ऋषि महाजन/नूरपुर। हिमाचल में श्री कृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जा रही है। नूरपुर के श्री बृजराज स्वामी मंदिर में भी काफी संख्या में भक्तों ने कान्हा के दर्शन किए।
सुबह 5 बजे पूरे शहर में श्री कृष्ण भगवान की झांकी के साथ प्रभात फेरी निकाली गई। मंदिर में सुबह 5 बजे से ही लोगों की लाइन लगनी शुरू हो गई थी। लोग ढोल नगाड़ों के साथ जयकार लगाते मंदिर पहुंचे।
इस अवसर पर लोगों के लिए लंगर का प्रबंध किया गया था। रात को हिमाचल पुलिस का 'हारमनी ऑफ द पाइन्स बैंड' भी अपनी प्रस्तुति देगा। बता दें कि श्री बृजराज स्वामी मंदिर नूरपुर किले में स्थित है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां कृष्ण व मीरा की मूर्तियां एक साथ विराजमान हैं।
कांगड़ा जिला में सीमांत राज्य पंजाब के साथ पठानकोट-मंडी नेशनल हाईवे के प्रवेश द्वार से सटा नूरपुर शहर प्राचीन काल में धमड़ी नाम से जाना जाता था। बेगम नूरजहां के यहां आने के बाद शहर का नाम नूरपुर पड़ा। यहां पर राजा जगत सिंह का किला विद्यमान है। इस किले के अंदर श्री बृज राज स्वामी तथा काली माता मंदिर है।
जानकार बताते हैं कि नूरपुर स्थित श्री बृजराज स्वामी मंदिर संसार में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां कृष्ण व मीरा की मूर्तियां एक साथ विराजमान हैं। रजवाड़ा शाही में दरबार-ए-खास (जहां राजा का दरबार सजता था) और विश्व के हजारों राधा-कृष्ण के मंदिरों में से यही एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान श्रीकृष्ण व मीरा की साक्षात मूर्ति एक साथ स्थापित हैं।
सौंदर्य से परिपूर्ण एक टीलेनुमा जगह पर स्थित यह नगर कभी राजपूत राजाओं की राजधानी हुआ करता था। इस मंदिर के इतिहास के साथ 1619 से 1623 ई. की एक रोचक कथा जुड़ी है कि नूरपुर के राजा जगत सिंह अपने राज पुरोहित के साथ चित्तौड़गढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गए। राजा जगत सिंह व उनके राज पुरोहित को रात्रि विश्राम के लिए महल में स्थान दिया गया। जहां उन्हें ठहराया गया, उसके साथ में एक मंदिर था। रात के समय राजा को उस मंदिर से घुंघरूओं और संगीत की आवाजें सुनाई दीं।
रात के वक्त मंदिर से घुंघरूओं और संगीत की आवाजें क्यों आ रही यह जानने के लिए राजा ने मंदिर में झांक कर देखा, तो उस कमरे में श्रीकृष्ण जी की मूर्ति के सामने उनकी एक अनन्य भक्त भजन गाते हुए नाच रही थी। राजा ने सारी बात अपने राज पुरोहित को बताई।
राज पुरोहित ने राजा जगत सिंह को घर वापसी पर चित्तौड़गढ़ के राजा से इन मूर्तियों को उपहार स्वरूप मांग लेने का सुझाव दिया, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण व मीरा की यह मूर्तियां साक्षात हैं। चित्तौड़गढ़ के राजा ने भी खुशी-खुशी मूर्तियां व मौलश्री का एक पेड़ राजा जगत सिंह को उपहार स्वरूप दे दिया। तदोपरांत नूरपुर के राजा ने अपने दरबार-ए-खास को मंदिर का स्वरूप देकर इन मूर्तियों को वहां पर स्थापित करवा दिया।
राजस्थानी शैली की काले संगमरमर से बनी भगवान श्रीकृष्ण व अष्टधातु से बनी मीरा की मूर्ति आज भी नूरपुर किले के अंदर ऐतिहासिक श्री बृज राज स्वामी मंदिर में शोभायमान है। इसके अतिरिक्त मंदिर की भित्तिकाओं (दीवारों) पर राजा द्वारा करवाए गए कृष्ण लीलाओं के चित्रण आज भी दर्शनीय है। यहां पर प्रदेश के श्रद्धालुओं के अलावा सीमांत राज्य पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और अन्य राज्यों से भी हजारों की संख्या में लोग सारा साल मंदिर में शीश झुकाते हैं।
प्रेम और आस्था के संगम के प्रतीक श्री बृजराज स्वामी मंदिर का नूर जन्माष्टमी को चमक उठता है, जब यहां पर दिन-रात श्रद्धालुओं की भारी भीड़ श्री कृष्ण भगवान और मीरा जी के दर्शन करने के लिए उमड़ती है।