ऋषि महाजन/नूरपुर। हिमाचल के कांगड़ा जिला का एक गांव जो वर्तमान में वजूद की जंग लड़ रहा है। इस गांव ने देश और प्रदेश को बड़ी बड़ी शख्सियतें दी हैं। भारत के तीसरे चीफ जस्टिस और जम्मू-कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री जस्टिस मेहर चंद महाजन का जन्म भी इसी गांव में हुआ था।
यहां तक कि यह गांव कभी सोने और देसी घी के व्यापार का मुख्य केंद्र हुआ करता था। जी हां हम बात कर रहे हैं नूरपुर विधानसभा क्षेत्र के ऐतिहासिक गांव टीका नगरोटा की। यह गांव कभी व्यापार, विद्वत्ता और वैभव के लिए प्रसिद्ध था, आज विकास की दौड़ से कोसों दूर होकर वीरान होता जा रहा है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, टीका नगरोटा कभी देसी घी और सोने के व्यापार का प्रमुख केंद्र था। चंबा, भटियात और नूरपुर जैसे आसपास के क्षेत्रों से लोग यहां खरीदारी करने आते थे। गांव का देसी घी लाहौर तक भेजा जाता था और जस्टिस महाजन के बाग की लिचियां मुंबई तक मशहूर थीं। उस दौर में गांव के हर परिवार से कोई न कोई जज, वकील या अधिकारी निकला करता था।
लेकिन समय के साथ गांव की तस्वीर पूरी तरह बदल गई। पढ़े-लिखे लोग बेहतर शिक्षा और रोजगार की तलाश में शहरों की चकाचौंध में खो गए और पीछे रह गए कुछ गिने-चुने बुजुर्ग और परिवार। कभी 100 परिवारों से आबाद इस गांव में आज महज 15-16 परिवार रह गए हैं, जिनमें भी ज्यादातर बुजुर्ग हैं।
जस्टिस डीके महाजन (पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट),
जस्टिस सीके महाजन (इलाहाबाद हाईकोर्ट), जस्टिस राजकुमार
एडवोकेट परसराम, मललू राम, तिलक राज, चीफ इंजीनियर सीके महाजन, डॉ. अजय महाजन (विशेषज्ञ चिकित्सक), मिल्खी राम महाजन (डीएवी शिक्षा सलाहकार) और प्रताप चंद (1968 में डीएवी हाई स्कूल चंडीगढ़ के प्रिंसिपल) शामिल हैं।
इतने सारे उच्च पदों पर पहुंचे शिक्षित लोगों के बावजूद गांव को विकास की दिशा में कोई ठोस सौगात नहीं मिली। गांव के वरिष्ठ नागरिक कर्म सिंह, दुकानदार जोगिंदर सिंह और सिंह राजपूत बताते हैं कि जो लोग कभी गांव की रौनक थे, अब साल में एक बार शीतला माता मंदिर के मेले में ही दिखते हैं। उनका कहना है कि जो नहीं पढ़ सके, वही गांव में रह गया, बाकी सब शहरों में बस गए।
आज स्थिति यह है कि गांव में न तो ढंग की सड़क है, न शिक्षा संस्थान, न स्वास्थ्य सेवाएं और न ही कोई रोजगार का साधन। जहां एक वक्त पर व्यापारिक चहल-पहल थी, अब वहां सिर्फ एक-दो दुकानें ही बची हैं।
जस्टिस मेहर चंद महाजन ने 1947 में बतौर प्रधानमंत्री जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय में अहम भूमिका निभाई थी और 1954 में भारत के तीसरे मुख्य न्यायाधीश बने। जिस गांव से इतना बड़ा राष्ट्रनायक निकला हो, उसका इस कदर उपेक्षित होना प्रशासन, समाज और खुद उस गांव से निकले लोगों पर भी बड़ा सवाल उठाता है।