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उपचुनाव से सक्रिय राजनीति में आए थे सुधीर शर्मा, अब ‘उपचुनाव’ से ही करेंगे नई शुरुआत

1998 में लड़ा था पहला इलेक्शन

 

धर्मशाला। पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा के साथ अपनी राजनीतिक पारी की नई शुरुआत करने जा रहे हैं। सुधीर शर्मा धर्मशाला से भाजपा की टिकट पर उपचुनाव लड़ेंगे।

रोचक पहलू यह है कि सुधीर शर्मा ने कांग्रेस में अपनी सक्रिय राजनीति की शुरुआत भी बैजनाथ में उपचुनाव से की थी। हालांकि, उन्हें इस उपचुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था।

54 साल सक्रिय राजनीति में रहे पिता पंडित संत राम

सुधीर शर्मा ने अपने चुनावी अभियान का बिगुल वीरवार से फूंक दिया है। सुधीर शर्मा को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता पूर्व मंत्री और बैजनाथ के विधायक पंडित संत राम को कौन नहीं जानता होगा।  एक वक्त था जब हिमाचल की राजनीति में संत राम की अच्छी पैठ थी।

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उन्हें ‘पंडित जी’ के नाम से जाना जाता था। वह पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के सिपहसालारों में अव्वल में गिने जाते थे।  संत राम करीब 54 साल कांग्रेस पार्टी में रहे। पंडित संत राम ने चौबीन पंचायत के प्रधान के तौर पर राजनीति की शुरुआत की थी। वह शिक्षा मंत्री, कृषि मंत्री और वन मंत्री रहे।

बता दें कि पंडित संत राम 1972 में सीपीआई के बिधि चंद को हराकर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतकर बैजनाथ क्षेत्र से विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद वह 1990 तक विधायक रहे। 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के ओम प्रकाश, 1982 में आजाद प्रत्याशी मिल्खी राम और 1985 में भाजपा के प्रत्याशी दुलो राम को हराया था।

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1990 में बैजनाथ की जनता ने संत राम को नकार दिया और भाजपा के दुलो राम चुनाव जीते। अगले चुनाव के लिए उन्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। 1993 में विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर से जीत दर्ज की और विधानसभा पहुंचे।  उन्होंने 1990 की हार का बदला लेते हुए दुलो राम को हराया था।

1998 विधानसभा चुनाव में फिर दुलो राम को हराया। 1998 में पंडित संत राम का निधन हो गया। बैजनाथ में उपचुनाव हुए। कांग्रेस ने पंडित संत राम के पुत्र सुधीर शर्मा को उपचुनाव में टिकट दी।

भाजपा ने फिर दुलो राम पर भरोसा जताया। उपचुनाव में सिंपैथी फेक्टर भी नहीं चल सका और उपचुनाव में सुधीर शर्मा को हार का मुंह देखना पड़ा और दुलो राम चुनकर विधानसभा पहुंचे।

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2003 और 2007 में कांग्रेस ने फिर सुधीर को टिकट दी और भाजपा ने दुलो राम पर भरोसा कायम रखा। दोनों ही चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। 2012 में हिमाचल की राजनीति में कुछ ऐसा हुआ कि कुछ नेताओं को अपना चुनावी क्षेत्र बदलना पड़ा।

इसमें पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह और  सुधीर शर्मा भी शामिल थे। 2012 में डिलिमिटेशन के बाद रोहड़ू के साथ बैजनाथ विधानसभा क्षेत्र एससी के लिए रिजर्व हो गया।

अब सुधीर शर्मा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती चुनाव कहां से लड़ा जाए यह थी। कांग्रेस ने सुधीर शर्मा पर भरोसा जताया और धर्मशाला से टिकट दिया। हालांकि, उस समय कांग्रेस में अंदरखाते बगावत भी हुई, लेकिन सुधीर शर्मा कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े और जीते।

सुधीर शर्मा चुनाव जीते ही नहीं, बल्कि ततकालीन वीरभद्र सरकार में वह कैबिनेट मंत्री भी बने। 2017 में सुधीर शर्मा को भाजपा के प्रत्याशी किशन कपूर के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा।

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हिमाचल में सत्ता परिवर्तन के करीब 15 माह बाद ही धर्मशाला में उपचुनाव हुआ। किशन कपूर के लोकसभा सांसद बनने के बाद यह उपचुनाव हुआ। इसमें भाजपा ने युवा नेता विशाल नेहरिया को टिकट दी। सुधीर शर्मा के उपचुनाव न लड़ने के चलते कांग्रेस को नया प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारना पड़ा। उपचुनाव में कांग्रेस की हार हुई।

2022 विधानसभा चुनाव में सुधीर शर्मा फिर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े और विधानसभा पहुंचे। पर इस बार परिस्थितियां कुछ अलग थीं। सुधीर शर्मा को सुक्खू कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी।

इस बात से सुधीर शर्मा कुछ खफा थे। फरवरी 2024 में राज्यसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से अन्य पांच विधायकों के साथ क्रॉस वोटिंग की और भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में वोट डाला।

व्हीप जारी होने के बावजूद बजट वोटिंग में हिस्सा न लेने पर हिमाचल विधानसभा स्पीकर ने उनकी और अन्य 6 विधायकों की सदस्यता रद्द दी। इसके चलते धर्मशाला सहित सुजानपुर, बड़सर, गगरेट, कुटलैहड़ और लाहौल स्पीति में उपचुनाव हो रहे हैं।

 

पचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से बागी सभी 6 नेताओं को टिकट दी है। सुधीर शर्मा ने अब भाजपा टिकट पर धर्मशाला से उपचुनाव लड़ेंगे। उपचुनाव के लिए वोटिंग लोकसभा चुनाव के साथ 1 जून को होगी।

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