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भारत की पर्वतारोही दो बेटियों अरुणिमा सिन्हा और बलजीत कौर पर हमें गर्व

एक मौत को मात देकर पर्वत से लौटी और एक चढ़ी

भारत की दो बेटियां जिन पर हम सबको गर्व है। एक बेटी मौत को मात देकर पर्वत से सकुशल लौटी और एक मौत को मात देकर दुनिया की सबसे ऊंची जगह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ी। जी हां हम बात कर रहे हैं हिमाचल के सोलन की पर्वतारोही बलजीत कौर और उत्तर प्रदेश की पद्मश्री डॉ. अरुणिमा सिन्हा की। अरुणिमा सिन्हा विश्व की पहली दिव्यांग हैं जिन्होंने माउंट एवरेस्ट फतेह किया।

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अरुणिमा सिन्हा की एक बात जिससे प्रतीत होता है कि एक पैर गंवाने के बावजूद सबसे ऊंची चोटी फतह करने के उनके इरादे कितने बुलंद थे। अरुणिमा ने कहा था कि ‘आप सोच सकते हैं, जो लड़की बैड से उठ भी नहीं सकती और कुछ अलग करना चाहती है। उसे अपने आप को प्रूव करना है, लोग पागल बोलते थे। जिस दिन आपको दुनिया पागल बोलना शुरू कर दे तो आप समझ लें कि आपका गोल आपके करीब है और कोई आपको रोक नहीं सकता है’।

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अरुणिमा सिन्हा 12 अप्रैल 2011 को ट्रेन से लखनऊ से दिल्ली जा रही थीं। बरेली के पास ट्रेन में कुछ गुंडों ने पर्वतारोही अरुणिमा के गले की सोने की चेन छीनने की कोशिश की। जब अरुणिमा सिन्हा ने विरोध किया तो गुंडों ने उन्हें चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया। उस वक्त दूसरे ट्रैक पर एक और ट्रेन गुजर रही थी। अरुणिमा उससे टकराकर रेलवे ट्रैक पर गिर गई। वह बुरी तरह जख्मी हो गई थीं। वह उठ नहीं पा रही थीं। दाहिने पैर की हड्डियां जींस से बाहर लटक रही थीं। रीढ़ की हड्डी में फ्रेक्चर आए थे। अगली सुबह गांव वालों ने अरुणिमा को देखा और बरेली अस्पताल ले गए।

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बरेली अस्पताल में न तो एनेस्थिसिया का प्रबंध था और नहीं ऑक्सीजन थी। अरुणिमा का तुरंत इलाज जरूरी था, क्योंकि और देर होती तो कुछ भी हो सकता था। ऐसे में वहां के चिकित्सक लाचार हो गए कि इलाज कैसे करें। अरुणिमा देख नहीं पा रहीं थीं पर डॉक्टर और फार्मासिस्ट की बात सुन पा रहीं थीं। अरुणिमा ने बिना एनेस्थिसिया के ही पैर काटने के लिए कहा, क्योंकि वह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं।

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डॉक्टर ने बिना बेहोश किए पैर काटा और इलाज किया। अरुणिमा का काफी खून बह चुका था, उन्हें खून की जरूरत थी। खून बरेली अस्पताल के डॉक्टर और फार्मासिस्ट ने दिया। इस घटना में अरुणिमा अपना दाहिना पैर गवां बैठी और दूसरे पैर में रॉड डालनी पड़ी।

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भगवान की कृपा से पर्वतारोही अरुणिमा ठीक होने लगी। उन्होंने परिस्थितियों से हारने की वजाए दुनिया की सबसे ऊंची जगह माउंट एवरेस्ट को फतह करने की सोची। शुरू में सबने इसे पागलपन कहा। अरुणिमा सिन्हा बॉस्केबाल खिलाड़ी भी रही हैं। खिलाड़ी के जज्बा लिए अरुणिमा ने 21 मई 2013 को माउंट एवरेस्ट फतह किया।

अब बात करत हैं हिमाचल की बेटी पर्वतारोही बलजीत कौर की। बलजीत कौर बीते 16 अप्रैल को नेपाल के अन्नपूर्णा पर्वत के लिए रवाना हुईं। 17 अप्रैल को उसके साथ मौजूद शेरपा बीच रास्ते में छोड़कर चला गया। कुछ दूरी पर जाने के बाद एक अन्य शेरपा कंपनी द्वारा भेजा गया। करीब 36 घंटे का सफर तय करने के बाद 17 अप्रैल को शाम 6 बजे वह माउंट अन्नपूर्णा पर पहुंचीं। वह और उनके साथ शेरपा दोनों थके हुए थे। शेरपा दो दिन पहले ही एक अन्य चोटी पर जाकर आया था।

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अन्नपूर्णा पहाड़ी से लौटते वक्त भी वह थकी हुईं महसूस कर रही थीं। शेरपा एक अन्य पर्वतारोही की सहायता के लिए चला गया। वह अकेली चलती रहीं। 10 मीटर चलने के बाद वह आराम करती। इसके बाद फिर सफर शुरू करतीं। तेज बर्फीला तूफान चल रहा था। थकान की वजह से देर रात नींद आ गई। 18 अप्रैल की सुबह उनकी नींद खुली। उस वक्त करीब आठ बजे थे।

वह बर्फ के बीच वहां पर अकेली थीं। उन्होंने हौंसला नहीं हारा और सुरक्षा रस्सी को नहीं छोड़ा। जिंदगी और मौत से जंग लड़ते हुए सुरक्षा रस्सी के सहारे आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने इस मौके पर हौसला तो दिखाया ही पर संयम भी नहीं खोया। अपने मोबाइल के एप से रेस्क्यू टीम से सहायता लेने को सैटेलाइट सिग्नल भेजा। करीब पांच घंटे बाद रेस्क्यू दल उनके पास पहुंचा और बलजीत कौर को रेस्क्यू किया। वह 48 घंटे तक बर्फ में रहकर मौत को मात देकर अपने घर सोलन लौटीं।

 

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