सके। जैसे घर में जल का वेस्ट कम करना, व्यर्थ बहता पानी को रोकना आदि है। कार्यक्रम में उपस्थित विद्यार्थियों ने जल संरक्षण से जीवन संरक्षण का महत्व भी अपने उपस्थित जनसमूह को समझाया।