रेखा चंदेल/झंडूता। झंडूता विधानसभा क्षेत्र के शिवा गुरुकुल इंटरनेशनल स्कूल में मंगलवार को विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत एक भव्य क्षेत्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित की गई, जिसमें हिमाचल प्रदेश सहित देशभर से 5000 से अधिक किसानों ने भाग लिया। इस अवसर पर गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
संगोष्ठी का आयोजन झंडूता के विधायक जीत राम कटवाल, साई ईटरनल फाउंडेशन, शिमला एवं मानव विकास संस्थान, कलोल के संयुक्त प्रयासों से किया गया।
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने किसानों से संवाद करते हुए प्राकृतिक खेती को समय की मांग बताया और कहा कि यह खेती न केवल धरती की उर्वरता को बनाए रखती है, बल्कि किसानों की आत्मनिर्भरता को भी सशक्त बनाती है। उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती के विभिन्न पहलुओं जैसे रासायनिक मुक्त खेती, देशी गाय आधारित जैविक इनपुट (जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत), फसल विविधता, कम लागत वाली खेती एवं भूमि संरक्षण के महत्व की विस्तृत जानकारी दी।
प्राकृतिक खेती आज केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि समय की मांग बन चुकी है। यह खेती पद्धति रसायनमुक्त भोजन प्रदान करती है, जिससे मानव स्वास्थ्य बेहतर होता है और गंभीर बीमारियों से बचाव संभव होता है। प्राकृतिक खेती मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखते हुए जल, वायु और जैव विविधता की रक्षा करती है, जिससे पारिस्थितिकी संतुलित रहती है। यह नदियों और भूजल को रासायनिक प्रदूषण से मुक्त रखती है। आने वाली पीढ़ियों को यदि शुद्ध पर्यावरण, पोषण युक्त अन्न और टिकाऊ जीवनशैली चाहिए, तो प्राकृतिक खेती को अपनाना अनिवार्य है। यह न केवल किसानों को आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि पूरी मानवता के लिए स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है। आचार्य देवव्रत का यह दृष्टिकोण एक जागरूकता अभियान से कहीं बढ़कर, भविष्य को सुरक्षित करने का मार्ग है।
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राज्यपाल ने हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और उनके प्रति आभार प्रकट किया।
उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के अंतर्गत 2481 करोड़ रुपये का बजट कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को स्वीकृत किया गया है। जिसके तहत आगामी दो वर्षों में 15,000 ग्राम पंचायतों में 1 करोड़ किसानों तक पहुंचने और 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती शुरू करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मिशन के तहत 10,000 जैव-आदान संसाधन केंद्र (BRC) और 2000 मॉडल प्रदर्शन फार्म स्थापित किए जाएंगे तथा किसानों को प्रशिक्षण, प्रमाणन और विपणन सहायता दी जाएगी।
इस अवसर पर प्रदेश सरकार में नगर नियोजन, आवास, तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण मंत्री राजेश धर्माणी ने कहा कि राज्य सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास कर रही है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती से उत्पादित फसलों के लिए राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया हैष जैसे हल्दी के लिए 9000 रुपये प्रति क्विंटल, गेहूं के लिए 6000 रुपये प्रति क्विंटल, भैंस के दूध पर 61 रुपये प्रति लीटर तथा प्राकृतिक पद्धति से उत्पादित दूध पर 51 रुपये प्रति लीटर का समर्थन मूल्य तय किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार द्वारा शराब पर 'प्राकृतिक खेती सेस' लागू किया गया है।
कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी शिरकत की और कहा कि प्राकृतिक खेती को लेकर बहुत सी भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, जिनसे बचने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में पहली बार आचार्य देवव्रत के अनुरोध पर उनकी सरकार के कार्यकाल में बजट में 25 करोड़ रुपये का प्रावधान प्राकृतिक खेती के लिए किया गया था।