बालीचौकी। मंडी जिला के बालीचौकी स्थित धबेहड (ढबोली) के अधिष्ठाता देव छांजणु ने हरियानों को बड़ी चेतावनी दी है। देव छांजणु ने कहा कि यदि समय रहते देवभूमि के पहाड़ों की प्राकृतिक संपदा का संरक्षण, देव स्थलों की पवित्रता का ध्यान और देव नीति का सही से पालन न किया गया तो देवता भी विनाश को देखने के लिए विवश हो जाएंगे। यदि इस विनाश के खेल से बचना है तो इंसान समय रहते राजनीति, समाजनीति और देवनीति में विध्वंस उत्पन्न करने वाले अनुचित कार्यों से दूर रहें, अन्यथा परिस्थितियां और भी विकराल होंगी।
देवता ने देववाणी में कहा है कि वर्तमान समय में मनुष्य देवी-देवताओं से बड़ा हो गया है और देवता छोटे हो गए हैं। इसलिए देवता ने सभी लोगों को मिलजुल कर रहने का आदेश भी दिया है।
जानकारी के अनुसार देवता आपदा के बाद अब देवभूमि पर आने वाली बड़ी विपदा से बचाव के लिए 18 वर्ष बाद अपने नौ गढ़ों की परिक्रमा पर निकले हैं। इनमें बागीथाच, कलीपर गढ़, तांदी गढ़, घाटलु गढ़, नीरु गढ़, थुज़री गढ़, वांश गढ़, मंगलौर गढ़ और नारायण गढ़ शामिल हैं।
यह परिक्रमा सोमवार से शुरू हुई है, जो 18 दिनों तक चलेगी। देवता मुख्यत: बागीथाच, तांदी, घाटलु, नीरु और वांश गढ़ों में ही अपनी विशेष कार्रवाई करेंगे। बता दें कि ऐसी ऐतिहासिक गढ़ परिक्रमा का आयोजन विशेष प्रकार की परिस्थितियों में देवता करते हैं। देवता ने 10 नवम्बर से भाटकीहार से लाव-लश्कर के साथ गढ़ परिक्रमा का शुभारंभ किया है।
इन स्थानों पर होगा देवता का रात्रि ठहराव
पहले दिन का रात्रि ठहराव हिड़ब (कांडा) में हुआ जबकि दूसरे दिन मंगलवार को देवता नाचनी में रुके हैं। तीसरे दिन देवता का रात्रि विश्राम नेहरा, चौथे शलवाड़, पांचवे सुनास, छठवे तांदी, सातवें मुराह, आठववें गुरान, नौवें नशयणी (भटवाड़ा), दसवें बुरना, 11वें दिन घाट मुहाथ, 12वें कांडीखहल, 13वें माणी, 14वें वसुंघी, 15वें कांडा, 16वें दिन शिवाड़ी में होगा। तत्पश्चात अंतिम दिन शिवाड़ी से देवता मूल कोट भाटकीहार वापस आएंगे।
प्रधान देवता कमेटी बीरबल का कहना है कि देवभूमि में आपदा के बाद आने वाली बड़ी विपदा से निपटने के लिए देवता नौ गढ़ों की परिक्रमा करेंगे। इस दौरान देवता बचाव का सुरक्षा घेरा भी बांधेंगे। यह परिक्रमा 10 नवम्बर से शुरू हुई है, जिसमें देवता विभिन्न स्थानों में जाकर अपना सूत्र बांध रहे हैं। देवता का ऐतिहासिक दौरा विशेष परिस्थिति में ही निकलता है।