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नन्हे बालक से कैसे बने "आराध्य पालू देवता", जानिए पूरी कहानी

ewn24 news choice of himachal 29 Jul,2024 1:36 pm


    स्वर्ग से आई दिव्य शक्ति ले गई थी साथ


    राजगढ़। भारत देश के उत्तर दिशा में देवताओं की आत्मा पर्वतराज हिमालय स्थित है। इस हिमालय में उतराखंड तथा हिमाचल प्रदेश आदि पहाड़ी राज्य स्थित हैं जिनमें देवी देवताओं का वास है। 

    हमारा सुन्दर पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश ऐसा ही राज्य है जिसे अनेक देवी देवताओं ने अपना निवास स्थान बनाया है। इन देवी देवताओं में ब्रम्हा, विष्णु एवं शिव तथा माँ दुर्गा ने अनेक ग्रामीण देवताओं के रूप में अवतार लिया है। इनमें शिर्गुल महाराज, बिजट, डूम, दधेश्वर, माँ काली आदि प्रसिद्ध हैं।


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    इन सभी देवताओं के हिमाचल के अनेक गांव में मन्दिर बने हुए हैं और यहां के ग्रामीण अपनी-अपनी आस्था के अनुसार इन देवी-देवताओं की पूजा-उपासना अनेक विधि विधानों और परम्पराओं के अनुसार करते हैं। 

    कई स्थानों पर तत्कालीन सत्युग, त्रेता एवं द्वापर आदि युगों में लोगों में परस्पर द्वेष भावना आदि के कारण आपसी कलह-झगड़े आदि में दुराचार एवं दुर्व्यवहार के कारण कई सज्जनों की पवित्र आत्माएं देवताओं के रूप में अवतरित हुईं। इनमें हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के तहसील राजगढ़ के हाब्बन, पझौता, डिमण, राजगढ़ आदि के आराध्य देव पालू देवता महाराज प्रमुख हैं।


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    पालू देवता महाराज की उत्पत्ति के विषय में जन आस्था में अनेक किवदंती प्रसिद्ध है। जिनमें से एक के विषय में तत्कालीन व्याख्यान प्रस्तुत है -

    कहा जाता है कि इस क्षेत्र का जनसमाज तात्कालिक जनसंख्या, जाति एवं क्षेत्र आदि के अनुसार छोटे-छोटे गुटों में बंटा होता था। जिन्हें स्थानीय भाषा में ढेरी (समूह) कहा जाता था। हाब्बन क्षेत्र में रहने वाले हाब्बणी कहलाए।

    इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों में रहने वाले बघनाल, भणेंट, च्वेट, मड़ेचू, देली, पजेरे आदि अनेक ढेरियों ( समूहों) में विभक्त थे। जिनकी तत्कालीन अबादी पन्द्रह सौ कही जाती थी। इसी एक ढेरी हाब्बणी के गाँव हाब्बन में एक साधारण परिवार में पालू देवता की आत्मा ने एक साधारण बालक के रूप में जन्म लिया।

    कहा जाता है कि चार भाई-बहनों में पालू देव सबसे छोटे थे। साधारण बालक की तरह रहते थे और पशु चराने आदि के अनेक काम उनसे कराये जाते थे। छोटे बच्चों को माता-पिता बचपन में खूब घी, दूध खिलाया करते थे। जब उनकी मां नहीं रहीं तो सभी भाई-बहनों का भरणपोषण उनकी बड़ी भाभी द्वारा किया जाने लगा।


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    एक बार की बात कही जाती है कि पालू देवता के रूप में उस बालक ने अपनी भाभी से पीने के लिए दूध की मांग की परन्तु भाभी ने उनसे दुर्व्यवहार करते हुए कड़क भाषा में कहा कि यदि तू ज्यादा ही दुधाधारी है तो दूध स्वयं पैदा कर क्यों नहीं पीता। इस प्रकार प्रतिदिन उनके साथ दुर्व्यवहार होता रहा।

    अन्ततः एक दिन वह बालक पशु के पास गाय चराने गया था। पालू ग्राम के जंगल में गांव की उत्तर दिशा में शोगा नामक स्थान पर उस बालक में उपस्थित आत्मा ईश्वर से इस संकट से उबारने की प्रार्थना करने लगी। तभी तत्काल स्वर्ग से कोई दिव्य आत्मा साधु के रूप में अवतरित हुई और उस बालक को स्वर्ग की ओर ले जाकर लुप्त हो गई और उसी स्थान पर एक भूलिंग की उत्पत्ति हो गई। एक गाय रोज उस लिंग पर स्वत: ही दूध की धारा गिराने लगी।


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    इस प्रकार वह बालक पालू ग्राम में भूलिंग के रूप में उत्पन्न होने के कारण पालू देवता महाराज कहलाए। जब पन्द्रह सौ के लोगों ने उस जंगल में लिंग उत्पत्ति और उस पर रोज गाय द्वारा स्वयं थनों से दूध गिराने का दृश्य देखा तो लोगों में देव आस्था जागृत हो गई और उस दिव्य शक्ति को पालू देवता महाराज के रूप में पूजने लगे।

    पन्द्रह सौ जनसंख्या वाले अनेक समूह हाब्बणी, बघनाल, देली, भणेंट आदि लोगों ने आपसी सहमति से पालू गांव में इस दिव्य शक्ति का मन्दिर बनाया। यह लगभग द्वापर युग के समय की बात रही होगी। जब समाज कौरव व पांडव के समूह में बंटा हुआ था। इस क्षेत्र में भी यह समूह विभाजन कौरव व पांडव समूह में विभक्त हो गया। तत्कालीन भाषा में कौरव शाठी और पांडव पाषड़ (पाशी) कहलाए।

    पालू गांव भी दो दलों में बंट गया और उपरला पालू व निचला पालू नाम के दो गांव बना दिए तथा देवता के भी दोनों गांव में मन्दिर बनाए गए। जो आज भी उसी तरह विद्यमान है। शाठी का मन्दिर निचले पालू में और पाशी का मन्दिर उपरले पालू गांव में है। जबकि दोनों एक ही शक्ति स्वरूप पालू देवता के मन्दिर जाने जाते हैं।

    दिवाली के ग्यारह दिन बाद एकादशी पर्व देवठण


    लोग दोनों स्थानों पर प्रतिवर्ष दिवाली के ग्यारह दिन बाद एकादशी पर्व देवठण के रूप में अपने-अपने विभाजित मन्दिर में एकत्र हो कर रात्रि जागरण कर पर्व मनाते हैं। पालू देवता की एक विशेषता है कि जब यह कहीं जागरण में जाते हैं तो कहीं भी रात्रि वास नहीं करते व रात्रि को अपने-अपने मन्दिर में वापिस आते हैं।

    तीन चार वर्ष में दोनों मन्दिरों के देवता को लोग निर्दिष्ट समयानुसार केदारनाथ स्नान के लिए ले जाते हैं। इस वर्ष 2024 में उपरले पालू गांव में नया देव मन्दिर तैयार किया गया है। देवता को केदारनाथ व चूड़धार से स्नान कराकर नए मन्दिर में विधिवत स्थापित कर दिया है।

    16 जुलाई 2024 को गांव वालों ने इस मन्दिर की प्रतिष्ठा के लिए शांत महायज्ञ का आयोजन किया था। इसी दिन प्रातः कालीन बेला में मन्दिर के छत पर कुरूड़ की स्थापना की गई। इस उपलक्ष्य में इलाके के हजारों की संख्या में उपस्थित हुए और देवता का दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।

    🙏आराध्य देव पालू देवता की जय 🙏

    प्रेषक : रमेश चंद शर्मा
    गांव - हच्चड़, डा. सनौरा
    उप-तहसील- पझौता
    जिला- सिरमौर


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