सूर्य देव जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर संक्रांति पर भगवान गणेश, शिव, विष्णु, देवी लक्ष्मी और सूर्य की साधना संयुक्त करने का महत्व प्राचीन धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इसका कारण ये है कि संसार को चलाने वाली पंच शक्ति की आराधना से ही इस दिन ग्रहों को अपने अनुकूल बनाया जाता है।
पंचांग की गणना के अनुसार 14 जनवरी, 2023 की रात 8 बजकर 58 मिनट पर सूर्य राशि बदल रहा है। एक वर्ष में सूर्य 12 राशियों में गोचर करता है और जिस राशि में प्रवेश करता है, उसे उसकी संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति 14 जनवरी रात से शुरू होगी और इसका पुण्यकाल स्नान-दान 15 जनवरी को माना जाएगा।
मकर संक्रांति के दिन नारायण की तिल से पूजा करना शुभ फलदायी माना जाता है। इस दिन खिचड़ी और तिल के लड्डू खाने की परंपरा भी है। देश में अलग-अलग जगहों पर इस पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर में लोहिड़ी के नाम से मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है, तो दक्षिण भारत के राज्य केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में इस पर्व को पोंगल कहा जाता है। विशेष बात ये है कि तमिल पंचाग का नया साल पोंगल से ही शुरू होता है।
मकर संक्रांति पर पवित्र नदी में स्नान की परंपरा भी है। मकर संक्रांति के मौके पर बर्तन में पानी, सिंदूर, लाल फूल और तिल मिलाकर सूर्य उदय होने पर अर्घ्य दें। सूर्य देव का ध्यान करते हुए तीन बार 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नम:' मंत्र बोलते हुए जल अर्पित करें।
मान्यता है कि मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य देव मकर राशि में आते हैं तो सूर्य पुत्र शनि देव भी उनका तिल से पूजन करते हैं। मकर संक्रांति पूजा-पाठ के दिन श्री नारायण कवच, आदित्य हृदय स्तोत्र और विष्णु सहस्रनाम का पाठ पूरे मनोयोग और विधि-विधान से करना फलदायी होता है। भगवान सूर्य की पूजा के बाद तिल, उड़द दाल, चावल, गुड़, वस्त्र आदि किसी सुपात्र को दान करें। इस दिन भगवान को तिल और खिचड़ी का भोग भी लगाएं।