ऋषि महाजन/नूरपुर। कांगड़ा जिला के नूरपुर के राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय सुल्याली में पंचकर्म चिकित्सा पद्धति से इलाज हो रहा है। यहां हर दिन दूर-दूर से मरीज पहुंच रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में चुनिंदा सरकारी आयुर्वेदिक अस्पतालों में ही यह पद्धति अपनाई जाती है। सुल्याली अस्पताल में हाल ही में रक्तमोक्षण चिकित्सा शुरू की गई है। इसमें जलौका यानी जोंक के जरिए खून से पित्त दोष दूर किया जाता है।
चिकित्सा प्रभारी डॉ. सन्नी जरियाल ने बताया कि पंचकर्म की यह विधि शरीर से दूषित खून निकालती है। इससे त्वचा रोग, जोड़ों की सूजन, ब्लड प्रेशर बढ़ना और टांगों की सूजन जैसी समस्याओं में राहत मिल रही है।
उन्होंने कहा कि जलौका चिकित्सा सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। यह प्राकृतिक चिकित्सा का पुनर्जागरण है।
डॉ. जरियाल ने बताया कि जलौका के स्लाइवा में ऐसे एंजाइम होते हैं, जो खून का प्रवाह बेहतर करते हैं। इससे पीड़ित अंग में रक्त की आपूर्ति बढ़ती है। इस पद्धति से जटिल रोगों में भी अच्छे परिणाम मिल रहे हैं।
इसका उल्लेख आचार्य शुश्रुत ने अपनी शुश्रुत संहिता में किया है। यूरोप में यह चिकित्सा 1500 साल पहले दोबारा शुरू हुई थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने भी इसी पद्धति से इलाज करवाया था।