ऋषि महाजन/नूरपुर। पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के मुक्ति संग्राम के दौरान 6 दिसंबर 1971 को शहीद हुए कांगड़ा जिला के फतेहपुर उपमंडल के चमराल क्षेत्र के सिपाही हंस राज की शहादत को बांग्लादेश ने याद किया है। 2018 में जारी हुआ सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह शहीद सिपाही हंस राज के परिजनों को सौंपा है।
बता दें कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के मुक्ति संग्राम में भारतीय सेना ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए जीत की गाथा लिखकर पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। सैनिकों के अदम्य साहस से भारत को पाकिस्तान के खिलाफ इस युद्ध बड़ी जीत मिली। युद्ध उपरांत पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। युद्ध में भारत के कुछ सैनिकों ने शहादत को गले लगाया। बांग्लादेश ने शहीद हुए भारतीय सैनिकों के परिवारों को सम्मानित करने के लिए सम्मान पत्र जारी किए हैं।
चमराल के निवासी 21 पंजाब रेजिमेंट के सिपाही हंस राज ने भी उस लड़ाई में अदम्य साहस का परिचय देते हुए 6 दिसंबर 1971 को शहादत का जाम पिया था। उसी वीरता की याद को याद करते हुए बांग्लादेश सरकार का सम्मान पत्र लेकर 28 मई, 2025 को 21 पंजाब रेजिमेंट के सैनिक उनके पैतृक गांव चमराल में आए। उन्होंने उनके छोटे भाई राम स्वरूप शर्मा को लिब्रेशन वॉर ऑनर स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
शहीद हंसराज के छोटे भाई रामस्वरूप शर्मा ने बताया कि पांच भाइयों में हंस राज सबसे बड़े भाई थे। वे 26 अक्टूबर 1965 को 21 पंजाब रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। इस दौरान उन्होंने 1971 में पाकिस्तान–भारत युद्ध में हिस्सा लिया, जिसके चलते 6 दिसंबर 1971 को वह लड़ाई के दौरान शहीद हो गए।
उन्होंने बताया कि शहीद हंस राज उस समय कुंवारे ही थे। शहादत के उपरांत उनके पिता स्व. रुणकू राम को पेंशन भी मिलती रही, जबकि 1994 में उनकी मौत के बाद माता मंगली देवी 1998 तक पेंशन लेती रहीं।
2018 में जारी हुए तत्कालीन बंगलादेश प्रधानमंत्री शेख हसीना और राष्ट्रपति अब्दुल हामिद के हस्ताक्षरित सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह को पाकर भाई रामस्वरूप शर्मा, भाभी रमा देवी और भतीजा सूरज शर्मा बेहद खुश हैं। उन्होंने बताया कि इतना बड़ा सम्मान मिलना न सिर्फ उनके परिवार अपितु क्षेत्र के लिए भी बड़ी बात है।