ऋषि महाजन/नूरपुर। कांगड़ा जिला के नूरपुर की ऊंची पहाड़ी पर घने जंगल के बीच स्थित रत्ते घारे वाली माता मंदिर में दुर्गा अष्टमी व रामनवमी के दिन भारी भीड़ उमड़ी। हिमाचल, पंजाब, और हरियाणा से बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचे। भीड़ इतनी अधिक थी कि कई वीआईपी लोग भी माता के दरबार तक नहीं पहुंच पाए। व्यवस्था के चलते उन्हें लौटना पड़ा।
रत्ते घारे वाली माता का यह मंदिर नूरपुर से 10 किलोमीटर और पठानकोट से 20 किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर लाल मिट्टी के ल्हासा पर बना है। गद्दी भाषा में 'रत्ते' का अर्थ लाल मिट्टी और 'घारे' का अर्थ ल्हासा होता है। यही कारण है कि माता को रत्ते घारे वाली माता कहा जाता है।
यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन गया है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से माता के दरबार में आता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है। स्थानीय लोगों के अनुसार, एक बार एक व्यक्ति अपनी निजी समस्या से परेशान था। रास्ते में उसे एक गद्दी समुदाय का व्यक्ति मिला।
उस व्यक्ति ने उसकी परेशानी पूछी। व्यक्ति ने अपनी पूरी बात बताई। गद्दी समुदाय के व्यक्ति ने उसे बताया कि उसके क्षेत्र में रत्ते घारे वाली माता का मंदिर है। कहा कि अगर वह सच्चे मन से माता के दरबार में जाकर प्रार्थना करेगा तो उसकी समस्या दूर हो जाएगी। कुछ ही महीनों में उसकी मनोकामना पूरी हो गई। उस दिन से मंदिर की मान्यता बढ़ती गई। लोगों की आस्था लगातार मजबूत होती गई। मंदिर में कई श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी हुईं।