ऋषि महाजन/नूरपुर। क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र, जाच्छ में आयोजित बंबू मिशन के तहत पांच दिवसीय कार्यशाला का समापन शुक्रवार को हुआ। यह कार्यशाला 17 जून से 21 जून तक चली, जिसमें हिमाचल प्रदेश के आठ खंडों से आए कृषि अधिकारियों ने भाग लिया।
इस कार्यशाला का उद्देश्य बांस की खेती को लेकर अधिकारियों को तकनीकी ज्ञान और उपयोग संबंधी जानकारी देना था ताकि वे ब्लॉक स्तर पर किसानों को इसके लिए प्रेरित कर सकें और उसकी मार्केटिंग तथा संवर्धन से जुड़ी योजनाएं बना सकें।
कार्यशाला के दौरान केंद्र के निदेशक डॉ. विपिन गुलरिया ने बताया कि बांस से उच्च गुणवत्ता का बायोचार बनाया जा सकता है, जिसकी बाजार में कीमत 8 से 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। यह बायोचार न केवल पर्यावरण संरक्षण में सहायक है, बल्कि भविष्य में जीरो कार्बन फुटप्रिंट्स को लक्ष्य बनाकर औद्योगिक इकाइयों को ऊर्जा देने में भी सहायक हो सकता है।
उन्होंने कहा कि बांस से ग्रामीण महिलाएं और बेरोजगार युवा आर्टिस्टिक खिलौने, अचार व घरेलू उत्पाद बनाकर स्वरोजगार की दिशा में मजबूत कदम बढ़ा सकते हैं।
डॉ. गुलरिया ने बताया कि बांस एक ऐसी प्रजाति है जो मात्र एक वर्ष में तैयार हो जाती है और इसकी उत्पादकता सामान्य पेड़ों की तुलना में कई गुना अधिक होती है। इसीलिए सरकार भी इसके उत्पादन को बढ़ावा दे रही है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो और लकड़ी से जुड़ी समस्याओं का समाधान हो सके।
इस प्रशिक्षण में सहायक विज्ञानी रेनू कपूर और मृदा वैज्ञानिक नंद ने विभिन्न प्रकार की मिट्टियों के लिए उपयुक्त बांस की किस्मों और उनकी खेती के तरीकों की विस्तृत जानकारी दी।
मुंबई से विशेष रूप से आए विजय राणा, जो भारत-ऑस्ट्रेलिया बायोचार परियोजना से जुड़े हैं, ने बायोचार निर्माण की प्रक्रिया और उसके औद्योगिक उपयोग पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।
समापन अवसर पर नूरपुर के पूर्व विधायक अजय महाजन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि बांस की खेती में अपार संभावनाएं हैं, जिससे किसानों की आय तो बढ़ेगी ही, साथ ही पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी। उन्होंने बांस आधारित उद्यमिता को ग्रामीण विकास का नया आयाम बताया।