चंबा। हुनर किसी परिचय का मोहताज नहीं होता है। प्रतिभा और कुशलता खुद ही अपनी पहचान बना लेती है। बस कुछ कर गुजरने का जज्बा होना चाहिए। ऐसा ही कर दिखाया है चंबा शहर के चमेशनी मोहल्ले की लता ने। लता मूर्तिकला की एक बेहतरीन कारीगर है।
लता ने इस साल भी काली माता की दो मूर्तियां बनाई हैं, जिन्हें सुल्तानपुर वार्ड के माई का बाग और जुलाहकड़ी मोहल्ला के मां ज्वाला जी मंदिर में माता की ज्योति के साथ रखा जाएगा।
लता ने पराली, लाल मिट्टी, प्लास्टर, कच्ची रस्सी, फट्टे, मलमल का कपड़ा और अलग-अलग रंगों का प्रयोग करते हुए 10-15 दिन की कड़ी मेहनत के बाद मां काली की दो मूर्तियां तैयार की हैं। वह हर साल मूर्तियां बनाती हैं। लता ने कोरोना काल के दौरान श्री रामलीला क्लब चंबा के लिए रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले भी बनाए थे।
लता के पिता पूर्ण चंद भी मूर्तिकला के एक बेहतरीन कारीगर थे। लता ने अपने पिता से ही मूर्तिकला का हुनर सीखा है। पिता पूर्ण चंद मां काली की मूर्तियां बनाते थे तो लता उनके साथ मूर्ति बनाने में सहायता करती थीं। 2017 में पिता का निधन के होने के बाद लता ने मूर्ति बनाने का काम बंद कर दिया। लोग लता के पास आकर मूर्ति बनाने के लिए आग्रह करते थे। फिर लता ने अपने पिता के हुनर को जिंदा रखने की ठानी और मूर्ति बनाने का काम फिर शुरू किया। लता की माता चंपा देवी मूर्ति बनाने में मदद करती हैं।
लता का कहना है कि उनके पिता श्रीराम लीला क्लब चंबा के बहुत पुराने सदस्य थे और क्लब के साथ लगभग 45-50 साल के साथ जुडे़ हुए थे। लता का कहना है कि आज के समय लड़के-लड़कियों में कुछ भी फर्क नहीं है। आज की लड़कियां किसी से कम नहीं हैं।