किन्नौर। हिमाचल प्रदेश में तिब्बत बॉर्डर पर स्थित शिपकी ला दर्रा आजादी के 78 साल में पहली बार सैलानियों और आम लोगों के लिए खोल दिया गया है। इससे पहले, यहां पर केवल व्यापारिक गतविधियां ही होती थी, लेकिन अब यहां पर टूरिस्ट और आम नागरिक भी जा सकेंगे।
मंगलवार को मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू किन्नौर जिले के सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शिपकी-ला दर्रे पर पहुंचे। चीन सीमा से सटे इस क्षेत्र में उन्होंने ‘सरहद वन उद्यान’ की आधारशिला रखी। इस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ-साथ सीमा पर तैनात सेना और आईटीबीपी के अधिकारियों व जवानों को संबोधित भी किया।
मुख्यमंत्री ने शिपकी-ला के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करते हुए सीमा की सुरक्षा में जुटे सैनिकों के हौसले को सलामी दी। भारत माता की जय के नारों के साथ उन्होंने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों में जोश भर दिया। उन्होंने इंदिरा पॉइंट तक जाकर वास्तविक सीमा क्षेत्र का भी निरीक्षण किया।
मुख्यमंत्री सुक्खू शिपकी-ला पहुंचने वाले हिमाचल प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने हैं। इससे पहले 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी राज्य के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार के साथ इस दुर्गम स्थल पर पहुंची थीं। उस समय यहां तक सड़क मार्ग नहीं था।
मुख्यमंत्री की यह यात्रा न केवल सीमांत क्षेत्रों में सरकार की उपस्थिति का प्रतीक बनी, बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी इसे एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
सीएम ने किन्नौर जिला के सीमावर्ती शिप्की-ला गांव से ‘बॉर्डर टूरिज्म’ पहल की शुरूआत की। इस शुरूआत से देश भर के पर्यटकों को किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों के भारत चीन अधिकृत तिब्बत सीमा से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों की अद्भुत सुन्दरता का अनुभव करने का अवसर प्राप्त होगा।
इस शुरूआत के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे लेपचला, शिप्की-ला ग्यू मठ, खाना दुमटी, सांगला, रानी कंडा, छितकुल और लाहौल-स्पीति के चयनित क्षेत्रों तक पहुंचने की सुविधा भी मिलेगी। मुख्यमंत्री ने शिपकी-ला के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करते हुए सीमा की सुरक्षा में जुटे सैनिकों के हौसले को सलामी दी।
टोकन या आधार कार्ड दिखाकर जा सकेंगे यहां
शिपकी ला के लिए टूरिस्ट शिमला से किन्नौर और फिर खाब नामक स्थान से लिंक रोड के जरिये यहां पहुंच सकते हैं। यहां पर जाने के लिए टोकन या फिर आधार कार्ड दिखाना होगा। रात को यहां रुकने की परमिशन नहीं है। यहां जाने के लिए फिलहाल कोई फीस नहीं रखी गई है।
जाने के लिए आईटीबीपी की पोस्ट से परमिशन मिलेगी। गौरतलब है कि यहां से मानसरोवर यात्रा के लिए भी ट्रैक है लेकिन चीन की तरफ से अनुमति के बाद ही यहां जाया जा सकता है क्योंकि तिब्बत पर चीन का कब्जा है।
चार साल पहले किन्नौर और तिब्बत के बीच व्यापार का यह रास्ता बंद हो गया था। कोविड के समय 2020 में इसे बंद किया गया था। अहम बात है कि यह व्यापारा का सैकड़ों साल पुराना रूट है और यहां से चीन शासित तिब्बत बेहद करीब नजर आता है।